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Thursday, July 23, 2015

ख़ुशी का पता ...................???

ख़ुशी .............एक ऐसा शब्द जिसे हर कोई कहना चाहता हैं ,हर कोई पाना चाहता हैं ,हर कोई जीना चाहता हैं,हर कोई महसूस करना चाहता हैं ,ये आती हैं तो जीवन कुछ महकने सा लगता हैं ,चाँद तारे सब हमारे दोस्त मालूम पड़ते हैं ,घर के आँगन में (अब आँगन नही तो बालकनी में और वह भी नही तो जहाँ से आकाश दिखना नसीब हो )उतर आये हैं.हम उनके बीच उन्ही की तरह चमक रहे हैं ,कभी जीवन दिए की ज्योति सा जगमग ,कभी आकाश से बड़ा  हमारा भाग्य और व्यक्तित्व  लगने लगता हैं .फूलो का तो क्या कहिये वो तो जीवन के हर रस्ते में बिखरने लगते हैं, गुलाब आपसे मुस्कुरा कर बातें  करता हैं तो कभी चम्पा हँस कर कानों में कुछ कह जाता हैं .सोनचाफे की खुशबु मन मस्तिष्क में भर सी जाती हैं .जीवन फूलो से  भरा बगीचा बन जाता हैं .

कहते हैं गले से सुर तब तक नही निकलते जब तक सुरसुती की कृपा न हो,लेकिन ख़ुशी ..उसके आने पर सुर हर राग और हर रागिनी में उतने ही ममत्व उतने ही प्रेम से साज और आवाज दोनों में निकलते हैं जैसे आप सुरों के युगों युगों के साथी हो ,सुर आप के बिना अधूरे हो और आप सुरों के बिना .गीत भी बन जाते हैं कवितायेँ भी ,शब्द भी गुनगुनाते हैं और अक्षर माला में गूँथ जाते हैं.
जो करते हैं ख़ुशी और बढ़ बढ़ कर मन में मयूरी सी उछलती हैं .उसकी फर्लांगे जीवन के आनंद को द्विगुणित कर देती हैं.जीवन कल कल सा झरना ,संगीत ,सुंदरता,प्रेम ,सबका मानो पर्याय बन जाता हैं .

आज शायद इतनी ही खुश हूँ मैं  ,डरती हूँ इस ख़ुशी को कही  नज़र न लगे मेरी ,पर कहते हैं न, दुःख छिपा सकता हैं इंसान पर प्यार और ख़ुशी छिपाए नही छिपती.

उसकी बिल्ली की तरह बंद आँखे जो लुका छुपी के खेल में उसके खुदके छुपने की शाश्वती होती हैं ,मुझे जोर से हंसने पर मजबूर कर देती हैं,मटककली की तरह मटक मटक के कियां हुआ नृत्य मेरे पैरो को भी चलायमान कर देता हैं ,उनमे चलते रहने की एक अजीब सी ताकत देता हैं ,उसकी मुस्कान मुझे एकदम लाचार बना देती हैं ,मैं खुदको रोंक नही पाती कसकर उसके गलों की पप्पी लिए बिना .उसके धरा और दिशा विहीन सुर मेरे सुरों को सुर बनाते हैं ,उनमे जान भरते हैं ,मेरी वीणा उन सुरों का अनुगमन कर ही बजती हैं,आजकल में जी भर कर मुस्कुरा रही हूँ बिना बात हँस रही हूँ .कभी सड़क चलते उसके संग जोर जोर से कोई गीत गुनगुना रही हूँ ,कभी रसोई में कुछ नया पका कर अपनी पाककला पर खुद ही मुग्ध हो रही हूँ ,जीवन जैसे स्वरसिद्धि  पाया हुआ सुरताज़ हो गया हैं ,ह्रदय में इतना प्रेम ,इतना वात्सल्य ,इतना आनंद कभी न था .

कह क्या सकती हूँ उसे ?????सिर्फ इतना शुक्रियाँ आरोही ,शुक्रियाँ मेरे जीवन में आने के लिए ,मेरी बेटी के रूप में आने के लिए.
ख़ुशी का पता न जाने सबके लिए क्या होता हैं पर मेरे लिए सिर्फ तुम हो .शायद हर माँ के लिए उसका बच्चा ..

शुक्रियाँ  ...................................
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