tag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post5886908306733233408..comments2023-10-05T00:40:14.785-07:00Comments on आरोही: ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो...........................RADHIKAhttp://www.blogger.com/profile/00417975651003884913noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-56344297170004559662009-01-20T09:24:00.000-08:002009-01-20T09:24:00.000-08:00आपसे पूरी तरह सहमत इन दोनों फिल्मों में हमें कथानक...आपसे पूरी तरह सहमत <BR/>इन दोनों फिल्मों में हमें कथानक बिल्कुल ही नही जंचा (हालाँकि कई चीजें जैसे रंग दे... का म्यूजिक आदि पसंद भी आए )<BR/>ये फिल्म युवा इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें महसूस होता है कि सिस्टम का कोई महत्त्व नही है जो करना है ख़ुद को ही करना है ये मानसकिता त्रासद है <BR/>अनुराग जी की बात कि आज के युवकों को शहीदों के बारे में नही पता है से हम सहमत हैं. सरकारी स्कूलों के अलावा हर जगह यही मानसिकता घर करती जा रही है कि किस शहीद के बारे में और कितना बताना है . गांधी के बारे में कितना और भगत सिंह के बारे में कितना?<BR/>पर यह भी सही है कि शहीदों को आजके परिवेश से जोड़ते हुए और बेहतर ढंग से दिखाया जा सकता था. रंग दे...की ही कहानी में स्कोप था कि किसी तार्किक तरीके से अंत किया जाता .<BR/>कुश जी फर्ज कीजिये कि सभी लोग जिन्हें महसूस होता है कि उनके साथ ग़लत हुआ या हो रहा है यूँ ही अपने तरीके से हल निकलने में जुट जाएँ तो? (कुछ लोग कर भी रहे हैं )<BR/>हमें व्यवस्था को अधिक बेहतर बनने के बारे में सोचना चाहिए इस तरह के कहीं भी न ले जा सकने वाले हीरोइक कारनामों की वाहवाही की जगह <BR/>शायद राधिका जी का इशारा भी यही है.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-62345353428204485982009-01-20T05:42:00.000-08:002009-01-20T05:42:00.000-08:00aaj ke daur me filmo / tv ke alawa logo ke paas ku...aaj ke daur me filmo / tv ke alawa logo ke paas kuch bhi nahi hai. na apno ke liye samay koi dena chahta hai.Dr. G. S. NARANGhttps://www.blogger.com/profile/12411281026780585162noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-92222397109729440272009-01-19T22:23:00.000-08:002009-01-19T22:23:00.000-08:00रंग दे बसंती के लिए मैं भी अपनी असहमति दर्ज करना च...रंग दे बसंती के लिए मैं भी अपनी असहमति दर्ज करना चाहूँगा.. <BR/><BR/>रंग दे बसंती में अपने मित्र की मौत को उसके दोस्त सच्चाई मान लेते है.. लेकिन फिर उनके मित्र पर आरोप लगता है.. नौसिखिए होने का.. फिर उसके मित्र शांति से मोमबत्तिया जलाकर विरोध प्रकट करते है.. तब उन्हे मार दिया जाता है.. डॅंडो से पीटा जाता है.. उनकी आवाज़ को दबाया जाता है.. हर तरह से निराश और हताश होकर ही नौजवान ये निर्णय लेते है.. और ऐसा करने के बाद भी आत्म समर्पण करना चाहते है.. <BR/><BR/>बाकी बातो में अनुराग जी से सहमत हू..कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-8666975966407623782009-01-19T09:48:00.000-08:002009-01-19T09:48:00.000-08:00राधिका..आपके पोस्ट के लिए मेरी पूर्वधारणा बनी हुई ...राधिका..आपके पोस्ट के लिए मेरी पूर्वधारणा बनी हुई है कि वह गंभीर और सारगर्भित ही होगी.<BR/>आपने महत्वपूर्ण विषय उठाया है...<BR/>इस तरह की प्रेम और प्रतिशोध पर आधारित कहानियो या फिल्मो की सफलता और लोकप्रियता का मुख्य कारण यह है कि ,अपने रोजमर्रा के जीवन में पग पग पर कठिनाइयों,भ्रष्टाचार,आघात,दवाब सहता हुआ आम आदमी,फ़िल्म देखते हुए जब परदे पर कहानी से तादात्म्य स्थापित कर चुका होता है तो उस समय नायक ( जो एक सच्चा और अच्छा आदमी है) को जीतते हुए देखना चाहता है.अपने जीवन में बहुत सारे मोर्चों पर हारता हुआ व्यक्ति, कहानी/कल्पना की उस दुनिया में अपनी विजय चाहता है.उसके भीतर का आक्रोश कहानी में डूब अपना रास्ता पा जाता है.रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-22028992837893023572009-01-19T09:27:00.000-08:002009-01-19T09:27:00.000-08:00राधिका जी ने अपना मत रखा है जो प्रेम और विवेकशील ह...राधिका जी ने अपना मत रखा है जो प्रेम और विवेकशील होना सीखाये - "गज़नी" फिल्म तो देखी नहीँ -<BR/>"रँग दे बसँती:"देखी है जिसका सँगीत पसँद आया था -लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-44837674307340964502009-01-19T08:32:00.000-08:002009-01-19T08:32:00.000-08:00प्रकाश जी,आपकी जानकारी के लिए बताना चाहूंगी की मैं...प्रकाश जी,आपकी जानकारी के लिए बताना चाहूंगी की मैंने स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास विस्तृत रूप से दिलचस्पी लेकर पढ़ा हैं ,मैं उन नवयुवतीयो में से नही हूँ जो अपने देश और संस्कृति के बारे में बिल्कुल नही जानती या अधकचरी जानकारी रखती हैं,मुझे अपने देश और उसकी संस्कृति और इतिहास से प्रेम हैं इसलिए मैं अपने देश के इतिहास को पढ़ती रहती हूँ,हाँ फ़िल्म पर सभी के अलग अलग मत होना स्वाभाविक हैं किंतु मैं नही मानती की सिर्फ़ जोश में आकर खून हमारे स्वतंत्रता सैनानियों ने किए हैं ,उनका देशप्रेम स्थायी था ,तुरत फुरत नही,मैं कम से कम रंग दे बसंती के नवयुवको की तुलना स्वतंत्रता सैनानियों से करके उनका अपमान नही कर सकती ,मुझे क्षमा करे .RADHIKAhttps://www.blogger.com/profile/00417975651003884913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-90376899861166176902009-01-19T04:53:00.000-08:002009-01-19T04:53:00.000-08:00फिल्म देखे अरसा हो गया है। क्या कहें?फिल्म देखे अरसा हो गया है। क्या कहें?दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-16453108047300017272009-01-19T04:33:00.000-08:002009-01-19T04:33:00.000-08:00और हाँ खून - खच्चर पर याद आया कि आपको स्वतंत्रता स...और हाँ खून - खच्चर पर याद आया कि <BR/>आपको स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भी अवश्य पढ़ना चाहिए !<BR/> <BR/>आशा है आप मेरी बातों को अन्यथा नहीं लेंगी !प्रकाश गोविंदhttps://www.blogger.com/profile/15747919479775057929noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-70329965134972527382009-01-19T04:31:00.000-08:002009-01-19T04:31:00.000-08:00'रंग दे बसंती' और 'हिन्दुस्तानी' में नायक जब महसूस...'रंग दे बसंती' और 'हिन्दुस्तानी' में नायक जब महसूस करता है की कोई दूसरा रास्ता नही है न्याय पाने का तो वो क़ानून हाथ में लेते हैं। कभी कभी ऐसी भावनाएं हमारे मन में भी उठती हैंजब लगता है की पूरी दुनिया ग़लत और बस मैं सही हूँ और किसी को कुछ समझाया नही जा सकता। हम सोचते हैं की भगवान् तो सब जानता है वो हमें माफ़ कर देगा। पर जो ग़लत है वो ग़लत है। ये कोई हल नही किसी समस्या का।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-15729637672260091872009-01-19T04:29:00.000-08:002009-01-19T04:29:00.000-08:00आज कल की बकवास फ़िल्मे ही आज के समाज को पसंद आ रही ...आज कल की बकवास फ़िल्मे ही आज के समाज को पसंद आ रही है, ओर हिट जा रही है, वो चाहे गुरू हो,बंटी बबली हो या फ़िर गजनी ओर या डोर... बेकार बतमिजीयो से भरपुर, एक ने तारीफ़ की सभी एक दुसरे को देख कर तारीफ़ करना शुरु कर देते है.. हम नकल क्लरते है विदेशियो की, ओर फ़िर ना घर के रहते है ना घाट के.<BR/>मेने तो गजनी फ़िल्म देखी नही क्योकि आज जिस फ़िल्म की बात करो सभी हिट बोलते है जब देखो तो..... गन्दगी से भरपुर, ना बाबा ना<BR/>धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-73663746339083067742009-01-19T01:14:00.000-08:002009-01-19T01:14:00.000-08:00अनुराग जी इन सभी स्वतंत्रता सैनानियों के जीवन चरित...अनुराग जी इन सभी स्वतंत्रता सैनानियों के जीवन चरित्र हमने बचपन में पढ़े हैं ,इन्होने जो भी काम किया हैं उनकी तुलना चार युवको के चार देश द्रोहियों को महज जोश और गुस्से में आकर मारने से नही की जा सकती ऐसा मुझे लगता हैं ,दूसरा मुझे लगता हैं की फ़िल्म अगर केवल एक प्रेमकहानी न हो या मजाकिया न हो और उसका उद्देश्य समाज को जागरूक बनाना हो तो उसे केवल नाम बताने तक सिमित नही रहना चाहिए . चेतना का अर्थ केवल विरोध या जोश में आकर कुछ कर देना नही होता ,चेतना का अर्थ होता हैं जागरूकता ,विवेकशील विचार और उन्नत कर्म जिससे स्वयं और देश का भला हो,ग़लत होने पर विद्रोह करना ही चाहिए,पर विद्रोह , द्रोह नही होना चाहिए . और अगर सच्चा आक्रोश दिखाना ही था तो वह थोड़ा बुद्धि और ह्रदय दोनों इस्तेमाल कर का भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ जन चेतना निर्माण कर सकते थे,राजनीती में जाकर इसे नेताओ का सफाया कर सकते थे ,देश की न्याय वयवस्था को उन्नत बना सकते थे ,आख़िर वह पढ़े लिखे युवक थे , उन्होंने चार को मारा और ख़ुद भी मर गए ,इस तरह मरने मारने से स्वतंत्रता सैनानी नही बना करते .ऐसा मुझे लगता हैं .RADHIKAhttps://www.blogger.com/profile/00417975651003884913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-42503545144047115402009-01-18T23:39:00.000-08:002009-01-18T23:39:00.000-08:00रंग दे बसंती की बारे में कहे गये आपके तर्कों से मु...रंग दे बसंती की बारे में कहे गये आपके तर्कों से मुझे असहमति है....अपितु इस फ़िल्म को मै एक ऐसी चेतना के तौर पर देखता हूँ जो इस पीड़ी को कम से कम भगत सिंह ओर आजाद के आलावा बिस्मिल ओर अशफाक उल्ला खान का नाम तो बताती है..वरना इस पीड़ी को ब्रिटनी स्पीयर्स के लेटेस्ट का नाम पता है..पर हमारे देश के शहीदों का नाम नही.. उनके स्कूल की किताबो में अब कोर्स बदल गये है ओर शहीदों के चेप्टर अब दूरदर्शन की तरह केवल सरकारी स्कुल की किताब में मिलते है....उस फ़िल्म में चार सामान्य जीवन जीते छात्रों को जीवन की गंभीरता ओर हमारे भ्रष्ट सरकारी तंत्र ओर अकर्मण्य न्याय व्यवस्था के प्रति आक्रोश दिखाना था...ओर मुझे निर्देशक अपने उद्देश्य में सफल लगे....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-70548140333268804352009-01-18T23:15:00.000-08:002009-01-18T23:15:00.000-08:00आजकल जो बिकता है वही छपता है , फ़िर छपाई चाहे अखबा...आजकल जो बिकता है वही छपता है , फ़िर छपाई चाहे अखबार की हो, टी वी चॅनल की हो या फ़िर फ़िल्म की । सब बेचो तन से वतन तक जो भी बिके बेचो । बस यही राज है ।<BR/><BR/>सुशील दीक्षितसुशील दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/02670860200583405414noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-35330763812422569832009-01-18T23:06:00.000-08:002009-01-18T23:06:00.000-08:00bahut sahi lagi aapki baat ,prem ki basha sabse ac...bahut sahi lagi aapki baat ,prem ki basha sabse acchi hai yaid koi samjh sake toरंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-28081600868048040472009-01-18T22:42:00.000-08:002009-01-18T22:42:00.000-08:00बहुत सुन्दर बात कही---मेरे पृष्ठगुलाबी कोंपलें | च...बहुत सुन्दर बात कही<BR/><BR/>---मेरे पृष्ठ<BR/><A HREF="http://pinkbuds.blogspot.com" REL="nofollow">गुलाबी कोंपलें</A> | <A HREF="http://prajapativinay.blogspot.com" REL="nofollow">चाँद, बादल और शाम</A> | <A HREF="http://techprevue.blogspot.com" REL="nofollow">तकनीक दृष्टा/Tech Prevue</A> | <A HREF="http://anandbakshi.blogspot.com" REL="nofollow">आनंद बक्षी</A> | <A HREF="http://vinayprajapati.wordpress.com" REL="nofollow">तख़लीक़-ए-नज़र</A>Vinayhttps://www.blogger.com/profile/08734830206267994994noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2614229443138949777.post-91479147107734802622009-01-18T22:14:00.000-08:002009-01-18T22:14:00.000-08:00bahut pate ki baat kahi hai aapne...bahut pate ki baat kahi hai aapne...Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/17320191855909735643noreply@blogger.com