कभी - कभी डर लगता हैं ,की झूठेपन और लालच से भरी इस दुनिया में हम जैसी सच की राह पर चलने वाली ,अंधी होकर समाज के नियमो को सहज स्वीकार न करने वाली ,अन्याय और अत्याचार के खिलाफ अकेले ही खड़ी हो जाने वाली लड़कियां सुरक्षित हैं ? रहेंगी ? लड़की हो डर के रहो ,सुरक्षित रहो और समाज की नज़रो में ऊँची बनी रहने के लिए चाहे तो प्राण भी दे दो ,पर चुप रहो ,सहती रहो ,प्रतिकार मत करो . सजी संवरी सी , हंसती -खेलती एक गुडिया बनी रहो ,जिसे देखते कोई कहे ,बेटी हैं ,बहूँ हैं ,नातिन हैं ,माँ हैं ,घर की इज्जत हैं ,पत्नी हैं .पर कोई यह न कहे की यही वो जो हटके हैं ,औरो से अलग अपनी राह में चलने वाली शक्ति हैं . अब आज ये सब क्यों कह रही हूँ क्योकि ,आज भरे स्टेशन पर एक नाटक हुआ ,एक और मैं थी जो सच्चाई का हाथ थामे बैठी थी ,एक और वह था जिसकी आवाज आसमान को भी फाड़ दे ,और टोन ऐसा की सभ्यता शर्मा जाये .
सुबह के ११:३० का समय ,बैंक से निकल कर स्टेशन पहुचने की जल्दी में मैंने एक ऑटो पकड़ा ,स्टेशन आते ही मैंने उसे तय २० रूपये निकाल कर दिए , मैं आजकल ट्रेन से सफ़र करती नहीं तो मेरे पास कोई पास नहीं था ,जाहिर हैं टिकट की लाइन में खड़े होकर मुझे टिकिट भी निकालना था और मैंने १२:३० बजे का अपॉइंटमेंट मेरी एक म्यूजिक थेरेपी की पेशेंट को दे रखा था .
ऑटो वाले ने २० का नोट देखते ही चिल्लाना शुरू कर दिया " मेडम ५० रूपये होते हैं " मैंने कहाँ भाई मीटर क्यों नहीं डाला ,दुरी के हिसाब से २० ही होते हैं बात भी हुई थी .,वो और गरजने लगा " अरे औकात नहीं हैं तो ऑटो में क्यों बैठते हो ,पैसा दो मेरा आदि "
मैंने कहा भाई ईमानदारी से जो होता हैं वो लो . मीटर से हज़ार रुपया भी होगा तो दूंगी ,झूठा पैसा नहीं दूंगी .
चुकीं मैं जल्दी में थी और उससे बात करने का कोई फायदा नहीं था तो टिकिट लेने चली गयी ,थोड़ी देर बाद वह वहां भी प्रकट हो गया ,मेडम पैसा दो ,औकात नहीं हैं तुम्हारी , और फालतू की बुरी बाते .
मैंने उसे कहा मैं तुम्हारी कंप्लेंट करुँगी ,ऑटो का नंबर नोट किया ,आसपास खड़े लोगो को बताया ,फिर भी उसकी हिम्मत मुझे मेरे पैसे देते हुए कहने लगा " " औकात नहीं हैं ऑटो में बैठने की ,ये रख लो पैसे जाओ वडा पाव खाओ ,मीटर से नहीं चलता ऑटो ,चलो मैं वापस लेके चलता हूँ तुम्हे ,दिखाता हूँ कितना पैसा होता हैं "
सारा स्टेशन तमाशा देख रहा था ,मैंने वापस पैसे उसे थमाये और गुस्से से आगे बढ़ दी .
वहां खड़े लोगो और सिड्को के एक सिक्यूरिटी ऑफिसर ने मुझे सलाह दी की मुझे इसकी पोलिस कंप्लेंट करनी चाहिए . मेरा पास उतना समय नहीं था .मैंने RTO क्लाम्बोली के नंबर घुमाये ,पर सारी लाइन्स व्यस्त !
JPR रेलवे हेल्प लाइन को फ़ोन किया उन्होंने कहा हम आपकी इसमें मदद नहीं कर सकते आप नजदीकी पोलिस स्टेशन जाये .
अलबत्ता !! इस बीच ऑटो वाला भाग चूका था ,मेरे पास उसका नंबर ३८८७ नोट था ,लेकिन पोलिस स्टेशन जाना यानि और २ -३ घंटे बर्बाद करना . मुझे फाउंडेशन पहुंचना जरुरी था ,सो बिना कंप्लेंट किये निकल ली .
खैर आज का मामला तो निपट गया ,मेरी जगह कोई दूसरी सीधी लड़की होती तो ऑटो वाले की चीखती आवाज उसका वो भयंकर अंदाज़ और धमकी सुनके डर के जितना मांगता दे देती ,पर मैं तो मैं हूँ ,अन्याय के सामने कभी सर न झुकाने वाली .
यह कहानी आज की नहीं ,रोज की हैं ,या तो आप अपनी कार से जाओ या कैब से क्योकि ऑटो वाले मीटर डालते नहीं ,घर के बहार जो ऑटो स्टैंड हैं ,वहां कई बार जब आपकी गाड़ी पास न हो ,कैब न मिले ,तो किसी इमानदार मीटर से जाने वाले ऑटो वाले के इंतजार में आधा घंटा भी बिताना पड़ता हैं .क्योकि स्टैंड पे खड़े ऑटो वाले जो मुंह में आये वो पैसे बोलते हैं ,जिस जगह जाने के लिए ३०-३५ रूपये लगते हैं लोगो को वहां पहुचने के लिए ऑटो वालो को ८०-१०० रुपये देने पड़ते हैं ,अगर समय रात का हो तो नाईट चार्जेज के नाम पे दुगुने से भी अधिक राशी वो लोग मांगते हैं .
कुछ लोग बोलते हैं पर ज्यादा कर लोग या तो चुप सह लेते हैं हैं या बस ,कार ,कैब से निकल लेते हैं .
पर मुद्दा यह हैं की यह सब कब तक ? RTO वाले बड़े जोश से कम करते हैं चार दिन ,पांचवे दिन से वहीँ हाल .क्या किया जाये इन ऑटो वालो और इनकी तरह के लोगो का .
शर्म आती हैं मुझे की मेरे देश में इस तरह के लोग अपना राज चलाते हैं और कोई कुछ नहीं कर सकता . उस पर आप लडकी हो तो आपको उनसे कोई भी बात कहने से पहले सौ बार सोचना पड़ता हैं क्योकि प्रश्न आपकी सुरक्षा का हैं .
न जाने वो कौनसी घडी आएगी जब लडकिया अपना स्वाभिमान संभाले सर उठाये जी पाएंगी ,हर बुरी बात का विरोध कर देश के कुछ लोगो को सुधार सकेंगी ,न जाने इस भारतीय समाज में लडकियाँ कब शक्ति बन पाएंगी ................................