ईश्वर के हर रूप ने हमें मोह से बचने का उपदेश दिया ,यह जग का पसारा मोह माया मिथ्या हैं ...लेकिन मानव मन की क्या कहिये ! उसे तो इस मोह माया में उलझे रहना ही परम श्रेष्ठ कर्म लगता हैं । यह मोह माया में फ़सा मानव मन कभी किसी इंसान से मोह कर बैठता हैं कभी कुछ चीजो से .
कुछ ऐसी चीजे जो घर में बरसो सिर्फ़ रखी रहती हैं,उनका कोई उपयोग नही होता लेकिन उनका मोह भी नही छूटता ।
कुछ आधे अधूरे शब्द लिखे कागज़ ,कुछ सूखे हुए फुल ,कुछ सालो पुराने गहने ,कुछ फटी किताबे और न जाने कितनी अनुपयोगी वस्तुए । बड़े शहरो में इंसानों के रहने के लिए घर नही,चार चार लोग एक कमरे के घर में जैसे तैसे अपना जीवन गुजारते हैं ,ऐसे में इन सब चीजों को सम्हाल कर रखना ......!!लेकिन कभी कभी इंसानों से ज्यादा प्यारी कुछ चीजे होती हैं न ।
बचपन में सोचती थी माँ घर में बने मालों में कितना सामान ठूस कर रखती हैं,इस सामान को मैंने बरसो वही का वही रख देखा,फेकती क्यो नही माँ ये फालतू पसारा ................
फ़िर एक दिन माँ की अनुपस्तिथि में घर साफ करने की धुन में आकर मालों पर से कुछ सामान निकाल कर कचरे में फेक दिया और माँ के आने पर जम कर डाट खायी .क्या था उस सामान में ऐसा ?
नानाजी की पुरानी लाठी , बरसो पुरानी साडी जो दादीजी ने माँ को पहली बार मिलने पर दी थी ! मेरा बचपन का पालना ,कुछ पीतल के बर्तन जो समय के साथ अपनी चमक और रूप दोनों खो चुके थे पर शादी के समय माँ को नानी ने दिए थे । एक पुरानी फोटो जिसका रंग उड़ गया था ,फ्रेम उखड़ गया था । फ़िर माँ ने इतना क्यो डाटा ?
आज समझ में आता हैं जब अपने ही घर में रखे कुछ सामान ,जो बेवजह जगह घेरे हैं ,फेकने का मन नही करता ,हर बार फेकते समय हाथ रुक जाते हैं ,आँखे गीली हो जाती हैं ,मन कहता हैं इसे मत फेक ।
हम सब के जीवन में कुछ इसी चीजे होती हैं जो कितनी भी पुरानी हो जाए ,उनका महत्व कम नही होता ,वह हमारे जीवन से,मन से ,आत्मा से कुछ इस कदर जुड़ी होती हैं की उन्हें फेकने का जी ही नही करता ।
मेरे घर में भी हैं ऐसी कुछ चीजे ....आरोही के पुराने कपड़े ,कुछ टूटे फूटे खिलौने जिनके हाथ पैर भी सलामत नही ,कुछ आधी लिखी कविताओं से भरे पन्ने ,कुछ सालो पुरानी मेरी कॉपियां ,कुछ पतिदेव ने सम्हाले १0-१५ साल पुराने बिल ,जब उन्होंने पहली बार अपने पैसो से साडी खरीदी थी अपनी माँ के लिए ,एक घड़ी का डिब्बा उस घड़ी का जो उनके सबसे अच्छे दोस्त ने उन्हें उनकी कमियाबी पर दी थी ,घड़ी तो खो गई वह पुठ्ठे का डिब्बा आज भी सलामत हैं । एक पेकिंग पेपर जिसमे उनकी दीदी ने उन्हें पहला केल्ग्युलेटर तोहफे में दिया था ।
कभी कभी चीढ जाती हूँ ,सोचती हूँ आज इस कचरा पट्टी को उठा कर फेक ही दूंगी ,पर तभी नज़र आती हैं मेरे अलमारी का पुरा एक खाना घेरे इठलाती मेरी सहेलियों की चिठ्ठिया ,मेरी बेटी ने पहली बार पहनी मालाये ,मेरे भाई ने पहली बार भेजे कुछ तोहफे ,कुछ चीजे जो मेरे कभी काम नही आती । लेकिन उनका होना मेरे मन को बडा सुकून देता हैं ,जब भी कभी मन उदास होता हैं उनको देखकर फ़िर कुछ भूली बिसरी खुशिया याद आती हैं ,आँखे फ़िर सजल हो जाती हैं ,चेहरे पर मुस्कान लौट आती हैं ,हर बार उन्हें कचरा समझ कर मैं फेकना चाहती हूँ और हर बार बडे प्रेम से जतन से उन्हें सम्हाल कर रख देती हूँ । बरसो बीत जाते हैं ,घर बदल जाते हैं,जिंदगी आगे बढ़ जाती हैं ,लेकिन इन चीजों का मोह जाता नही हैं ,ये चीजे जिंदगी से दूर जाती नही हैं ।
ये 'बेकार' की चीजें हजारों यादें समेटे हुए रहती हैं... किसी डायरी की तरह. मेरे पास भी ऐसी कई चीजें पड़ी है ढेर सारे टिकट, बिल, चिट्ठियाँ... स्कूल में जमा की गयी फीस की रसीद... पहले कम्प्यूटर का कोटेशन... स्कूल में हुए टेस्ट के पेपर. अनगिनत चीजें है अनगिनत यादें लिए हुए... !
ReplyDeleteअगर वो भूली बिसरी यादें दुःख दें , तो सहेज कर रखना व्यर्थ है | ये जितना संभालेंगे , बोझ की गठरी बड़ी होती जायेगी | अच्छा है वो चीजें अगर किसी के काम में आने लायक हैं तो उनका सही इस्तेमाल हो | मैं तो यही सोचती हूँ , फिर भी मन को आदत होती है अपने प्यारे भावों से चिपके रहने की | आपने बहुत सही लिखा है |
ReplyDeleteआपके इस लेख ने अभिभूत कर दिया। पुरानी चीजों के प्यार और उनका हर पल अपने पास बने रहने का एहसास हमें जिंदा रखता है। इन्हीं चीजों के साथ हम जुड़ना भी सीखते हैं।
ReplyDeleteबहुत शानदार। बधाई।
मेरे पास नयी चीजों से ज्यादा पुरानी ही चीजे मिलती है.. अपनी पहली कमाई वाले कप में आज भी सुबह की चाय पीता हूँ .. पुरानी परफ्यूम की खाली बोतले.. बंद पड़े पेन.. गिफ्ट के रैपर .. और भी ना जाने क्या क्या.. ऐसी ही एक कहानी भी पढ़ी थी एक बार 'माँ का कबाड़' सच मानिए बहुत रोया था उसे पढ़कर..
ReplyDeleteआपकी पोस्ट के इस थोट को सलाम!!
जिस दिन इन्हें फेंकेगी घर खाली हो जायेगा........बस मिजाज़ बदलने के लिए "रॉक ओन" देख लेना
ReplyDeleteजीवन के इन्द्रधनुष का ये भी एक रंग है
ReplyDeleteजब खुद की बारी आती है .. तब समझ में आता है कि .. सत्य क्या है .. यह मोह ही तो है .. जो हमें संसार से बांधे हुए होता है .. बिना मोह के क्या हर्ष .. क्या विषाद ?
ReplyDeleteइन्सानी प्रवृति है-मोह नहीं त्याग पाता और जाने कितनी कैसी कैसी यादें सहेजे जिये जाता है.
ReplyDeleteसुन्दर आलेख.
अगर ज़िंदगी में मोह नहीं, तो जीना व्यर्थ है फिर वो चाहे किसी से भी हो।
ReplyDeleteअद्भुत लेख
बहुत सी चीजों से मोह टूट ही नहीं पाता है ..खासकर पुराने डायरी के पन्ने .और भी बहुत कुछ ..जिनसे घर का घर होने का एहसास बना रहता है ...अच्छी लगी आपकी पोस्ट ..
ReplyDeleteमैंने भी अपनी बेटी की कुछ चीजें संजो कर रखी है। कुछ चीजों की कीमत नही होती।
ReplyDeleteपोस्ट बढ़िया है। सूक्ष्म अनुभूतियों की भावुक अभिव्यक्ति। ज्यादातर लोगों के साथ ऐसा होता है।
ReplyDeleteचंद लोग मेरे जैसे भी होते हैं। पुरानी चीज़ों से बहुत मोह नहीं है, पहले कभी था। कितना बटोरें, कितना समेटे? मैने अपनी कविताएं तक सहेज कर नहीं रखीं। होता ये है कि ये सब उसी दिन देखने में आती हैं जिस दिन घर की सफाई होती है। क्या फायदा? मैं ढूंढ ढूंढ कर ऐसी चीज़ों को ठिकाने लगाने का प्रयास करता हूं। अधिकारपूर्वक अपनी चीज़ों को करता हूं। मेरी पहली नौकरी की वस्तुएं, पहली खरीद जैसी कोई चीज़ मेरे पास नहीं है, न ही कभी उन्हें इस भावना से सहेजा।
हां, म्यूजियम में भी सिर्फ युग के इतिहास का टर्निंग प्वाइंट बताने वाली सामग्रियां ही देखता हूं बाकी राजा जी का कोट और रानी जी का लहंगा जैसी वस्तुओं को दरकिनार कर देता हूं :)
सुन्दर पोस्ट! अच्छा लगा इसे पढ़कर!
ReplyDeleteपुराणी चीज़ों से दिली लगाव हो जाता है ...ये सच है
ReplyDeleteजिंदगी के हसीन पलों से जुडी प्रत्येक चीज एक खूबसूरत एहसास की तरह तन मन में समा जाती है। इस शानदार संस्मरणात्मक आलेख के लिए बधाई।
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TSALIIM.
-SBAI-
kavita-may prabandh hai yah to. bahut marmik bindu pakad liya aapne.
ReplyDeleteलग रहा है जैसे ,अपने ही मन की बातें पढ़ रही हूँ....
ReplyDeleteबहुत बहुत सही कहा आपने...
ye purani cheejein hi to ek matra jariya hain beete dino ko mahsoos karne ka varna beete pal to jeeven ki gahma gahmi me jaane kahan choomantar ho jate hain....hai naa! :)
ReplyDeleteaapki is post ko padhkar man bheeg gaya hai .. main apne gar me apne purani cheeje sahejta aaya hoon .. pahli flight ka tkt , pahli salary ka 100 rs. aur bhi jaane kya kya .. ...man kahin bahut baras peeche chala gaya ..
ReplyDeleteaapki lekhni ko salaam ..
meri dil se aapko badhai ..
meri nayi poem par kuch kahiyenga to mujhe khushi hongi sir ji ..
www.poemsofvijay.blogspot.com
vijay