सुबह का समय,मैं बादल की किसी टुकड़े पर सवार पूरी दुनिया देख रही हूँ ,सुबह सुबह मेरे घर के चारो तरफ कोहरा छाया रहता हैं,इतना कोहरा की आसपास के घर भी ठीक से नज़र नहीं आते.लगता हैं मेरा घर किसी परी की कहानी की तरह बादलो के बीच बना हुआ हैं.ठीक नानी की परी की कहानी जैसे ,वहाँ होता था एक राजा एक रानी और एक राजकुमारी.उस राजकुमारी का महल भी तो यूँही आसमान में एक बादल पर होता था .आसमान में देखा कुछ रंग बिखरे हुए थे ,रंग ...............................
राधिका ..................................अचानक माँ की आवाज आई .चल अता खूब झाल होली खेलन (चलो अब बहुत होली खेलली ).
होली का पहला दिन ,भारतीय संस्कृति में बुरे पर अच्छाई की जीत का एक और दिन .शाम के यहीं कुछ ८-८:३० का समय .होलिका जल रही हैं और हम बच्चे उसके पास नाच रहे हैं .धुलहंडी कल हैं पर आज रंग हमारी मुठ्ठियों में बंद रह ही नहीं रह पा रहे .माँ आज तो सिर्फ गुलाल ही खेलेंगे न! खेलने दो न! वहाँ होली जल रही हैं ,माँ और आस पास की काकू ,आत्या ,आजी मिल कर उसकी पूजा कर रही हैं .हम उत्साह से दुने हो रही हैं .
बाबा ...........बाबा आज नहीं न बजाओ सितार ,चलो न रंग(color) लायेंगे.बाबा मुझे खूब सारा नीला रंग खरीदना हैं ,नहीं बाबा ताई को कुछ नहीं लेकर दोगे तुम ,ताई मुझे हरा रंग चाहिए ,ये बहुत अपनी अपनी चलाती हैं .बाबा में सबसे छोटी हूँ मेरी पसंद का कलर नहीं लाया तो मैं कुट्टी ,मुझे ओरेंज रंग खरीदना हैं ,बस .बाबा ,चलो न चलो न बाज़ार जायेंगे .ऐ आई बाबा ला म्हण न ,वो फिर से सितार बजने में लग गए . बाबा हमेशा लाल रंग खरीद लाते .कहते बहुत पक्का रंग हैं छूटेगा ही नहीं .
मुझे याद हैं बाबा को चुटकी भर रंग लगाने के लिए भी उनको मानना पड़ता था ,और हम पर होली का भुत सवार रहता था .
किरण आंटी दरवाजा खोलो न ...............हमेशा की तरह हम बच्चो की टोली उनके दरवाजे पर और उनका दरवाजा होली के दिन बंद .फिर आपस मैं हम बच्चो की कुछ महान चर्चा ,मिशन आंटी को रंगना .और इस मिशन की लीडर मैं . आंटी देखो सब बच्चे गए . मैं हूँ राधिका ,कोई नहीं हैं अब .आंटी आई ने तुम्हारे लिए करंजी ,मठरी भेजी हैं .दरवाजा खोलो न .सच राधिका ??सच बोल रही हैं तू .तुझे पता हैं मुझे होली नहीं अच्छी लगाती .खर म्हणते आंटी .बिचारी आंटी वो क्या जाने उन्हें फसाया जा रहा हैं ,दरवाजे के खुलने के साथ ही आंटी पर रंगों की बौछार .....................होली हैं ............लाल काला ,गुलाबी जिसके हाथ में जो रंग वह सारा आंटी के सुंदर चेहरे पर ,पास खड़े अंकल जोरजोर से हंस रहे हैं .हम बच्चे मिशन नेक्स्ट पर............
मुझे याद नहीं होली की पहली रात मैं कभी भी सोयी हूँ.आई कहती अरे सोजा ,कल होली खेलनी हैं न .पर मैं पूरी पूरी रात जागकर सोचती रहती ,फलां काकू को कैसे रंगाया जाए ,फला के आई बाबा पर कैसे रंग डाला जाये .हम १०-१५ बच्चो की टोली .आई चिल्लाती रहती अरे घर नका घानेरड़ करू ,(घर मत गंदा करो ).ऐ अग़ राधिका .बघ मामा आलाऐ तेला नमस्कार कर .नमस्कार मामा ,मामा के चरणों में जैसे तैसे नमस्कार रखकर फिर भागे हम सब मिशन होली पर ............दोपहर के दो बज जाते,उस पर अगर बुआ और उनकी बेटियाँ आजाती तो फिर कहना ही क्या .घर की छत आँगन सब रंगमय हो चुके होते और बारी आती बुआ के घर की .
आईने में देखकर पता ही नहीं चल रहा था की हम तीनो में से कौन राधिका हैं कौन गीतिका और कौन याशिका.फिर शुरू होती चेहरा साफ करने की विधि ,दो दो घंटे कभी बेसन कभी तेल कभी क्रीम लगा लगा कर रगड़ रगड़ कर चेहरा साफ़ ,हद तो तब होती जब रंगों वाले हाथो से ही हम खाना भी खा लेते और आई की बनायीं हुई मठरी,करंजी,पपड़ी भी .
मम्मा ...............मम्मा ..........कलर कहाँ गए .....मुझे खेलना हैं न !तुम आज मत कम्प्यूटर पर लिखो और वीणा भी नहीं बजाना हैं न .चलो न होली खेलते हैं .इस एक आवाज से मैं बरसो आगे बढ़ आई .अरु न जाने क्या - क्या कह रही हैं ,ये रंग वो रंग.मैं हतप्रभ सी उसे देख रही हूँ .समय कितना बदल गया हैं न .न जाने कितने साल बाद इस साल मैं होली खेलूंगी वह भी अपनी बेटी के साथ ,उसने तीन पिचकारीयां खरीदी हैं ,बिलकुल मेरी ही तरह उसे भी कल सारे बाज़ार में बिक रहे रंग खरीदने थी मजे की बात तो यह हैं मेरे पापा की तरह उसके पापा को भी होली बिलकुल पसंद नहीं पर मैं बेफिक्र हूँ उन्हें रंगने के लिए आरोही जो हैं .
कितनी लम्बी हो गयी न ये पोस्ट ....बचपन की यादे होती ही कुछ ऐसी हैं.आप सभी को होली की बहुत सी शुभकामनाये .ईश्वर करे होली के रंग आपके जीवन को खुशियों के रंग से भर जाये .
रोचक संस्मरण । सही बात है बचपन की यादें ऐसी ही होती हैं अगर याद करते रहें तो कभी खत्म ही न हों। होली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteहोली में डाले प्यार के ऐसे रंग
ReplyDeleteदेख के सारी दुनिया हो जाए दंग
रहे हम सभी भाई-चारे के संग
करें न कभी किसी बात पर जंग
आओ मिलकर खाएं प्यार की भंग
और खेले सबसे साथ प्यार के रंग
अच्छा लगा पढ़्कर आपका संस्मरण!
ReplyDeleteये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.
आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.
-समीर लाल ’समीर’
रंग बिरंगे त्यौहार होली की रंगारंग शुभकामनाए
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़्कर आपका संस्मरण
ReplyDeleteहोली पर्व पर शुभकामनाये और बधाई
aap bchpn me lg rha hai bhut shrarti thin are shrarti nhi ntkht thi bchpn ka yhntkhtpn hi to nishvhhl hota hai yhi to bchpn hota hai
ReplyDeleteaap ko holi ki use jivntata se mnane ki bitiya ko khushi dilane ki apne un ko holi me mn tk bhigone ki bhut 2 bdhai
dr.vedvyathit@gmail.com
http://sahityasrjakved.blogspot.com
बहुत ही भावप्रवण चित्रण। राधिका आपने तो बचपन की यादें ताजा करा दी। बहुत शानदार।
ReplyDeleteहोली पर आपको अनेक शुभकामनाएं
उदकक्ष्वेड़िका …यानी बुंदेलखंड में होली
सुन्दर संस्मरण!होली मुबारक!
ReplyDeleteमजेदार ओर बचपन की होली की यादे समेटे आप की यह रचना बहुत सुंदर लगी, हम सब के बचपने दिन एक से ही तो होते है ना, वही शरारते, वही बचपना, वही खेल.
ReplyDeleteआप को होली की बहुत बहुत बधाई
बढ़िया संस्मरण।
ReplyDeleteआनंद भरा सुखद जीवंत संस्मरण....वाह !!!
ReplyDeleteहोली मतवारी, जब जब आए, दिल कहीं दूर बचपन में वापस लौट जाए....अब तो बस मायने बदल गए हैं...रंग है तो चेहरे पर रंगत नहीं, उल्लहास है तो चेहरे पर चमक नहीं....सही है बचपन के मायने ही अलग होते हैं. वो धमाचौकड़ी की पूछो मत....
ReplyDeleteहोली के बाद आपकी पोस्ट आई नहीं, कहीं अब तक होली का रंग अब तक तो नहीं चढ़ा....