मुझे उसकी आँखे याद आती हैं टिमटिमाते तारो जैसी ...
सुनहली रश्मियों जैसे उसके बाल ...
कोयल की कुँक..सुरसती के गान सी मधुर उसकी बोली
और उसकी बातें ....
कभी कृष्ण की गीता ..कभी माँ की ममता
आँगन में बिखरे हरसिंगार के सहस्त्र फूलो जैसी
या की कहूँ
धवल मंजरी की सुंदर माला ही मानो उसकी हँसी
मृगनयनी ,मेनका ,तिलोत्तमा लजा जाये जिस सौंदर्य को देख
चारूत्व की उस परकाष्ठा जैसी
चन्द्रिका ,चन्द्र लेखा ,चन्द्र कला सी
आसावरी, आभोगी, आरोही मेरी
और ये सिर्फ आरोही की कहानी नही हैं ,दुनिया भर के सब बच्चो की कहानी हैं ,जिन्हें देखकर मैं सब कुछ भूल जाती हूँ और उन्हें ही देखती रहती हूँ ..जिनके होने से माँ पापा को जिंदगी के सही मायने और जीवन की सुंदरता मिल जाती हैं .
जिनके कारण इस रोगी दुखी परेशान बेहाल बडो की दुनियाँ को सपनों के पंख, उम्मीदों का आसमाँ,आनंद के कभी न मुरझाने वाले फुल मिल जाते हैं ...हमारी जिंदगी में आने के लिए ढेर सारा शुक्रियाँ बच्चो ...थैंक्स ...
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति शब्द संयोजन कमाल का बधाई
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति बालदिवस की शुभकामनायें ....
ReplyDeleteसच में बहुत आनन्द देते हैं, बच्चों के क्रिया कलाप..
ReplyDeleteबिलकुल सत्य वचन
ReplyDeleteभाव पूर्ण...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर बात कही...
अति उत्तम!!
ReplyDeleteबहुत प्यारी सी कविता ...सुंदर पोस्ट
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