एक छोटा सा आँगन और आँगन में बिखरे कुछ चावल के दाने ...फुर्र र रर .. से उड़ कर आती फुदकती इठलाती एक छोटे से दाने को मुँह में उठा हवा में पंख फैलाती सामने वाले पेड़ पर बने छोटे से आशियाने में छुपती छुपाती वह ..उसके आने से हम बच्चो के चेहरों पर बासमती चावल के दानो सी खिली खिली मुस्कान आती ,उन के पीछे दौड़ कर लगता इन्ही की तरह फर्र र र ..से उड़ कर किसी दिन हमारे सपनो को छू लेंगे हम..
वह हमारी सखी संगिनी थी ..बिन बुलाये ही हमारे आँगन में आ जाती और इंतजार करती की उसे कोई भरपेट खाना खिला दे ..कभी कभी इस जबरदस्ती के आतिथ्य पर हम कुछ तुनक से जाते ,क्यों दे इसे हम खाना ??? पर कभी किसी सवेरे उठते ही अगर वह नहीं आती तो मन कुछ उदास हो जाता ..वह क्यों नहीं आई ??फिर कुछ चावल ,बाजारी के दाने आँगन में अनायास ही बिखर जाते हमसे और गालो पर हाथ रखे आँगन के एक कोने में बैठ होता रहता उसका इंतजार ...
चिड़ियाँ ...और उसकी चहचहाट ....दिन का अभिन्न अंग हुआ करती थी ...छोटी छोटी सुन्दर सुन्दर चिड़ियाँ मुझे हमेशा से ही प्रिय रही हैं ...कल परसों जब वापस उसी आँगन जाना हुआ तो उनकी नामौजूदगी का सूनापन कुछ अखर सा गया मुझे ..माँ चिड़ियाँ क्यों नहीं आ रही ? "नहीं रे अब नहीं आती चिड़ियाँ "
जिस चिड़ियाँ ने बचपन का पहला गीत सिखाया ,हमें अनेकता में एकता का पाठ सिखाया ,पहली आवाज़ सुनाई,बचपन के सपनो को पहले पहल स्वपन दिए ,जिसने बताया किस तरह एक छोटा सा प्राणी दिन भर उड़ उड़ कर अन्न के दानो को बिना थके इकठ्ठा करता हैं और पहला पहला निवाला अपने बच्चे के मुँह में डालता हैं ,कितनी ही सुबहों को जिसने अपनी चहक से सुबह का सम्मान दिया ..इस छोटे से प्राणी के कितने उपकार हैं हम पर..
http://www.youtube.com/watch?v=R-tTOJ1RvUY
हम मनुष्य ..एक बार फिर बधाई के पात्र हैं ..कभी नहीं सोचते हम स्वयं के आलावा किसी और के बारे में फिर भी मनुष्यत्व की बातें करते हैं ...इन नन्हे जीवो की अचानक हो रही गुमनामी का कारण भी हमारी ही स्वार्थपरता हैं ..शहरीकरण ..बढ़ते मोबाईल टॉवर ,प्रदुषण .
आस पास की सुन्दरता सुन्दर जीवो को हम ही नष्ट कर रहे हैं ...धिक्कार हैं हम पर ...
कितना अच्छा लगता अगर आज मेरे घर की बालकनी में चिड़ियाँ आती उन्हें देख खिलखिलाती मेरी बेटी .कहती माँ चिड़ियाँ कितनी प्यारी हैं ...
इस प्यारे से स्वार्थ के लिए अपनी ही धुन में बढ़ते हमारे स्वार्थी कदम एक बार उन सब के बारे में भी तो सोच सकते हैं जिन्हें हमारी ही तरह ईश्वर ने बनाया हैं ..इतने काबिल हैं हम की तमाम तरह की मशीने उपकरण बना रहे हैं ...न जाने कितना तकनिकी विकास कर लिया हैं हमने ..क्या हमसे यह सच में मुमकिन नहीं हैं की अपने विकास के साथ साथ हमारे इन संगी साथियों के अस्तित्व की रक्षा के बारे में भी कुछ प्रयत्न करे ?
क्या इतना कठिन हैं यह की कुछ ऐसा करे की हम भी आगे बढे पर हमारे आँगन न सही बालकनी में ही कुछ चिड़ियों का डेरा हो,हमारे घर में हमारे साथ इनके भी परिवार का बसेरा हो ?
नीड़ न दो चाहे टहनी का आश्रय छिन्न भिन्न कर डालो ..लेकिन पंख दिए हैं तो आकुल उडान में विघ्न न डालो ...
नीड़ तो छीन ही लिया हमने,अब मन आकुल हैं मेरा उनकी उड़ान देखने के लिए ..छोटे से पंखो से पुरे आसमान को समेटने का उनका जज्बा देखने के लिए ..पता नहीं क्यों पर दो आसूं उमड़ आये हैं ..मन उस मराठी गीत की वही पंक्ति पुन: पुन: दोहरा रहा हैं ...या चिमण्यांनो परत फिरा ग़....
एक चिड़ियाँ अनेक चिड़ियाँ
वह हमारी सखी संगिनी थी ..बिन बुलाये ही हमारे आँगन में आ जाती और इंतजार करती की उसे कोई भरपेट खाना खिला दे ..कभी कभी इस जबरदस्ती के आतिथ्य पर हम कुछ तुनक से जाते ,क्यों दे इसे हम खाना ??? पर कभी किसी सवेरे उठते ही अगर वह नहीं आती तो मन कुछ उदास हो जाता ..वह क्यों नहीं आई ??फिर कुछ चावल ,बाजारी के दाने आँगन में अनायास ही बिखर जाते हमसे और गालो पर हाथ रखे आँगन के एक कोने में बैठ होता रहता उसका इंतजार ...
चिड़ियाँ ...और उसकी चहचहाट ....दिन का अभिन्न अंग हुआ करती थी ...छोटी छोटी सुन्दर सुन्दर चिड़ियाँ मुझे हमेशा से ही प्रिय रही हैं ...कल परसों जब वापस उसी आँगन जाना हुआ तो उनकी नामौजूदगी का सूनापन कुछ अखर सा गया मुझे ..माँ चिड़ियाँ क्यों नहीं आ रही ? "नहीं रे अब नहीं आती चिड़ियाँ "
जिस चिड़ियाँ ने बचपन का पहला गीत सिखाया ,हमें अनेकता में एकता का पाठ सिखाया ,पहली आवाज़ सुनाई,बचपन के सपनो को पहले पहल स्वपन दिए ,जिसने बताया किस तरह एक छोटा सा प्राणी दिन भर उड़ उड़ कर अन्न के दानो को बिना थके इकठ्ठा करता हैं और पहला पहला निवाला अपने बच्चे के मुँह में डालता हैं ,कितनी ही सुबहों को जिसने अपनी चहक से सुबह का सम्मान दिया ..इस छोटे से प्राणी के कितने उपकार हैं हम पर..
http://www.youtube.com/watch?v=R-tTOJ1RvUY
हम मनुष्य ..एक बार फिर बधाई के पात्र हैं ..कभी नहीं सोचते हम स्वयं के आलावा किसी और के बारे में फिर भी मनुष्यत्व की बातें करते हैं ...इन नन्हे जीवो की अचानक हो रही गुमनामी का कारण भी हमारी ही स्वार्थपरता हैं ..शहरीकरण ..बढ़ते मोबाईल टॉवर ,प्रदुषण .
आस पास की सुन्दरता सुन्दर जीवो को हम ही नष्ट कर रहे हैं ...धिक्कार हैं हम पर ...
कितना अच्छा लगता अगर आज मेरे घर की बालकनी में चिड़ियाँ आती उन्हें देख खिलखिलाती मेरी बेटी .कहती माँ चिड़ियाँ कितनी प्यारी हैं ...
इस प्यारे से स्वार्थ के लिए अपनी ही धुन में बढ़ते हमारे स्वार्थी कदम एक बार उन सब के बारे में भी तो सोच सकते हैं जिन्हें हमारी ही तरह ईश्वर ने बनाया हैं ..इतने काबिल हैं हम की तमाम तरह की मशीने उपकरण बना रहे हैं ...न जाने कितना तकनिकी विकास कर लिया हैं हमने ..क्या हमसे यह सच में मुमकिन नहीं हैं की अपने विकास के साथ साथ हमारे इन संगी साथियों के अस्तित्व की रक्षा के बारे में भी कुछ प्रयत्न करे ?
क्या इतना कठिन हैं यह की कुछ ऐसा करे की हम भी आगे बढे पर हमारे आँगन न सही बालकनी में ही कुछ चिड़ियों का डेरा हो,हमारे घर में हमारे साथ इनके भी परिवार का बसेरा हो ?
नीड़ न दो चाहे टहनी का आश्रय छिन्न भिन्न कर डालो ..लेकिन पंख दिए हैं तो आकुल उडान में विघ्न न डालो ...
नीड़ तो छीन ही लिया हमने,अब मन आकुल हैं मेरा उनकी उड़ान देखने के लिए ..छोटे से पंखो से पुरे आसमान को समेटने का उनका जज्बा देखने के लिए ..पता नहीं क्यों पर दो आसूं उमड़ आये हैं ..मन उस मराठी गीत की वही पंक्ति पुन: पुन: दोहरा रहा हैं ...या चिमण्यांनो परत फिरा ग़....
एक चिड़ियाँ अनेक चिड़ियाँ
बहुत भावनात्मक लेख .... अपने स्वार्थ के लिए मानव दूसरे मानव के बारे में नहीं सोचता तो परिंदे क्या हैं ? शिवमंगल सिंह सुमन की पंक्तियाँ सटीक लगती हैं ..... आभार मेरे ब्लॉग पर आने के लिए ...जिसके कारण आप तक पहुँच पायी ...
ReplyDeleteDhnywad sangeeta ji
Deletesangeeta ji se poori tarah sahmat.bahut achchha laga aapke blog par aana shikha ji ke blog ke madhyam se yahan aana hua aur sarthak raha.follow kar rahi hoon taki aage bhi judi rahoon.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद शालिनी जी ...बहुत अच्छा लगा आपका कमेन्ट पढ़कर ..आपका ब्लॉग भी जरुर पढूंगी ..
Deleteनीड़ न दो चाहे टहनी का आश्रय छिन्न भिन्न कर डालो ..लेकिन पंख दिए हैं तो आकुल उडान में विघ्न न डालो ...
ReplyDeleteइस अभिलाषा को वही समझ सकते हैं , जो उड़ान भरना चाहते हैं , पंख कतरना नहीं
वाह अच्छा लगा यहाँ आकर... मुझे भी बचपन से छोटी-छोटी चिडियाँ बहुत ही पसंद हैं... सुन्दर आलेख...
ReplyDeleteDhnywad ..
Deleteprakriti ke ye nanhe se jeev kitna kuch shikhte padhte chale jaate hain ham insaanon ko!!
ReplyDeletebahut sundar bhavpurn sarthak prasuti
Dhnywad Kavita,Aur sabse badi chiz jo ye sikhate hain vah hain bin shart pyar ..jo ham insano ke pas nahi hota ...
Deleteचिड़िया के बच्चे के ऊपर से चौथे फोटो ) जिसमें उसकी चोंच के एक एक और सफेद निशान दिख रहा है) को देखकर चिड़िया की चीं-चीं साथ गुजरी बचपन की सारी दोपहरें याद आ गई। काँच(mirror) में अपने ही फोटो को देखकर उसके साथ लड़ती और काँच पर चोंच से ठक -ठक करती चिड़ियाएं, कई बार माता जी आंगन में उनकी दिन भर की बीट और रोशनदानों में घोंसला बनाने की कोशिश में पूरे आंगन में बिखरे तिनकों को को साफ कर-कर चिढ़ जाती थी।
ReplyDeleteपिछले साल जब गाँव जाना हुआ तो आँगन को एकदम साफ सुथरा देखा और चिड़िया की चीं-चीं भी सुनाई नहीं दी, माताजी को पूछा तो उन्होने उदास मन से बताया कि अब चिड़ियाएं नहीं आती, काश वे होती तो उनकी वजह से अकेलापन तो नहीं लगता।
माताजी के साथ मुझे भी बड़ा दुख: हुआ। हमने एक और निर्दोष प्राणी को खत्म कर दिया।
Apae blog par mera comment..
ReplyDeleteचिड़िया के बच्चे के ऊपर से चौथे फोटो ) जिसमें उसकी चोंच के एक एक और सफेद निशान दिख रहा है) को देखकर चिड़िया की चीं-चीं साथ गुजरी बचपन की सारी दोपहरें याद आ गई। काँच(mirror) में अपने ही फोटो को देखकर अपने ही फोटो के लड़ती और काँच पर चोंच से ठक -ठक करती चिड़ियाएं, कई बार माता जी आंगन में उनकी दिन भर की बीट और रोशनदानों में घोंसला बनाने की कोशिश में पूरे आंगन में बिखरे तिनकों को को साफ कर-कर चिढ़ जाती थी।
पिछले साल जब गाँव जाना हुआ तो आँगन को एकदम साफ सुथरा देखा और चिड़िया की चीं-चीं भी सुनाई नहीं दी, माताजी को पूछा तो उन्होने उदास मन से बताया कि अब चिड़ियाएं नहीं आती, काश वे होती तो उनकी वजह से अकेलापन तो नहीं लगता।
माताजी के साथ मुझे भी बड़ा दुख: हुआ। हमने एक और निर्दोष प्राणी को खत्म कर दिया।
Sahi kaha Sagar ji hamne ek Aur nirdosh prani ki prajati ko takriban vilupt kar diya ...dukhd hain yah
Deleteछोटी चिडिया के पंखों की फड़फड़ाहट से मन स्पंदित हो जाता है।
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग पढने के लिए धन्यवाद प्रवीण जी
Deleteकल 22/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत बहुत धन्यवाद यशवंत जी
Deletebachpan ki yadden taja ho gayi....vicharneey lekh
ReplyDeleteThanks
Deleteसच लिखा है आपने यथार्थ का आईना दिखाता सार्थक एवं भावपूर्ण आलेख....
ReplyDeleteधन्यवाद पल्लवी जी
DeleteBEAUTIFUL feelings based on nature with little bird.
ReplyDeleteMany Thanks... Ramakant ji
Deleteसुन्दर स्पर्शी आलेख...
ReplyDeleteसादर.
धन्यवाद हबीब जी
Deleteआपने अपने भावपूर्ण लेख से..वो समय याद दिला दिया ...चिड़ियों की चहचाहट याद दिला दी.
ReplyDeleteमेरे आलेख को पसंद करने के लिए धन्यवाद डॉ. निधि:-)
Deleteचिड़ियों की आतुरता, तत्परता, फुर्ती ने हमेशा ही एक ख़ुशी के अहसास से मन को भिगो दिया है ....उन्हें बचाना होगा ....बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteधन्यवाद ...
Deleteहृदयस्पर्शी ................भावपूर्ण.............
ReplyDeleteधन्यवाद ...
Deleteबहुत भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteराजीव जी
Deleteभींग गया मैं तो आज.....अब इस मन से कहूँ तो क्या कहूँ....??
ReplyDeleteधन्यवाद राजीव जी ...
Deleteबहुत प्यारे चित्र दिए हैं डॉ राधिका ...
ReplyDeleteआभार !
चिडियां तो सचमुच नही आती अब । मां फिर क्या दिखा कर बच्चे को कौर खिलायेगी , एक घास काऊचा अन एक घास चिऊ चा । चित्र बहुत ही सुंदर, अलग अलग किस्म की चिडियां हैं ।
ReplyDeleteराधिका जी आरोही पर आया बहुत अच्छा लगा आज गौरैया पर आप का सुन्दर लेख डेली न्यूज एक्टीविस्ट में पढ़ा मन को छू गया ...क्या इसे आप दुधवा लाइव पर प्रकाशित करने की इजाज़त देगी http://dudhwalive.com
ReplyDeleteplease send this article along with your image at editor.dudhwalive@gmail.com
thanks
note- pls remove this transparent theme from your blog becoz readers can not read yours' words.
Nice article very informative i really love it and This information is very helpful thank you for it keep it up !!!
ReplyDeleteamazing information thanks
Biology Question In Hindi