रंगमंच से परदे का उठाना ..
नाटक का प्रारंभ ..
दृश्य प्रथम ...
यह दो दृश्य ...दोनों ही जीवन के किनारे हैं ...एक किनारा आपको एक निर्जीव तट पर अकेला छोड़ता हैं दूसरा मानों गंगाकिनारा
राजमहल से बड़े ,जीवन की हर सुख सुविधा से युक्त घर में तीन मनुष्य आकृतियाँ ...शाल्मली .संजीव चिमणी.
माँ भूख लगी हैं ..माँ - माँ आज टीचर ने होम वर्क दिया हैं ,माँ देखो मैंने कलर किया डोरेमोन को ,माँ आज भीम ने छुटकी से कहा की हम दोनों मिल कर ढोलू और भोलू को सबक सिखायेंगे ...माँ.. माँ ..माँ ..माँ
...
शांता मावशी...आलेच ताई ...की आवाज देते /हडबडा कर लगभग चीखते हुए घर की मधुर शांतता को नष्ट करते ,अचानक एक मध्यम आकार,नाटे से कद और काम समाप्त करने की आतुरता औसत से नैन नक्श वाले चेहरे पर लिए शांता मावशी का प्रकट होना ..
हल्की लेकिन आदेशात्मक आवाज के साथ कुछ ३०-३२ साल की,सुन्दर आँखों ,गेहुएं रंग और बुद्धिमत्ता के तेज को झलकाते व्यक्तित्व वाली शाल्मली ...
शांता मावशी ...देखियें इसे क्या कह रही हैं ,मुझे ऑफिस जाना हैं,आज रात को देर होगी लौटने में ..शाम को ऑफिस के बाद पार्टी हैं ...
तू ग ,सारख काय माँ माँ करत असते ! जा टिव्ही बघ ..
संजीव ....ऊँचे कद का ,साधारण नयन नक्श वाला नामी कंपनी में बड़े से ओहदे पर आसीन ..बड़ी सी कार ,सेवा में ड्रायवर ..४-५ असिस्टेंट ,खीसे हमेशा पैसो से भरे भरे ...लेकिन चेहरे पर इतना तनाव मानो भारत और पाक में युद्ध छिड़ गया हो और जीत की सारी जिम्मेदारी इन्ही की हो ..
दिन भर मोबाईल की रिंग रिंग ,मीटिंग्स की हडभड, आज इस शहर कल दूजे, परसों तीजे शहर उड़ कर जाने की बदली ने इन महाशय के चेहरे को कुछ इस तरह ढक दिया हैं की मुस्कान की चांदनी तो बरसो में शायद ही कभी खिली हो ...
चिमणी को किसी चीज़ की कमी नहीं ..खिलौने ...किताबे ...चॉकलेट्स...कपड़े ...फिर भी गुमसुम क्यों हैं वह?
काम से आने के बाद लगभग रोज बात बेबात शाल्मली और संजीव का झगड़ा ..पापा का कहना की पैसा नहीं कमाऊ तो कैसे घर चलेगा ..माँ की नाराज़गी मेरा कैरियर कोई मायने नहीं रखता क्या ?पापा कहते हैं की तुम कहा मेरे इतने पैसे कमाती हो ,मैं इस तरह न मरू तो मुझे इस तरह रोज के इन्क्रिमेंट्स और पोस्ट दर पोस्ट बढ़त कैसे मिलेगी ...माँ का कहना पर
चिमणी सिर्फ मेरी नहीं ...पैसे मैं भी कम नहीं कमा रही ..
इसी झिकझिक को सुनते डबडबायी नन्ही नन्ही आँखों का मुंद जाना सपनो में खो जाना ...
दृश्य
द्वितीय ...
माँ मुझे आज स्ट्राबेरी केक बना दो न ....माँ आज मेरी सहेली का बर्थडे हैं उसके लिए कुछ गिफ्ट दिला दो ...माँ कल मुझे स्कूल में परी बन कर जाना हैं ...माँ मुझे पार्क में जाना हैं जल्दी मुझे तैयार कर दो न ...
हाँ बाबा हाँ..... कितना बोलती हैं ...दस हाथ थोड़े ही हैं मेरे ..एक एक करके सब करती हूँ न रे ! अच्छा बता केक के उपर डोरेमोन बनाऊ या भीम ? क्या ख़रीदे तेरी सहेली के लिए ...बार्बी का सेट या कलर प्रोजेक्टर ?मावशी जरा मेरी मदद कर दीजिये न ..सुन
चिमणी जब तक केक बन रही हैं मुझे तेरा होमवर्क दिखा मैं तुझे बता दू कैसे करना हैं ...
पापा ...........
हाथ में ढेर सारे गुब्बारे लिए संजीव का परदे पर पुनरागमन ...पापा आजकल आप ऑफिस से थोडा जल्दी आ जाते हो,मुझसे बातें भी करते हो ,माँ भी मुझे कितना प्यार करती हैं ,,आप दोनों बेस्ट माँ - पापा हो लव यू पापा ...खिलखिलाती हंसी के साथ संजीव का
चिमणी से लिपट जाना...मेरा बच्चा दुनिया का सबसे प्यारा बच्चा ...
संजीव ने नौकरी नहीं बदली ...शाल्मली ने अपना कैरियर नहीं छोड़ा ...बस दोनों ने अपने समय ,पैसे और तरक्की की बढती ललक और अभिमान पर थोडा नियंत्रण पा लिया ..
यह सब हुआ उस झगड़े वाली रात के बाद जिसकी सुबह
चिमणी ने दो दिन तक आँखे नहीं खोली ...डॉ .ने कहा अत्यधिक तनाव, अकेलेपन और असुरक्षा की भावना के कारन ऐसा हुआ हैं ...
पैसा तरक्की नाम दुनिया के सारे ऐश्वर्य इन सबसे बढ़कर भी कुछ हैं ..
.वह हैं प्यार ...शांति और आत्मविश्वास ...
यह दो दृश्य ...दोनों ही जीवन के किनारे हैं ...एक किनारा आपको एक निर्जीव तट पर अकेला छोड़ता हैं दूसरा मानों गंगाकिनारा
आप कौनसी
जिंदगी पसंद करते हैं ..दृश्य प्रथम की या दृश्य द्वितीय की ??
सटीक दृश्य दिखा दिये .... बच्चों के लिए हमेशा वक़्त देना चाहिए ... प्रेरणादायक पोस्ट
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी ...
Deleteबहुत से प्रश्नों के उत्तर देती हुई सार्थक पोस्ट.........
ReplyDeleteधन्यवाद सुनील जी
Deleteसंदेश स्पष्ट है, निर्णय सुखदायी हों।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रवीण जी
Deleteजबरदस्त प्रस्तुति....बहुत बढ़िया...नियमित लिखें...शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteपैसा तरक्की नाम दुनिया के सारे ऐश्वर्य इन सबसे बढ़कर भी कुछ हैं ..
ReplyDelete.वह हैं प्यार ...शांति और आत्मविश्वास ...
Poorn Sahmati....
धन्यवाद डॉ. मोनिका
Deleteपैसा तरक्की नाम दुनिया के सारे ऐश्वर्य इन सबसे बढ़कर भी कुछ हैं ..
ReplyDelete.वह हैं प्यार ...शांति और आत्मविश्वास ...yahi satya hai
धन्यवाद रश्मि जी
Deletepyar, shanti aur aatmvishvas ye jeevan ke sahi aadhar hai
ReplyDeleteबच्चों के पास स्नेह का आँचल हो तो उन्हें सब कुछ मिल जाता है ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसदा आपको मेरा लिखा पसंद आया ...बहुत अच्छा लगा ...धन्यवाद
Deleteबेहद प्रेरणादायी पोस्ट.. अंतिम दो पंक्तियाँ मन को छू गयीं.
ReplyDeleteआभार.
बहुत बहुत धन्यवाद संतोष जी
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeletehttp://vangaydinesh.blogspot.in/2012/02/blog-post_25.html
http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/03/blog-post_12.html
धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleterang manch ke drishy to yadgar bn gaye .....behad sundar prastuti ...badhai sweekaren
ReplyDeleteDhnywad Navin ji
Deleteयह दो दृश्य ...दोनों ही जीवन के किनारे हैं ...एक किनारा आपको एक निर्जीव तट पर अकेला छोड़ता हैं दूसरा मानों गंगाकिनारा
ReplyDeleteआप कौनसी जिंदगी पसंद करते हैं ..दृश्य प्रथम की या दृश्य द्वितीय की ??
बहुत खूब सूरत प्रस्तुति .
इस पार प्रिय मधु है तुम हो ,उस पार न जाने क्या होगा .
ज़िन्दगी के दो रंग दो प्रोफाइल एक हाई एक लो .हमें बाद वाला लो प्रोफाइल ही पसंद है -इस पार प्रिय मधु है ,तुम हो ,उस पार न जाने क्या होगा .
धन्यवाद विरुभाई
Deleteदलदल और बगिया दोनों ही दिखा दिया तुमने...
ReplyDeleteकाश कि सबके मन में यह तथ्य/सत्य उतर पाता...कई जिंदगियां नरक से स्वर्ग बन जातीं...
मन को छू जाने वाली बहुत ही सुन्दर /प्रेरक कथा रची तुमने...आभार इसके लिए..
बहुत बहुत धन्यवाद रंजना दी
Deleteबहुत सुंदर और प्रेरक कथा . आज के समय और दंपति के लिये उपयुक्त ।
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