सफ़र लम्बा था ...बहुत लम्बा ,उतना ही कठिन ...सूर्य देवता मानो सर पर विराजमान थे ..मंजिल का कोई अता -पता न था..पैरो के निचे जलती रेत ..मस्तिष्क शून्य , मन... वो तो शायद संग था ही नहीं ....जाना किस ओर हैं किस रस्ते कुछ भी पता न था , वही उस मरुस्थल में थककर आँखे मुंद ली ..ह्रदय में एक प्रार्थना गूंजी ...अब और नहीं ...बस अब और नहीं ...
न जाने कहाँ से एक ठंडी हवा का झोंका आया ..आँखे खुली देखा मेरे पावों के निचे हरी-हरी दुब हैं ..कुछ क्षणों पहले जहाँ रेगिस्तान था ,वहां दूर दूर तक फूलों से महकते वृक्ष हैं ...माँ गंगा आँखों के सामने छलछलाती हुई अश्रु नर्मदा से लय मिलाती बह रही हैं ,छम छम छम छम बरखा की बुँदे मेघ के स्वरों को तालबद्ध कर मल्हार बरसा रही हैं ...
न... यथार्थ में कुछ भी नहीं बदला था सब कुछ वही था..वही अनंत तक विस्तृत लक्ष्य से अपरिचित रास्ते,कठिनाइयों से तप्त दीर्घ अनुत्तरित जीवन ....
कुछ बदला था कुछ जुडा था तो बस किसी का साथ ...साथ एक मित्र का ..
जब हम कुछ कहते हैं और कोई समझ जाता हैं तो कितना अच्छा लगता हैं ..हैं न !लेकिन कुछ कहे बिना अगर कोई हमारे मन की बात समझ जाये तो ? शब्द - शब्द हो वही जो हमें कहना हैं लेकिन कोई और ही कह जाये तो ?
दोस्ती -दोस्ती -दोस्ती उससे जुडी बड़ी -बड़ी बातें हमेशा सुनी थी ..पर सच कहूँ सुनने से बहुत अच्छा होता हैं दोस्ती का अनुभव ...जब अपनी परेशानियों का बोरा हम किसी ओर के सर डाल सके ,रोते हम हैं लेकिन मुस्कान किसी ओर से चुरा सके ,रात दिन ,समय बंधन ,नाते रिश्ते किसी- किसी की परवाह न कर अपने सारे दुःख दर्द ,मुसीबतों का राग बिन मोल हम किसी को सुना सके ,हमारी एक मुस्कराहट के लिए जब कोई अपनी समस्याएँ भूल बस हमें हँसाने की कोशिश करे ..हम खुश रहे इसके लिए न जाने क्या क्या सहे ...जिसके साथ होना ही सारी समस्याओं का हल बन जाये ..हमारी गलतियों पर बड़ी जोरो से गुस्सा कर हमें डरा सके ...कभी कभी हमारा शिव तांडव (नृत्य नहीं :-) क्रोध ) उतनी ही शांति से सह सके .
बदले में हम भी जिसके साथ बिलकुल यही कर सके तो उसे कहते हैं दोस्त और जीवन के इस सबसे सुंदर अनुभव का नाम हैं दोस्ती ...मित्रता ..मैत्री ..
अर्जुन हो या कृष्ण ,कर्ण हो या द्रौपदी ,राधा हो या पार्वती मैत्री के बिना इनकी कहानी शायद आगे ही न बढती .सारे रिश्ते,सारे नाते समय के साथ पुराने हो जाते हैं ,कुछ टूट जाते हैं कुछ नीरस हो जाते हैं ...लेकिन दोस्ती का रिश्ता मन में अपना आसन जमाये दुसरे रिश्तों को चिढ़ाता "मेरी कुर्सी छीन कर दिखाओ " हमेशा ह्रदय में सिंहासनारुढ ही रहता हैं ...आज ही कहीं पढ़ा दोस्ती का रिश्ता दो समानांतर रेखायें हैं ..एक दुसरे से ना भी मिले तो भी हमेशा साथ चलने वाली ..संग रहने वाली ...
दोस्त ..कोई भी हो सकता हैं यह दोस्त ..किसी के दादाजी ,किसी का भाई ,किसीकी माँ ,किसी की बेटी ,पत्नी पति , जीवन की प्रथम देहरी पर पांव रखने वाले कॉलेज स्टुडेंट्स के लिए साथ में पढने वाला या पढने वाली कोई साथी ...या किसी नाम रिश्ते नाते से परे सिर्फ एक दोस्त ...
उसने कहा " तू ऐसे हँसते खुसते मुस्कुराते हुए बहुत अच्छी लगती हैं " तो ध्यान आया मेरी दोस्त आगयी स्कूल से बिना पढ़े लिखे कांधो पर ज़माने भर की पढाई का बोझ उठाती मेरी नन्ही दोस्त ...अभी कहेगी माँ मैं भी तो तेरी दोस्त हूँ न !
ईश्वर के होने में विश्वास का,जीवन जीने की इच्छा का ,जिंदगी में हमेशा आगे बढ़ते रहने का ,मुश्किलों से कभी न हारने का एक और कारण हैं मेरे लिए ...वह हैं दोस्ती ...
आज फ्रेंडशिप डे नहीं ..हो भी नहीं सकता ..मुझे लगता हैं मित्रता का कोई एक दिवस नहीं होता ..सालो साल चलने वाली ..एक दिन भी साथ न छोड़ने वाली मित्रता को सिर्फ एक दिवस देना कुछ सही नहीं हैं न ! इसलिए आज बिना किसी पर्व त्यौहार के बस ऐसे ही ..सच्ची दोस्ती की तरह बस ऐसे ही ...मित्रता के नाम मेरे सारे दोस्तों के नाम मेरी यह पोस्ट ...
राधिका ...
जो दोस्ती पर इतना सुन्दर कहे उससे दोस्ती करने को जी करेगा ही न...???
ReplyDeleteशब्द - शब्द हो वही जो हमें कहना हैं लेकिन कोई और ही कह जाये तो ?
आप कह गयीं.....जो मुझे कहना था..
:-)
अनु
धन्यवाद अनु जी ... चलिए फिर दोस्ती पक्की हमारी ..इस पोस्ट के बहाने मुझे एक और दोस्त मिल गयी ..और क्या चाहिए !
Deletedost hai to zindagi hasin.....wah ....sundar prastuti
ReplyDeleteधन्यवाद अना जी ....
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद रूपचंद जी ....
ReplyDeleteइस अच्छी सी कविता के लिए भी एक बार पुन: धन्यवाद
अच्छा विमर्श प्रधान लेखन .
ReplyDeleteदोस्त कोई भी हो पर सच ही यह रिश्ता चलता ही समानान्तर ....अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteधन्यवाद विरुभाई .धन्यवाद संगीता जी
ReplyDeleteवाह राधिका ...एक दिन तब मिले थे जब तुमने मार्ग विहाग बजाया था ...और मैंने ऐंकरिंग की थी ...गंधर्व महविद्यालय में ...याद है ...? तब नहीं मालूम था अब यहाँ भी मिलना होगा ...!!तुम हृदय से कलाकार हो ...जितना अच्छा बजाती हो उतना ही अच्छा लिखती भी हो ...!!मुझे भी अपनी मित्र ही समझो ...समझोगी ना ...?शायद मेरी फोटो देख कर तुम्हें याद आ जाये ...!!बहुत अच्छा लगा यहाँ तुम्हारे ब्लोग पर आकर ...सकरात्मक ऊर्जा ..से भरपूर ...संगीत के मार्ग के हम दोनों पथिक ....!!
ReplyDeleteशुभकामनायें.
धन्यवाद अनुपमा जी ,आपको यहाँ देखकर ख़ुशी हुई ...आपकी इस तारीफ के लिए ह्रदय से धन्यवाद ..जी जरुर अब हम मित्र ही होंगे ....संगीत मार्ग के सब पथिक साथ चले तो यह सबसे कठिन पर सबसे सुंदर मार्ग सबसे सुरीला मार्ग बन जाता हैं ..आभार
ReplyDeleteजलती धरती पा गई, ज्यों मेघों का प्यार।
ReplyDeleteसाथी सचमुच धूप में, शीतल मदिर बयार॥
सुंदर लेखन...
सादर।
बहुत ही सुन्दर और प्रभावी आलेख..
ReplyDeleteराधा जिसका दोस्त कन्हैया हो
ReplyDeleteउसका दोस्त कौन नहीं होगा ।
सुंदर लेख !
सुन्दर भाव... मित्रता खून के रिश्तों से बढ़कर होती है...
ReplyDeleteमित्रता का यही रूप वरेण्य है -इसके आगे संसार के सारे नाते फीके !
ReplyDeleteये ना हो तो क्या फिर बोलो ये जिंदगी है... beautiful
ReplyDeleteबहुत सुंदर आलेख राधिका जी मैत्री के ितने सुंदर लेख के बाद कौन आपको मित्र ना बनायेगा ।
ReplyDeleteदोस्ती का अपना सुख होता है, जो अन्य किसी रिश्ते में नहीं मिलता. अगर दोस्ती पक्की तो ताउम्र चलेगी और हर वक्त ये एहसास होता कि कोई तो है अपना जिससे हम अपना सुख दुःख बाँट सकते हैं. बहुत सुन्दर लेख, बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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