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Monday, January 12, 2009

पूरनमासी की चाँदनी

वो ५०० ग्राम बादाम तोल रहा था ,तोल मशीन ने दिखाया ४९० ग्राम ,मैंने कहा भाई ,बादाम कम हैं.....उसने पौलिथिन में कुछ और बादाम डाले.अब मशीन ने दिखाया ५१० ग्राम ...उसने चार बादाम निकाले ,मशीन ने दिखाया ५०३ ग्राम उसने १ छोटा बादाम निकाला मशीन ने दिखाया ५०१ ग्राम ....उसने एक बादाम निकाला उसके चार टुकड़े किए और एक टुकडा तोले हुए बदामो में डाला,मशीन ने दिखाया ...५०० ग्राम ,उसने पौलिथिन मुझे दी । उसे बदामो के पैसे देकर में घर को लौटने लगी,सोचने लगी ,कैसा दूकानदार हैं ,१ बादाम के भी चार टुकड़े किए। तभी आवाज़ सुनाई दी राधिका ...........मैंने पीछे मुड कर देखा ,वो मुस्कुराती मेरे पास आई ,मैंने पूछा तुम यहाँ ?उसने कहा .. मौसी के बेटे की शादी हैं ,वो मेरी शादी में १ दिन के लिए आया था और ५००० रूपये,और एक साडी दे गया था ,तो मैं भी आज सुबह ही आई ,आज ही शादी देखकर चली जाउंगी ,यहाँ उसकी होने वाली पत्नी के लिए साडी लेने आई थी ,मैं भी ५००० और साडी ही दूंगी ,मैंने हँसके उसे देखा ,उसने कहा अच्छा मैं चलती हूँ .....
मैंने कहा अरे घर तो चल...
उसने कहा तू कब आई मेरे यहाँ...?
ओहो ....
अभी जल्दी में हूँ,फ़िर कभी ॥
ठीक हैं॥
वो चली गई ..मैं फ़िर सोचने लगी बादाम ही क्या, तोले तो रिश्ते भी जाने लगे हैं ।
रिश्ते .............
कभी सोचा हैं ..रिश्तो के बिना जीवन .....
एक उदास दूर- दूर तक फैली खामोशी ....भावना शून्य ...संवेदना शून्य ह्रदय .....मानों तपती धुप में इंसानों से खाली,जीवन की चहल- पहल से खाली मरुस्थल .....गरम हवा में उड़ती रेत के थपेडे सहता अकेला सा गुमसुम रेगिस्तान ....या मासूम भोले बचपन से खाली,एक प्यारे से साथ से खाली .....कुछ भीड़ की आवाजों में मन के संगीत से खाली ,समुन्दर के सीपी सा,जो मोती से खाली.....बिल्कुल खाली..निशब्द...नीरव .....निर्जन । कुछ ऐसा ही न रिश्तो के बिना जीवन ....
सुना हैं,कभी रिश्ते ताउम्र निभते थे ,दिल से निभते थे ,प्यार से निभते थे ,विश्वास से निभते थे । तभी सुदामा के चावल और शबरी के बेर भी खाए जाते थे ,फ़िर रिश्ते छोटे -बडे ,जात बिरादरी से निभने लगे और अब रिश्ते पैसो से निभते हैं ,स्वार्थ से निभते हैं ,जरुरत से निभते हैं,तोल मोल कर निभते हैं।

सुबह उठी तो कुछ ओस की बुँदे पत्तो पर बैठी अपनी सुंदरता पर इठला रही थी ,दोपहर मे देखा तो वो कही नही थी ,रिश्ते, जब नए नए बनते हैं तो पल भर के लिए कुछ इस तरह ही सुंदर लगते हैं और बढ़ते समय के साथ इंसानों की भीड़ में कही गायब हो जाते हैं । न वक़्त उनका होता हैं ,न वो किसी के ।
पढ़े लिखे और समय के साथ बहुत कुछ सीखे हम, इन रिश्तो के बिना जीना भी सीख जाते हैं ...इन रिश्तो स्नेहिल उपस्तिथि ,इनकी पायल मे लगे घुंघुरू सी छन छन की आवाज़ को कभी टीवी ,कभी धमा धम संगीत,कभी मॉल मे होती हजारो की शॉपिंग से भुलाते हैं । लेकिन वक़्त यही नही रुकता वह आगे बढ़ता हैं ,एक दिन जीवन का सूरज ढलता हैं और हम मृत्यु की कालिमा मे सब कुछ भुलाने के लिए निकल पड़ते हैं ,लेकिन उससे कुछ पहले रास्ते दिवस और रात्रि के संधिकाल सी साँझ खड़ी मिल जाती हैं ,उसके उस सुंदर हलके ,रुपहले प्रकाश मे हम अपने जीवन की सुबह खोजने लगते हैं .....खोजने लगते हैं बचपन,तारुण्य,दोस्त ,सहेली ,साथी और रिश्ते ...हमारे अपने रिश्ते ...लगता हैं वो सब इस एक पल मे हमारे साथ हो जाए ,हमें वापस मिल जाए ...ऐसा होता नही हैं । हम,रिश्ते और रिश्तो की चाह हमेशा के लिए खो जाती हैं ।

क्यों नही रिश्ते सोने से सुनहले ,चांदनी से चमकीले ,गुनगुनी धुप से उष्ण ,सात स्वरों से सुरीले और फलो से मीठे हो सकते ?क्यों नही एक बार फ़िर ताउम्र निभने वाले रिश्ते बनाये जा सकते ?जिंदगी भर साथ रहने वाले और मौत के बाद सच्चे आसूं बहाने वाले रिश्ते हम बना सकते?


एक कोशिश तो की ही जा सकती हैं न! तोल मोल के नही दिल के रिश्ते बनाने की ............ओस की बूंदों से नही चांदनी से अमर रिश्ते बनाने की । ताकि जीवन भर इन रिश्तो की चांदनी पूरनमासी सी खिलती रहे ,जिंदगी ,जिंदगी बनती रहे ।
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