कुछ लोग खुशिया मना रहे हैं ,कुछ दुःख.....कुछ ..................कुछ भी नही कह रहे और मैं .......हैरान हूँ । रहमान साहब और गुलज़ार साहब को ऑस्कर मिला इस बात की बहुत खुशी हैं। हम सब जानते हैं की स्लमडॉग से कई- कई -कई -कई गुना बेहतर फिल्मे हमारे देश में बनी हैं । हमारी फिल्मो का संगीत भी बहुत अच्छा रहा हैं ,वैसे भी भारतीय संगीत सदैव श्रेष्ट रहा हैं ,इसलिए ही भारतीय संगीत सीखने की ,जानने की चाह हर व्यक्ति के मन में रहती हैं ।
लेकिन प्रश्न यह हैं की हम सब कला को ,चाहे वह संगीत हो या फ़िल्म निर्माण,अभिनय ,चित्रकला या साहित्य सृजन । कब तक पुरस्कारों के वजन से तौलते रहेंगे ?
कला कभी भी किसी सम्मान और पुरस्कार की मोहताज नही होती ,यह बात ठीक हैं की पुरस्कार और सम्मान मिलने से उस कलाकर की हौसला अफजाई होती हैं ,उसे खुशी मिलती हैं । लेकिन कोई भी पुरस्कार किसी भी कला की श्रेष्टता का तौल नही होता । कला स्वयं ही सबसे बडा सम्मान और पुरस्कार होती हैं ।
जरुरत हैं की हम कलाओ का और कलाकारों का तहेदिल से आदर करे.