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Thursday, September 11, 2008

नारी :आख़िर संघर्ष किससे ?

आजकल सब जगह नारी स्वतंत्रता की बात हो रही हैं२१ वीं सदीं में जीवन के हर क्षेत्र में नारी ने स्वयं को सिद्ध कर दिखाया हैंउसने यह साबित कर दिखाया हैं की वह भी उन्नति के रथ पर आरूढ़ होकर सफलता के शिखर पर अपनी गौरव ध्वजा फहरा सकती हैंफ़िर भी नारी संघर्ष अभी जारी हैं और आने वाले कुछ वर्षो तक जारी रहेगापरन्तु संप्रति हो रही नारी चर्चा सुनकर ऐसा लग रहा हैं की नारी शायद भूल रही हैं की उसका संघर्ष किससे हैं ?
पुरूष और नारी समाज के दो आवश्यक घटक हैं ,अगर कहे की नारी और पुरूष से मिलकर ही समाज का निर्माण हुआ हैं तो ग़लत होगाऐसे में,जब कहा जाता हैं की नारी को पुरुषों से संघर्ष करना हैं या उनके विरुध्द खडें रह कर आगे बढ़ना हैंऐसे ही जब पुरुषों पर बात आती हैं तो वह स्त्री विरोधी अभियान के प्रमुख सेनानी बन जाते हैं . यह सब देखकर लगने लगता हैं की हम कहाँ जा रहे हैं ? मन सोचने पर मजबूर हो जाता हैं की क्या नारी ,पुरूष की प्रतियोगी हैं ? या पुरूष,नारी का प्रतियोगी हैं ?
नारी जहाँ पुरूष की माता हैं ,बहन हैं,सखी हैं ,पत्नी हैं , वही पुरूष भी स्त्री का भाई हैं ,सखा हैं ,पति हैं ,पिता हैंनारी और पुरूष संसार रूपी नाटक के वह पात्र हैं जिनके बिना संसार नाट्य की प्रस्तुति असंभव हैंअगर पुरुषों द्वारा नारी पर अत्याचार हुए हैं तो नारी भी नारी दुःख में कम सहभागी नही हैं

कुछ दिनों पहले कहीं सुना की नारी जब पुरुषों के विरुध्द खडी हो सकती हैं तो वह ईश्वर की सत्ता को चुनौती क्यों नही दे सकती ?संसार का हर धर्म और ईश्वर नारी की प्रगति के खिलाफ हैंमन बहुत दुखी हो गया . सोचा, क्या नारी केवल विरोधी बनकर रह गई हैं ?आधुनिकता के मायने पुराने संस्कारो और विश्वास को छोड़ देना तो नही हैंसंस्कार इन्सान को इन्सान बनाते हैं ,वही धर्म शब्द की व्याख्या इस प्रकार की गई हैं "ध्रु धातु धारणायत धर्म इत्याहु :"एवं -धारयति :धर्म:" अर्थात वह नियम जो संसार को सँभालते हैं ,जिनके आधार पर संसार टिका हुआ हैं वह धर्म हैंइस प्रकार धर्म शब्द का अर्थ व्यापक हैं ,हमारे पवित्र धर्मग्रन्थ गीता में भी कही नारी की प्रगति को रोकने के फार्मूले नही दिए गएही कही किसी धर्म में नारी पर अत्याचार करने की बात कही गई हैंहाँ मध्यकाल में कुछ बाते कुछ स्वार्थी लोगो द्वारा विशिष्ट उद्देश्यों से धर्म के साथ जोड़ दी गई ,नारी को सिर्फ़ उन बातो का विरोध करना हैं,साथ ही यह भी है की कुछ बाते जो वैज्ञानिक रूप से सही हैं उन्हें भी धर्म के माध्यम से नारी को बताया गया ताकि वो उनका पालन करे ,यह हमारे उपर हैं की हम किस बात को मानते हैं पर अधार्मिक हो जाने से नारी प्रगतिमान हो जायेगी यह बात मुझे नही रुचतीईश्वर के मानने वालो के लिए वह प्रेम ,शान्ति और शक्ति का केन्द्र हैं और जाने कितने देवी रूप हैं जो प्राचीन काल से हर नारी का आदर्श रहे हैइसलिए ईश्वर और धर्म का विरोध करके नारी यह जंग जीत जायेगी ऐसा नही हैं
दरसल नारी का संघर्ष पुरूष से हैं, नारी से, नही ईश्वर और धर्म सेनारी का संघर्ष हैं तो सिर्फ़ उन बुराइयों से जो नारी को अपना श्रेष्ठत्व सिद्ध करने से रोकती हैंउन रुढियों से हैं जो नारी को सदियों से छलती आई हैंअपनी प्रगति के लिए नारी को आधुनिकता के नए अर्थ खोजने की या पुरुषों के विरुध्द खडे रहने की कोई आवश्यकता नही हैंनारी स्वयं एक शक्ति हैं, प्रेरणा हैं,ज्योति हैं, जीवन हैं और जीत हैंइसलिए अगर आवश्यकता हैं तो सिर्फ़ अपनी पुरी ताकत बटोरके अपने उचित उद्देश्य के पथ पर आगे बढ़ने कीआत्म शक्ति और दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर दुनिया की कठिनतम वस्तुए भी प्राप्त की जा सकती हैंअपनी निर्णय क्षमता पर भरोसा हैं तो मुझ पर विश्वास कर सारे विरोध त्याग कर प्रेम से मन लगा कर ,अपनी मंजिल पाने की कोशिश करे ,दुनिया की कोई भी ताकत आपको नही रोक सकतीइसी प्रकार पुरूष भी नारी को उसके दुःख को दूर करने में सहायक बने ,उसके जीवन लक्ष्य को पाने में सहभागी बनेतभी एक सुखी,समृद्ध,स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकता हैं
इति
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