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Wednesday, November 26, 2008

तुम कहाँ हो?

वो सुबह शाम तुम्हारा नाम लेती हैं ,तुम्हे पुकारती हैं ,तुम्हारी एक आहट के लिए घंटो आँखे लगाये बैठती हैं, कभी अपनों पर नही रखा शायद..............इतना विश्वास तुम पर करती हैं , रोज़ नए नए शब्द ,छंद लाकर न जाने कितनी कविताये तुम्हारे लिए लिखती हैं ,रोज़ न जाने कितने रागों में स्वरों और शब्दों को मोती की तरह पिरो कर प्रेम भरी संगीतमय पुष्पमालाये तुम्हे अर्पण करती हैं । वह कभी मन्दिर जाती हैं ,कभी मस्जिद जाती हैं,कभी चर्च जाकर प्रार्थना गाती हैं ,कभी वाहेगुरु को शीश नवाती हैं ,वह व्रत करती हैं ,कभी करती हैं पूजन ,कभी रोजे रखती हैं ,कभी करती हैं हवन । वह जो तुम्हारी हैं ,सदियों से ,इस सृष्टि के आदि से अंत तक ,सिर्फ़ तुम्हारी, उसका कौन हैं तुम्हारे सिवा बोलो ?फ़िर भी तुम नही आते ?कहीं नही दीखते ,हर बार वह ख़ुद को भरोसा दिलाती हैं की तुम आओगे इस बार नही अगली बार कभी तो कहीं तो .................................

हे ईश्वर................ विश्व की ७०% जनता रोज़ तुम्हे पुकारती हैं ,पुजती हैं ,प्रार्थना करती हैं ....और हर बार हर दुःख के बाद स्वयं को संभालती हैं और कहती हैं की तुम आओगे । माना की तुम ईश्वर हो ,यह कलयुग हैं सारा दर्शन माना, जाना । पर कल जैसी अँधेरी काली रात जब भारत जैसे देश पर बिजली की तरह टूटती हैं तो एक ही प्रश्न ह्रदय में बार बार उठता हैं की हे ईश्वर तुम कहाँ हो?.........

तुम अवतार नही ले सकते तो कम से कम इन अँधेरी राहों में जहाँ मनुष्यता कहीं खो गई हैं ,उजास तो भरो ,जो इनसे जूझना चाहते हैं उनका मार्गदर्शन तो करो ..........

इस साल जितने विस्फोटहुए हैं,क्या ये कलयुग की अति नही हैं ,तुम अति होने के बाद ही अवतार लेते हो ?ऐसा सब कहते हैं ..कम से कम किसी भारतीय नागरिक के मन में अवतरित होकर हमारा मार्गदर्शन करो,हम सब तुम्हारी संतान हैं करुणाकर ,अब तो पथप्रदर्षित करो ।

मेरा और न जाने कितने भारतीयों का मन बार बार तुमसे पूछ रहा हैं ..तुम कहाँ हो ?

Monday, November 24, 2008

जो सबको जीना सिखाये ....


शहर के एक छोटे पर नामचीन विद्यालय में बच्चो की भीड़ जुटी हुई हैं ,सब बच्चे प्रार्थना के लिए खड़े होते हैं और सुबह का प्रेरणा गीत शुरू होता हैं ,ख़ुद जिए सबको जीना सिखाये ,अपनी खुशिया चलो बाट आए...एक १२-१४ साल की लड़की खुशी से जोरो से यह गीत गा रही थी,चारो तरफ़ मानों खुशिया ही खुशिया बिखरी थी,की आचानक किसीने आवाज़ दी राधिका..........और मैं १२-१४ साल आगे वक़्त की गाड़ी में सवार प्रकाश से भी तेज़ गति में अपने आज में लौट आई ,आवाज़ देने वाली वही थी जो मुझे अपने साथ यहाँ खीच कर ले आई थी ,और अनजाने में अपने बचपन में चली गई थी ,यहाँ आज से पहले मैं कभी नही आई थी ,कहने को तो यह भी स्कूल था,यहाँ पर भी छोटे बच्चे पढ़ते थे ,पर उसने कहा था ,की यह स्पेशल बच्चो का स्कूल हैं ...मेरा बेटा स्पेशल हैं ...मतलब?मैं समझी नही थी ,शायद वह जीनियस होगा .............. खैर .. यहाँ पहुँची तो मैंने कहा की मैं अन्दर आकर क्या करुँगी आप प्रिंसिपल से मिलकर जाओ,पर उसने कहा अरे इन बच्चो से मिलोगी नही?स्पेशल बच्चे हैं ...खैर अन्दर गई ,सब बच्चे हस रहे थे ,एक दुसरे से हिलमिल कर बाते कर रहे थे ,कुछ नाच रहे थे कुछ गा रहे थे ,कुछ खेल रहे थे और कुछ पढने का झूठा दिखावा कर रहे थे , बच्चों को खुशियों की बहार इसलिए ही कहा जाता हैं शायद...राधिका ...ये मेरा बेटा ... मुझे देखकर वह थोड़ा शरमाया ,फ़िर मुस्कुराया ,उसने कहा दीदी से हेलो बोलो ,वह कुछ तुतलाया ...जो कम से कम मुझे तो समझ नही आया,उसने कहा देखा ये सब बच्चे कितने स्पेशल हैं ...सच कितने प्यारे,कितने अच्छे वही सरलता, वही मासूमियत,वही भोलापन,वही बचपन ,वही सुंदरता,वही सादापन,पर उन्हें सबसे अलग बनती उनकी वही स्पेशलिटी .............. हाँ वही स्पेशलिटी जिसके कारण हम इन बच्चो को मानसिक विकलांग कहते हैं ...वही स्पेशलिटी जिसके कारण यह बच्चे और बच्चो से अलग दिखाई देते हैं ,वही स्पेशलिटी जो इनके जीवन को एक अलग ही रंग में रंग देती हैं ,जहाँ इनकी दुनिया अपनी ही गति में अपनीही तर्ज़ पर ताल देती हुई ,अपना संगीत ख़ुद ही लिखती और संसार से अलग खुदको सुनती सुनाती अपना पुरा जीवन बिताती हैं ये वही स्पेशल बच्चे थे ,जो  मानसिक कमियों के बावजूद उतनी ही खुशी से आनंद से और जज्बे से अपना जीवन बिता रहे थे,सीख रहे थे और सबको जीना सिखा रहे थे और वो उस स्पेशल बच्चे की स्पेशल माँ ,जो अपने बच्चे की कमी को स्पेशलिटी बताकर दुगुने प्यार ,ममता और जज्बे से अपने बच्चे को आने वाले कल के लिए मजबूत सक्षम बना रही थी ,जिन्दगी की सबसे कठिन परीक्षा को स्पेशल बताकर मुझे जीना सिखा रही थी......

Monday, November 17, 2008

कला...और उसका अनोखा जहाँ

१७ नवंबर २००५ ..सुबह के १०:३० का समय ..सडको पर वाहनों की भारी आवाजाही,लगता हैं सारी दुनिया घर से बाहर इन रास्तो पर उतर आई हैं ,इस भारी भरकम भीड़ में एक युवती न जाने किन ख्यालो में खोयी जोर जोर से गाती गुनगुनाती हुई चली जा रही हैं ,कई लोग उसे देख रहे हैं ,उनमे से कई ने उसे पागल समझ लिया हैं ,पर वो शायद वहा हैं ही नही,वो तो बस जोर जोर से गा रही हैं ,राग बिहाग में लय तानो के प्रकार बना रही हैं ,अचानक पीछे से एक बस जोर से हार्न बजती हुई,बुरी तरह से ब्रेक मारकर रूकती हैं ,बस कन्डक्टर जोर से चिल्लाता हैं ......अरे बेटी.......
तब कहीं जाकर उस युवती की तंद्रा टूटती हैं । उसे समझ आता हैं की वह सड़क पर गाती हुई जा रही थी,तेज़ कदमो से चलती...लगभग भागती हुई,गंतव्य तक पहुँचती हैं ,और वहां जाकर अपने आप पर खूब हंसती हैं ,आप जानना चाहेंगे वह लड़की कौन थी ? .......................... वह लड़कीथी मैं ।

ऐसा कई बार होता हैं ,कुछ अच्छा सा संगीत सुना ,कोई राग दिलो दिमाग पर छा गया तो सब कुछ भूल कर मैं उस राग में खो जाती हूँ । शायद यही हैं कला का जादू ।

एक और घटना सुनिए , मेरे पतिदेव को लौकी के कोफ्ते बहुत पसंद हैं ,एक दिन सोचा आज बनाये जाए,लौकी ली,बेसन घोला ,और रेडियो ऑन,पंडित रविशंकर जी राग मारवा बजा रहे थे ,बस फ़िर क्या था,बड़ा सुरीला माहौल बन गया ,साथ लौकी के कोफ्ते भी बन गये ,कोफ्ते बनाने के बाद तक़रीबन में एक घंटा सोचती रही ,आज कोफ्ते हमेशा जैसे क्यो नही दिख रहे?क्या कमी रह गई? ..तब तक रेडियो पर समाचार शुरू हो गए ,रेडियो बंद किया और फ़िर लौकी के कोफ्ते देखे ,तब कहीं ध्यान आया की ....लौकी के कोफ्ते में मैं लौकी डालना भूल गई सितार सुनते हुए । तब क्या करती भजिये की सब्जी पतिदेव को खिलाई ।

ये कुछ मजेदार घटनाये थी जो मेरे साथ हुई ,कलाकार के साथ ऐसा अक्सर होता हैं ,कला लेखन हो ,संगीत हो ,चित्रकला हो,या और कोई,कलाकार एक बार कला समुन्दर में डूब गया की उसे निकालना ,जग के रक्षक विष्णुदेव को भी संभव नही होता ,उसे सारी दुनिया से अपनी दुनिया अच्छी लगती हैं,वह औरो के बीच में होकर भी कहीं खोया हुआ होता हैं,कुछ न कुछ सोचता रहता हैं,संगी संबंधी या तो उसे पागल करार देते हैं ,या उनकी नाराज़गी उससे कई कई गुना बढ़ जाती हैं । पर जिन्होंने कला से नाता जोड़ा हैं,जो कलाकार हैं वो जानते हैं की कला का जहाँ कितना अनोखा हैं ,प्रेमी युगल को जिस तरह जग की परवाह नही होती वैसे ही सारा जमाना चाहे शत्रु क्यो न बन जाए,हँसे ,पागल कहे ,पर कलाकार अपने कला विश्व को कभी नही भूलता ,उसमे जीना कभी नही छोड़ता । कला ही उसे परमानन्द देती हैं ,जीवनानंद देती हैं ,आत्मानंद देती हैं ,जो सुनता हैं ,पढ़ता हैं,समझता हैं ,वह कलाकार की इस दुनिया की कद्र करता हैं ,और ऐसे क़द्रदानो के कारण ही कलाकार जी पाता हैं ,अपनी कला को तराश पाता हैं . कहते हैं न..


तंत्री नाद कवित्त रस सरस राग रति रंग ।
अनबुढे बुढे तीरे जो बुढे सब अंग । ।


तो ऐसा हैं कला का अनोखा जहाँ ।

Friday, November 14, 2008

जहाँ जिंदगी अब भी मुस्कुराती हैं ....................

गोवा से अहमदाबाद आने वाली फ़्लाइट अपने नियत समय से १ घंटा :३० मिनिट की देरी से हैं,सारे यात्री परेशान हैं ,जैसे तैसे फ़्लाइट आती हैं ,सब विमान यात्री विमान में सवार होते हैं,विमान रन वे पर भागना शुरू होता हैं की अचानक एक बच्चा जोर जोर से रोने लगता हैं ,उसकी माँ उसे चुप करवाने की कोशिश करती हैं लेकिन व्यर्थ ,उसे देखकर फ़्लाइट में बैठे सभी नन्हे बच्चे जोर जोर से रोना चीखना चालू कर देते हैं ,पुरे विमान और पुरी यात्रा में बच्चे रोते रहते हैं,विमान यात्री उन्हें चुप करवाते रहते हैं ,और अपने कान बंद करते रहते हैं ,अहमदाबाद आते ही सब यात्री बच्चो की तरह तालिया बजाते हैं और खुशी से चिल्लाते हैं पहुँच गए अब उतर सकेंगे ...................

यह एक छोटा सा उदाहरण था बच्चो की आत्मीयता का ,इस कथा क्रम को शुरू करने वाली मेरी आरोही ही थी। इसी तरह एक दिन एक मॉल में एक बच्चा किसी बात पर जोर से हँसता हैं बात का तारतम्य न जानते हुए भी वहा खडे सब बच्चे जोर जोर से हँसने लगते हैं ।
यह हैं बचपन . यह हैं बच्चे ,बच्चे ,जीनमे अपना पराया का द्वेष नही,जो मित्रता शत्रुता से परे हैं ,जिन्हें सच झूठ,विश्वास ,अविश्वास ,रुपया ,पैसा,स्वार्थ ,परार्थ कुछ भी नही मालूम । उन्हें मालूम हैं तो बस प्यार। जिनका जीवन आनंद ,उत्साह से हर पल सजा रहता हैं । वे हर एक को चाहते हैं हर कोई उनका अपना हैं।

दो तीन दिन पहले मैं किसी बात पर सोच रही थी, की कैसी दुनिया हो गई हैं,सुबह ८ से रात १० ऑफिस,किसी को किसीके लिए फुरसत नही ,कोई किसी की भावनाओ को समझे,साथ हँसे बोले इतना समय नही,सुबह से इंसान रूपी मशीन बस काम पर लग जाती हैं ,कहीं वो प्यार नही वो आत्मीयता नही,बाजारों में जिंदगी को सजाने सवारने की सारी चीजे मौजूद हैं ,जिनकी चमक दमक जिंदगी को उपरी रूप से इतना सजाती हैं की जिंदगी में कोई कमी नज़र नही आती लेकिन सच्चे अर्थो में जो एक दुसरे के सुख दुःख में हँसे रोये,एक निर्मल मुस्कान से सबका मन अपनी और खींचे ,जो मीठे स्वर में प्यार के दो बोल कह सारा दुःख दर्द दूर कर दे ,ऐसी सच्ची जिंदगी कहा हैं ?यह सब सोचते सोचते ही पुरा दिन कट tगया ,शाम को हम लोग कैफे कॉफी डे गए ,बड़ा अजीब सा बनावटी वातावरण था ,सब लोग धीमे धीमे बात कर रहे थे,वेटर बड़े सलीके से पेश आ रहे थे , प्लेयर पर बड़े बुरे लेकिन नए गाने चल रहे थे,सामने कॉलेज के लड़के लड़कियों का ग्रुप हंस बोल रहा था,पीछे की टेबल पर एक महाशय किताब मुंह पर चिपकाये बैठे थे, कांच के दरवाजे के बाहर खडा एक १०-१२ साल का बच्चा मुझसे इशारे से भीख मांग रहा था . हम सब भी बातों की औपचारिकता निभा रहे थे ,कॉफी आई ,आरोही जो अभी तक इधर उधर खले रही थी,मेरे पास आई और अपने हाथ से कॉफी पिने की जिद करने लगी मैंने समझाया फ़िर भी नही मानी ,मेरे कप से स्ट्रा खींच के कुछ इस तरह से निकाली की सारी कॉफी उसके पापा के कपड़ो पर ,आरोही ने अपने पापा के कपड़ो पर कॉफी से स्प्रे पेंटिंग कर दी थी , पतिदेव को काटों तो खून नही ,सासु माँ मुंह छुपा कर हस रही थी ,ससुर जी इधर उधर देखकर अपनी हँसी छुपाने की असफल कोशिश कर रहे थे ,और मैं जोर जोर से हंस रही थी,आरोही मेरे स्वर में स्वर मिलाती हुई ,तालियाँ बजा बजाकर हंस रही थी । उसके साथ हँसतें हुए सब कुछ भूल गई ,कॉफी डे के बाहर निकले तो बच्चो का एक समूह हमारे पीछे चला आ रहा था और हम पर हंस रहा था ,उस समूह में वह भीख मांगने वाला बच्चा भी था,सारा माजरा समझ आया,और मन ने कहा................................ यहाँ हैं जिंदगी,यहाँ बच्चो में ,यहाँ जिंदगी अपने पुरे उत्साह ,उल्लास प्रेम और आनंद के साथ हँसती गाती झिलमिलाती हैं .जिंदगी यहाँ अब भी मुस्कुराती हैं ।

Monday, November 10, 2008

संसार के सबसे बड़े मायावी..मित्र ..और शत्रु...

वे संसार के सबसे बड़े मायावी हैं ,हम आप और ईश्वर भी उनकी माया के अधीन हैं ,वे सर्वशक्तिमान हैं , उनके सामने न धन की ताकत टिकती हैं ,न बल की ,न शस्त्र उन्हें पराजित कर सकते हैं ,नही अस्त्र उनके सामने टिकते हैं,वे ब्रह्मास्त्र भी हैं और शास्त्रार्थ भी. कवि कलाकार,विद्वान उनके गुण गाते नही थकते ,उनकी माया जिनके साथ हो वो शिखर पर और जिन्होंने उन्हें नही पूजा ,उन्हें भूतल पर कहीं पाव ज़माने की जमीन भी नसीब नही होती । वे ही गीति हैं और वे ही दुर्गति ,उनसे ही संसार की मनोमय सुंदरतम लय हैं और उनसे ही अवनति । वे पल भर में आसमान गिरा सकते हैं ,वे ही जमीन पिघला सकते हैं,कभी छत्रछाया बनकर रक्षण कर सकते हैं ,कभी सर का छप्पर उड़ा कर भक्षण भी कर सकते हैं ,हर रिश्ते की बुनियाद इन पर ही टिकी होती हैं ,इनसे ही रिश्ते बनते हैं और इनसे ही टूट जाते हैं .ये जमीन हैं आसमान हैं ,वे सूर्य हैं चंद्र हैं और कल्याण भी हैं ,वे ईश है देव हैं और दैव भी हैं ,एक वही हैं जिनकी पूजा जिन्होंने कर ली वो तर गए बाकी जीते जी मर गए।

आप सोच रहे होंगे मैं क्यों पहेली बुझा रही हूँ?यह क्याहैं?मैं कबसे किसी मायावी के बारे में लिखने लगी?आदि आदि । पर जब मैं उनका नाम बताउंगी तो आप भी मुझसे सौ टका सहमत होंगे। सभी के मित्र और शत्रु ,कल्याणकारी और विनाशकारी, आनंददायी और दुखदायी वे मायावी हैं.................................. शब्द ।

शब्द जिनका राज्य पुरे संसार पर चलता हैं ,मनुष्य ने जबसे भावो की अभिवयक्ति के लिए शब्दों का सहारा लेना प्रारंभ किया तबसे आज तक वे मनुष्य जीवन को भाग्यनिर्धाता के रूप में चलाते आए हैं ,मनुष्य की किस्मत बनाते बिघाडते आए हैं।

इंसान पढ़ लिया , विद्वान हो लिया ,ज्ञानवान हो लिया ,न जाने कितनी भाषाओ का सृजक और पोषक हो लिया ,लेकिन शब्दों का सही प्रयोग और अभिवयक्ति की सही दिशा आज तक निर्धारित करना पुरी तरह से नही सिखा ,उसके पास शब्दों का भण्डार हैं लेकिन उनको किस तरह से प्रयोग करना हैं उसके दैनंदिन जीवन में ,वह आज भी यह नही जानता ,भषा विज्ञानी हैं ,लेकिन शब्दों का प्रयोग एक कला हैं ,कला आत्मा की अभिवयक्ति हैं ,और जहाँ यह अभिवयक्ति चुकी ,सारा काम बिघाड जाता हैं।

आज के पढ़े लिखे लोग जिस तरह की भाषा का प्रयोग करते हैं ,समझ नही आता भाषा की अधोगति पर रोया जाए या वाणी की अवनति और दुखदायी स्थिति पर । कहते हैं न एक बार ब्रह्मास्त्र की मार चुक जाए या उससे दुखे हुए इन्सान का इलाज हो वह ठीक हो जाए ,लेकिन शब्दास्त्र की मार युगों युगों तक आत्मा पर घाव बन कर मनुष्य ह्रदय को सलाती रहती हैं,जलाती रहती हैं ।
शब्द विज्ञानं हैं और बोलना कला , इसलिए वीणापाणी को वाणी भी कहा जाता हैं ,देवी के अन्य रूपों के साथ शब्दमयी देवी भी हैं , शब्दों को मधुरता से प्रेम से आनंद से बोला जाता हैं तो सुनने वाला आपका प्रेमी और मित्र हो जाता हैं ,और जब इन्ही शब्दों को तोड़ मरोड़ कर अपने निम्नतम स्तर पर बुरे स्वर के साथ प्रयोग किया जाता हैं ,तो सुनने वाले के लिए जीवन खत्म हो जाता हैं ,धरती और आकाश सब शून्य हो जाते हैं ,ह्रदय भावना शून्य ,करुणा शून्य ,प्रेम शून्य हो जाता हैं ,इसीसे उपजता हैं प्रतिकार ..विरोध... नफ़रत ...और शब्दास्त्र पर शब्दास्त्र का तीक्ष्ण प्रयोग। इन सबसे आहत हो जीवन कहीं छुप जाता हैं जैसे अमावास की रात्रि में चंद्र तारे कही छुप जाते हैं और बचता हैं केवल अँधेरा ।

शब्द धरोहर हैं ,मानवीय संस्कृति और संस्कार का अहम् भाग । उनका प्रयोग प्रेम से ,मधुर स्वर के साथ और शांति से किया जाए तो ही हम जीवन संघर्ष को जीत सकते हैं .और इन मायावी शब्दों को अपना मित्र बना कर सदैव आदर के पात्र और प्रिय बन सकते हैं ..मुझे लगता हैं हम बच्चो को पोथी पुस्तके पढाते हैं इन सबके साथ वाणी का सही प्रयोग ,आवाज़ को कम अधिक कर किस तरह से अपनी बात को औरो तक पहुचाया जाए ,स्वर का शब्द से सम्बन्ध और उसका यथोउचित प्रयोग यह विषय भी बच्चो को विद्यालय में रखा जाना चाहिए और साथ ही साथ माता पिता द्वारा भी बच्चो को पढाया जाना चाहिए। ताकि शब्द सके मित्र बन सके .
मेरा इन मायावी शब्दों को नमन ...

Sunday, November 2, 2008

कौन हिंदू, कौन मुस्लिम ?


तक़रीबन १२ बजे का समय ,हम कोल्हापुर महालक्ष्मी देवस्थान से बाहर निकले ,वह तेजी से दौड़ता हुआ मेरे पतिदेव के पास आया और बोला "साहेब गाड़ी तैयार आहे" ,(गाड़ी तैयार हैं ) वो............ सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहने,शुद्ध मराठी बोलता हुआ ,मराठी माणुस सा ।

आज सुबह ही हम कोल्हापुर पहुंचे थे ,मैं ,सासु माँ ,ससुर जी ,पतिदेव और बेटी हम सब गाड़ी में बैठ गए ,सब चुप थे ,पर वह बोलता जा रहा था ,"बघा साहेब इथे जवळस देवीच देवुळ आहे ...नंतर आपण ज्योतिबा मन्दिर चे दर्शन करू ,औदुम्बरच्या वाडीत चलू ..................................(यहाँ पास ही देवी का मन्दिर हैं ,बाद में हम ज्योतिबा मन्दिर के दर्शन को जायेंगे ,औदुम्बर के मन्दिर भी जायेंगे )आदि आदि आदि । मैं सोच रही थी ,यह बोलते बोलते थका नही क्या ?उस दिन वह हमें कम से कम चार तीर्थ स्थलों पर ले गया । दुसरे दिन फ़िर सुबह ७ से हम देव दर्शन के लिए निकल पड़े ,आज भी कल की तरह ही उसकी बातें- बातें । "बघा वहिनी हे आमच्या कोल्हापुरातले महान व्यक्तिंच घर । तुम्हाला सांगलीच्या गणपतीची गोष्ट सांगतो ....."(देखिये भाभी ये हमारे कोल्हापुर के महान व्यक्ति का घर,आपको सांगली के गणपति की कहानी सुनाता हूँ । )

एक जगह हम कुछ देर रुके उसके पास एक फोन आया ..........."हाँ बोल..काय?अस !!!!!!!जा ,बघू ...और उसने गुस्से से फ़ोन पटका धम्मम !!!!!!!!!!!!!!
फ़िर मेरी सासु माँ से कहने लगा ,बघा आई मैं सुबह से नमाज़ पढ़के निकलता हूँ ,पर मेरा भाई कुछ नही करता ,दिन भर घर में बैठा रहता हैं ,माझी आई म्हणते लहान ऐ ....(मेरी माँ कहती हैं वह तुम्हारा छोटा भाई हैं )

सासु माँ आश्चर्य से हक्की बक्की ...
घर आने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा "राधिका ये भाई मुस्लिम था ....?"

हाँ वह मराठी माणुस सा दिखने वाला ड्राईवर मुसलमान था ,उसका नाम था "अल्ला बख्श बागबान "।

कोल्हापुर में हम तीन दिन थे . वही नही न जाने कितने मुसलमान शुद्ध मराठी बोल रहे थे,देवी महालक्ष्मी के दर्शनों को आतुर थे ,कुछ माँ की तस्वीरे बेच रहे थे,कुछ देवी की साडी और चूड़ी बेच रहे थे । सब देख कर मैं सोच में पड़ गई,जब मैं गुजरात में होती हूँ तो वहाँ हर कोई गुजराती दीखता हैं ,हिंदू ,मुस्लिम ,सिख, इसाई ...हर कोई ,जब महाराष्ट्र में होती हूँ तो हर कोई मराठी ...पंजाब में हर व्यक्ति वाहेगुरु की फतह कहता हैं ,और दक्षिण में हर व्यक्ति तिरुपति बालाजी को नमन करता हैं ।हम सब हाजी अली जाते हैं ,मियां तानसेन के मकबरे पर सब संगीतज्ञ मत्था टेकते हैं। मैं सोचती रह जाती हूँ कहीं कोई हिंदू दिखे,कहीं मुस्लिम ,कहीं सिख या फ़िर इसाई ,पर दीखते हैं सिर्फ़ इंसान ,धर्म ,जाती ,देश ,राज्य की सीमओं से परे,एक दुसरे के धर्मो का सन्मान करते ,मानवीय रिश्ते निभाते ,एक दुसरे से प्रेम भाव और बंधुता रखते इंसान और भारतीय । सच्चे भारतीय ,जिनकी नज़रे न तो हिंदू मुस्लिम का भेद जानती हैं ,न धर्म मजहब की चौखटे ,वह जानती हैं सिर्फ़ जीवन के मायने और भारतीयत्व ।

धर्म ,मजहब का द्वेष जिनके मनो में हैं ,वह मुस्लिम नही ,हिंदू भी नही ,उनका कोई धर्म नही वह या तो ख़ुद विकृत मनस्तिथि के हैं ,या अपना स्वार्थ चाहते हैं। सच्चा भारतीय तो भारत में हर कहीं हैं ,उसे देखकर मुझसा कोई भी प्रश्न में पड़ जाए की कौन हिंदू, कौन मुस्लिम ?
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