www.blogvarta.com

Tuesday, January 27, 2009

क्या शांभवी को मर जाना चाहिए ?

कभी कभी जिंदगी इतनी मायूस, उदास हो जाती हैं की जीने की जरा भी इच्छा नही रह जाती,लगता हैं जैसे संसार को हमारी कोई जरुरत ही नही ,हम जैसे इस दुनिया के लिए बने ही नही ,कोई साथ नही होता ,सहारा किसे कहे? इस दुनिया में कोई किसीका सहारा हो पाया हैं ? अथाह दुःखसागर के ह्रदय में आशा के चंद मोती
कब तक जीवन को सुंदर बनाने की असफल कोशिश करते रहे ?आज की तारीख उन सभीको शायद संतोष दे पायेगी जिन्हें मेरा अस्तित्व गवारा नही ।

एक सादे कागज़ पर लिखे, कुछ अति दुखद आखरी वाक्य ..................शांभवी की कलम से निकले अंतिम हारे हुए ,आसुंओ से भरे कुछ चुनिंदा वाक्य ...नही ..............शांभवी मरी नही ,वह जिंदा हैं . कहते हैं न मांगने से मौत भी नही मिलती , कोशिश तो यही थी भरपूर नींद की गोलिया खाकर अपनी जीवन कहानी खत्म कर दे ,पर जिस ईश्वर की इच्छा के बिना आज तक किसी पेड़ का एक पत्ता भी नही हिला ,उसकी इच्छा के बिना क्या उसका मृत्यु से मिलन सम्भव था ?

शांभवी ....बचपन से मुश्किलों और दुखो से लड़ती ही आई थी और विवाह के बाद शुभंकर का गुस्सैल स्वभाव और अहंकार उसे सहन नही हुआ और हजारो भारतीय दुखियारी,जीवन से हार मानने वाली स्त्रियों की तरह उसने भी इस जीवन से, मर जाना बेहतर समझा ?लेकिन ...............
वह आज मनोरोगियों के अस्पताल में दोनों पैरो से पंगु और मति से भ्रमित होकर बैठी हुई हैं ,जीवन तब कठिन था आज असहनीय हैं ।

रोज़ अख़बार उठाने पर एक न एक ख़बर किसी न किसी शांभवी के आत्महत्या करने के सफल या असफल प्रयास की होती हैं ,आख़िर क्यो?

आख़िर क्यो ?आज कल की लड़कियां जीवन से इतनी जल्दी हार मान जाती हैं ?क्यो वह मरने का प्रयत्न करने से पहले एक बार भी नही सोचती की मौत नही आई तो जीवन इससे भी दुखद हो सकता हैं ?क्यो वह दुसरे के बुरे वह्य्वार की सजा स्वयं को देती हैं ?


जीवन किसी परिकथा सा सरल कभी नही रहा हैं ,अगर जीवन इतना ही सरल होता तो कभी कोई सीता, द्रौपदी नही हुआ करती । कोई जीवन से थका दुखो से व्यथित ,जीवन के कठिन प्रश्नों के कारण उलझा हुआ अर्जुन भी हुआ नही करता ,फ़िर कृष्ण जैसे किसी सारथी की जरुरत भी नही होती जो जीवन के रथ को, जीवन के ही समरांगण में ,जीवन युद्ध की नीतिया समझाकर जीवन को सफल ,विजयी ,आनंदमय करे ।

जो लोग जीवन में बहुत आगे बढे हैं ,जो यशस्वी हैं,विजयी हैं,वह मनस्वी और तपस्वी भी होते हैं । उनके पास सुख की खदाने नही होती ,नही सारी परिस्तिथियाँ हमेशा से उनके अनुकूल होती हैं ,पर वे ;वह लोग होते हैं जो कभी हार नही मानते ,जो कभी जीवन को कम नही आंकते ,उनके के लिए थक हार कर आत्महत्या कर लेना ,या जीवन भर युही दुखसे दुखित होकर अकेले ;गमो के अंधेरे में जीना ,खुदको कमज़ोर समझना जैसा कोई पर्याय ही नही होता ,उनके लिए जीवन भर सारी मुश्किलों के जवाब में सिर्फ़ एक ही पर्याय होता हैं जीवन को जीना ,लड़कर जीना ,बिना थके ;बिना हार माने ;अपना वजूद,अपने विचार, समाज को जता कर जीना और जी भर कर जीना ,अपने जीवन को जीवन का सही अर्थ देना ।

ईश्वर ने सभी को सामान आत्मिक शक्ति और बुद्धि दी हैं ,यह हम पर हैं की हम अपनी आत्मिक शक्ति और बुद्धि का कितना और कैसे उपयोग करते हैं । माना,सभी की परिस्तिथिया समान नही होती ,कुछ लोग अधिक भावनात्मक होते हैं ,किंतु किसी भी परिस्तिथि में आत्महत्या कर लेना या घुट घुट कर जीना कोई पर्याय नही ।

नारी को शक्ति कहा जाता हैं ,वह सिर्फ़ कहने मात्र के लिए या किसी विशेष दिन पर देवी पूजा करने के लिए नही ,वह इसलिए क्योकि उसमे परिस्तिथियों को बदलने की ,बुरे पर विजय पाने की असीम शक्ति हैं । हार को जीत में बदलने की ताकत हैं .

दुःख होता हैं की स्त्री आज भी स्वयं को इतना अशक्त समझती हैं ,की स्वयं की ही शत्रु हो जाती हैं ,यह भी एक तरह की मानसिक ,और आत्मिक दुर्बलता ही हैं न ।

मुझे शांभवी की कहानी का दुखद अंत नही देखा जाता ,आइये इस कहानी का सुखद अंत देखे ।

कहते हैं ईश्वर सबके साथ बराबर न्याय करता हैं ,एक सहेली सुधा की मदद से शांभवी पुरी तरह से ठीक हो गई ,वह शुरू से अच्छी चित्रकार थी,उसने स्वयं को सम्हाला और अपने जीवन के सुख दुःख को चित्रों में ढाला ,आज वह सफल चित्रकार हैं ,आज लोग उससे प्रेरणा लेते हैं ,उसको आदर्श मानते हैं ।

यह सुखद अंत किसी भी साधारण भारतीय महिला की कथा का हो सकता हैं ,यह आप पर हैं की आप कौनसा अंत चुनना चाहेंगी ।
"आरोही" की नयी पोस्ट पाए अपने ईमेल पर please Enter your email address

Delivered by FeedBurner