




वह किसी की माँ हैं , किसी की पुत्री भी,किसी की अर्धांगिनी हैं , किसी की बहन भी ,किसी की सखी हैं तो किसी की गुरु भी और इन नातो -रिश्तो से हटकर कहे तो वह स्त्री हैं ,नारी हैं। नारी जिसे हम अपने घर में


माँ ...वह शब्द जिसका परिचय हर व्यक्ति को जीवन में सबसे पहले होता हैं ,माँ क्या होती हैं इसका वर्णन करना केवल और केवल असंभव

देवी प्रप्न्नार्त्तीहरे प्रसिद
प्रसीद मातरजगतोsखिल्स्य ।
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं
तवामिश्वरी देवी चराचरस्य ॥"
यह वंदना हैं आदि शक्ति देवी की और कितनी समता हैं देवी और नारी के रूप में । वह जगत माता हैं जो जगत का संरक्षण करती हैं और माता शिशु का संरक्षण करती हैं ।
वह ज्ञान रूप हैं ,बुद्धि रूप हैं ,देवी रूप में वही बुद्धि सब मनुष्यों के ह्रदय में विराजमान रहती हैं ।
सर्वस्य बूद्धिरुपेण जनस्य हृदि संस्तिथे ।
जब जब भी नारी के गौरव को कम आंका जाता हैं ,उसकी श्रेष्टता पर पश्न उठाये जाते हैं ,उसके अस्तित्व पर संकट छटा हैं ,तो मन दुखी हो जाता हैं . वह गुणमयी ,ज्ञानमयी,स्वरमयी,कलामायी ,ममतामयी ,कल्याणी,शक्तिरूपा ,अन्नपूर्णा हैं ,यह जानते हुए भी वह बार बार स्वयं को कमजोर,लचर और अबला जानने लगती हैं तो यह दुःख और बढ़ जाता हैं ।
मैंने हमेशा महसूस किया हैं की नारी शक्ति स्वरूपा हैं ,और आज इस बात की पुष्टि के लिए प्रमाण भी हैं ।
स्त्रिय: समस्ता :सकला जगत्सु ।
त्व्यैक्या पूरितमम्ब्यैतत ॥
(श्रीदुर्गा सप्तशती:एकादश अध्याय:श्लोक क्रमांक ६:)
अर्थात हे देवी जगदम्बे ,जगत में जितनी भी स्त्रिया हैं वह सब तुम्हारी ही मुर्तिया हैं ।
इसलिए अगर स्त्री चाहे तो वह ,वह सब कर सकती हैं जो वह करना चाहती हैं ,यह ताकत सिर्फ़ उसीमे हैं जो बडे बडे संकटों का नाश कर ,श्रेष्ट से श्रेष्ट और कठिनतम कार्य भी पूर्ण कर सकती हैं । जरुरतहैं तो सर्वशक्तिमान नारी को स्वयं को पहचानने को ।