सुबह के यही कोई छ: बजे होंगे,उदित होते सूरज की सुनहली किरणों से आकाश स्वर्णिम आभा से शोभायमान हो रहा था ,रजनीगंधा के फूलो की महक अभी हवा से पुरी तरह विलुप्त नही हुई थी ,साथ ही पारिजात ,चम्पा ,चमेली ,गुलाब के फूलो की सुगंध मद्धिम हवा में आलिप्त हो वातावरण को सुरभित कर रही थी। आस पास के सभी लोग अभी जागे नही थे ,कही किसी के घर देवी स्तुति का सस्वर पठन हो रहा था ,इस दिव्य वातावरण में ,लग रहा था मानों मैं स्वर्ग में आगई हूँ । मेरी बालकनी के पास लगे असो पल्लव अर्थात अशोक के वृक्षो पर कुछ पंछी फुदक फुदक कर प्रकृति की इस मनोरम बेला के मधुमय संगीत पर ताल देते हुए मानों समूह नृत्य कर रहे थे ।
मैं यही सब देखकर खुश हो रही थी कि बालकनी से सट कर लगी मधुमालती की बेल पर एक नन्ही सी चिड़िया कहीं से उछलते कूदते आयीं । छोटी सी, प्यारी नन्ही सी चिड़िया। मुझे उसे देखकर बहुत अच्छा लगा ,उसे संबोधित करते हुए मैं बोली ,नन्ही कैसी हो ?उसने अपनी छोटी छोटी आँखों से मुझे देखा ,फ़िर आँखों ही आँखों में कुछ कहते हुए अपनी नाजुक सी गर्दन दूसरी और घुमा ली । मुझे उसका यह मान बहुत अच्छा लगा,एक बार फ़िर कहा नन्ही सुना नही कैसी हो?उसने फ़िर अपनी आँखों के जुगनू टिमटिमाते हुए मुझे देखा ,और फ़िर दूसरी और देखने लगी .मुझे उसका कौतुक लगा । मैंने फ़िर कहा चिऊ कैसी हो ?नाराज़ हो क्या?बात नही करनी ?
इस बार उसने अपने छोटे -छोटे, गोल -गोल नयनों को विस्तारित कर उपहासात्मक शैली में कहा ...न... नही करनी बात ,मानवी ..... मैंने मन ही मन कहा .नन्ही चिड़िया होकर इतना गुरुर ॥ प्रत्यक्ष में कहा"ठीक हैं नही करनी तो मत करो बात ,पर ये इस तरह उपहासात्मक शैली में मानवी क्यों कह रही हो मुझे .उसने तीक्ष्ण स्वर में अपनी पतली आवाज़ को मोटा करते हुए कहा" अब हो ही मानवी ...हुह.. तो और क्या कहूँ ?मेरे जैसी भाग्यशालिनी चिड़िया कहा हो तुम ?जो तुम्हे मान दू ।" इस बार मेरे अंदर की मानिनी जाग उठी ,मैंने भी आवाज़ को थोड़ा चढ़ा कर कहा" क्यो मैं सबसे भाग्य शालिनी हूँ, मानवी जो हूँ,मनुष्य सब प्राणियो में सबसे बुद्धिमान, श्रेष्ट जो हैं,तुम क्या हो मात्र एक नन्ही सी चिड़िया ?"
इस पर वह तुनककर बोली "यही तो बात हैं मानव होने का इतना अंहकार हैं तुम मानवो को ,की अपने खोखले गर्व में चूर होकर अपनी वास्तविक स्थिति जानते हुए भी, अंधे हो अपनी श्रेष्ठता का बखान करते रहते हो "। अब मुझे बडा गुस्सा आया ,मैंने कहा "खोखला गर्व ?हम हैं ही गर्व करने के काबिल ,सक्षम ,सबल,सम्पूर्ण । वह बोली"नही अक्षम ,दुर्बल और अपूर्ण । मैंने कहा ज्यादा चिक चिक की न तो अभी पकड़ कर पिंजरे में डाल दूंगी .वह बोली"डाल दो ,तुम मनुष्य और कर भी क्या सकते हो। मेरा गुस्सा अपनी चरम सीमा को छूने लगा । मैंने कहा अहंकारी चिड़िया क्यो सुबह सुबह चिक चिक कर रही हो ?मनुष्य कि शक्ति से अपरिचित हो?जो उससे उलझ रही हो ?ऐसा क्या हैं तुममे ?वह बोली "मानव इस संसार का सबसे अशक्त प्राणी हैं ,और मैं सच कह रही हूँ,मेरे पास वह सब कुछ हैं जो तुम मानवों के पास नही हैं ..और गुनगुनाने लगी बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर पंछी को छाया नही फल लगे अति दूर "मैंने गुस्से में उफनते हुए कहा "दुष्ट चिडिया तेरी ये हिम्मत "अब बोल ही दे कि तेरे पास ऐसा क्या हैं जो हम मानवों को अब भी अप्राप्य हैं । वह इठलाती हुई बोली एक हो तो बोलू . मैंने कहा बोल फ़िर भी। वह बोली "हम पंछियों के पास आज़ादी हैं । मैंने कहा हम भी आजाद हैं । वह बोली" कैसी आज़ादी ?मुझे देखो जहाँ चाहे ,जब चाहे उड़ सकती हूँ" . मैंने हँसकर कहा,बस इतना ही । मनुष्य ने अपनी शक्ति से हवाई जहाज़ बना लिए हैं पता नही तूझे। वह और सर ऊँचा करती हुई बोली तो क्या ?वो हवाई जहाज़ जिनकी कीमतें आसमान को छूती हैं ,आम आदमी पूरी उम्र उसमें बैठने को तरसता हैं ,या वह हवाई जहाज़ जिनकी कीमते कम होती हैं और यात्रियों को अपनी जान की कीमत देकर उनकी कीमत चुकानी पड़ती हैं ,या वह हवाई जहाज़ जो फ्यूल के दाम बढ़ने से एअरपोर्ट के बाहर ही नही निकल पाते । बोलो ...बोलो ... मैंने कहा ,तो क्या हुआ ?हमारे पास और भी बहुत सी गाडियां हैं जब चाहे जहाँ चाहे घूम सकते हैं . वह बोली अच्छा सच?सुबह सुबह ऑफिस जाना हो तो एक घंटा ट्रेफिक से उलझना पड़ता हैं तुम्हे ,धुल धुआँ तुम्हारी आँखों नाक और फेफडो में भर जाता हैं , हमें कम से कम ट्रेफिक जाम से तो नही उलझना पड़ता ,तुमने अपने साथ हमें भी शुद्ध हवा से वंचित कर दिया हैं । मैं चुप,वह फ़िर बोली "और हमारे पास संगठन की शक्ति हैं ,हम एक दुसरे के साथ उड़ते हैं ,साथ रहते हैं एक दुसरे के सुख दुःख में सहभागी बनते हैं ,और तुम मनुष्य ?मैंने कहा "तुमने कैसे सोच लिया की हम एक दुसरे के साथ नही रहते इतना बड़ा देश हैं फ़िर भी सब साथ साथ हैं .वह बोली तभी तो आज यहाँ ,कल वहां दंगे होते हैं ,भाई भाई को मारता हैं ,माँ बेटो को छोड़ कर चली जाती हैं ,बच्चे माँ पिता का सम्मान नही करते । हम कभी एक दुसरे से अलग नही होते.तुम्हारे यहाँ एक गिरता हैं दूसरा उसे नज़रंदाज़ कर चला जाता हैं .हमारे यहाँ एक ने आवाज़ लगाई की सारे दुसरे पंछी उसकी जान बचाने उड़ते चले आते हैं । मैं शांत .वह फ़िर बोली हमें किन्ही आतंकवादी हमलो का भी डर नही .बड़ी शांत दुनिया हैं हमारी । मुझे कुछ सूझा ..मैंने कहा ..दिन भर इधर उधर खाना ढूंढ़ते फिरते हो तुम ,ऐसे ही जीवन कट जाता हैं तुम्हारा ,हमें देखो कितना पैसा कमा लेते हैं हम, सुख से खाते हैं रोज़ नई नई चीजे । वह बोली "अच्छा ऐसा क्या?मुझे तो दिख रहे हैं न जाने कितने भूखे बच्चे ,अन्न के दाने दाने के लिए तरसते लोग,दिन भर मेहनत करके भी दो समय की दाल रोटी को तड़पते लोग,इन सबके बीच औरो की परवाह न कर खूब खा- खा कर अपना मोटापा बढाते,भारी भरकम बिमारियों से ग्रस्त लोग । मैं हिम्मत कैसे हारती? बोली,रहते हो इतने से घोसलों में जरा तेज़ आंधी बारिश आई तो घर टूट जाते हैं तुम्हारे ,वह व्यंगात्मक शैली में बोली,हाय रे तुम्हारे बंगले !आलिशान फ्लेट्स! फ़िर बोली "हमारे घोसले तो फ़िर भी तिनका तिनका जोड़ कर ख़ुद ही बनते हैं हम उसके लिए प्रकृति की किसी संपदा का नुकसान नही करते ,पर तुमने न जाने कितने वृक्ष कट डाले दुष्ट मानव ,अपने फायदे के लिए हमारा घर उजाड़ डाला ,फ़िर भी, वो उपर वाला बैठा हैं न सारा न्याय करता हैं ,हमें तो फ़िर भी कही कोई टहनी मिल जाती हैं आसरे के लिए, तुम तो एक छोटा सा घर खरीदने के लिए जिन्दगी भर पैसे कमा कमा कर थक जाते हो फ़िर भी पूरी कीमत नही निकाल पाते ,निकाल भी ली,तो धोखे से बिल्डर ने सीमेंट की जगह रेती से बिठाये मजबूत घरो की बुनियाद एक ही भूकंप में हिल जाती हैं और तुम्हारी मल्टी स्टोरी बिल्डिंगे धराशायी हो जाती हैं । तुम भी मरते हो और तुम्हारे सपने भी । मानव होने की बातें करते हो ,श्रेष्ठ्त्व की बातें करते हो ,इतना भी नही जानते की बड़ा वह होता हैं जो अपनों से ज्यादा दूसरो का सुख जाने ,उसके दुःख को दूर करना जाने ,प्रेम दया शान्ति, करुणा ,सादगी जैसे गुणों से विभूषित किया था ईश्वर ने तुम्हें और साथ ही दी थी बुद्धि कितने विश्वास के साथ,पतितो तुमने वह विश्वास तोड़ दिया .मानव कहते हो खुदको ,कहाँ हैं मानवता तुममे ?बोलो कहाँ हैं मनुष्यता ?किस बात का दंभ करते हो? इन इमारतो का ?इन वाहनों का ?इस पैसे का?इस रूप का ?इन कपड़ो का?इन डिग्रीयों का ?किस बात का?जिसमे नैतिक गुण ही नही ,जो मानवीय मूल्यों को ही भूल गया हैं वह कैसा मानव । वह री मानवता ! मैं निरुत्तर ,हतबल,हतप्रभ । मुझे इस अवस्था में देख वह हँसी और फुर्र से उड़ती हुई दूर अपने दल के साथ मिल गई । मैं आसमान में न जाने कितनी देर तक देखती विचारों में खोयी रही ,दुहराती रही उसका कहा एक एक शब्द ,वह री मानवता ....आज मैं हार गई ,जीवन में पहली बार ,वह भी एक चिड़िया से ।
इस बार उसने अपने छोटे -छोटे, गोल -गोल नयनों को विस्तारित कर उपहासात्मक शैली में कहा ...न... नही करनी बात ,मानवी ..... मैंने मन ही मन कहा .नन्ही चिड़िया होकर इतना गुरुर ॥ प्रत्यक्ष में कहा"ठीक हैं नही करनी तो मत करो बात ,पर ये इस तरह उपहासात्मक शैली में मानवी क्यों कह रही हो मुझे .उसने तीक्ष्ण स्वर में अपनी पतली आवाज़ को मोटा करते हुए कहा" अब हो ही मानवी ...हुह.. तो और क्या कहूँ ?मेरे जैसी भाग्यशालिनी चिड़िया कहा हो तुम ?जो तुम्हे मान दू ।" इस बार मेरे अंदर की मानिनी जाग उठी ,मैंने भी आवाज़ को थोड़ा चढ़ा कर कहा" क्यो मैं सबसे भाग्य शालिनी हूँ, मानवी जो हूँ,मनुष्य सब प्राणियो में सबसे बुद्धिमान, श्रेष्ट जो हैं,तुम क्या हो मात्र एक नन्ही सी चिड़िया ?"
इस पर वह तुनककर बोली "यही तो बात हैं मानव होने का इतना अंहकार हैं तुम मानवो को ,की अपने खोखले गर्व में चूर होकर अपनी वास्तविक स्थिति जानते हुए भी, अंधे हो अपनी श्रेष्ठता का बखान करते रहते हो "। अब मुझे बडा गुस्सा आया ,मैंने कहा "खोखला गर्व ?हम हैं ही गर्व करने के काबिल ,सक्षम ,सबल,सम्पूर्ण । वह बोली"नही अक्षम ,दुर्बल और अपूर्ण । मैंने कहा ज्यादा चिक चिक की न तो अभी पकड़ कर पिंजरे में डाल दूंगी .वह बोली"डाल दो ,तुम मनुष्य और कर भी क्या सकते हो। मेरा गुस्सा अपनी चरम सीमा को छूने लगा । मैंने कहा अहंकारी चिड़िया क्यो सुबह सुबह चिक चिक कर रही हो ?मनुष्य कि शक्ति से अपरिचित हो?जो उससे उलझ रही हो ?ऐसा क्या हैं तुममे ?वह बोली "मानव इस संसार का सबसे अशक्त प्राणी हैं ,और मैं सच कह रही हूँ,मेरे पास वह सब कुछ हैं जो तुम मानवों के पास नही हैं ..और गुनगुनाने लगी बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर पंछी को छाया नही फल लगे अति दूर "मैंने गुस्से में उफनते हुए कहा "दुष्ट चिडिया तेरी ये हिम्मत "अब बोल ही दे कि तेरे पास ऐसा क्या हैं जो हम मानवों को अब भी अप्राप्य हैं । वह इठलाती हुई बोली एक हो तो बोलू . मैंने कहा बोल फ़िर भी। वह बोली "हम पंछियों के पास आज़ादी हैं । मैंने कहा हम भी आजाद हैं । वह बोली" कैसी आज़ादी ?मुझे देखो जहाँ चाहे ,जब चाहे उड़ सकती हूँ" . मैंने हँसकर कहा,बस इतना ही । मनुष्य ने अपनी शक्ति से हवाई जहाज़ बना लिए हैं पता नही तूझे। वह और सर ऊँचा करती हुई बोली तो क्या ?वो हवाई जहाज़ जिनकी कीमतें आसमान को छूती हैं ,आम आदमी पूरी उम्र उसमें बैठने को तरसता हैं ,या वह हवाई जहाज़ जिनकी कीमते कम होती हैं और यात्रियों को अपनी जान की कीमत देकर उनकी कीमत चुकानी पड़ती हैं ,या वह हवाई जहाज़ जो फ्यूल के दाम बढ़ने से एअरपोर्ट के बाहर ही नही निकल पाते । बोलो ...बोलो ... मैंने कहा ,तो क्या हुआ ?हमारे पास और भी बहुत सी गाडियां हैं जब चाहे जहाँ चाहे घूम सकते हैं . वह बोली अच्छा सच?सुबह सुबह ऑफिस जाना हो तो एक घंटा ट्रेफिक से उलझना पड़ता हैं तुम्हे ,धुल धुआँ तुम्हारी आँखों नाक और फेफडो में भर जाता हैं , हमें कम से कम ट्रेफिक जाम से तो नही उलझना पड़ता ,तुमने अपने साथ हमें भी शुद्ध हवा से वंचित कर दिया हैं । मैं चुप,वह फ़िर बोली "और हमारे पास संगठन की शक्ति हैं ,हम एक दुसरे के साथ उड़ते हैं ,साथ रहते हैं एक दुसरे के सुख दुःख में सहभागी बनते हैं ,और तुम मनुष्य ?मैंने कहा "तुमने कैसे सोच लिया की हम एक दुसरे के साथ नही रहते इतना बड़ा देश हैं फ़िर भी सब साथ साथ हैं .वह बोली तभी तो आज यहाँ ,कल वहां दंगे होते हैं ,भाई भाई को मारता हैं ,माँ बेटो को छोड़ कर चली जाती हैं ,बच्चे माँ पिता का सम्मान नही करते । हम कभी एक दुसरे से अलग नही होते.तुम्हारे यहाँ एक गिरता हैं दूसरा उसे नज़रंदाज़ कर चला जाता हैं .हमारे यहाँ एक ने आवाज़ लगाई की सारे दुसरे पंछी उसकी जान बचाने उड़ते चले आते हैं । मैं शांत .वह फ़िर बोली हमें किन्ही आतंकवादी हमलो का भी डर नही .बड़ी शांत दुनिया हैं हमारी । मुझे कुछ सूझा ..मैंने कहा ..दिन भर इधर उधर खाना ढूंढ़ते फिरते हो तुम ,ऐसे ही जीवन कट जाता हैं तुम्हारा ,हमें देखो कितना पैसा कमा लेते हैं हम, सुख से खाते हैं रोज़ नई नई चीजे । वह बोली "अच्छा ऐसा क्या?मुझे तो दिख रहे हैं न जाने कितने भूखे बच्चे ,अन्न के दाने दाने के लिए तरसते लोग,दिन भर मेहनत करके भी दो समय की दाल रोटी को तड़पते लोग,इन सबके बीच औरो की परवाह न कर खूब खा- खा कर अपना मोटापा बढाते,भारी भरकम बिमारियों से ग्रस्त लोग । मैं हिम्मत कैसे हारती? बोली,रहते हो इतने से घोसलों में जरा तेज़ आंधी बारिश आई तो घर टूट जाते हैं तुम्हारे ,वह व्यंगात्मक शैली में बोली,हाय रे तुम्हारे बंगले !आलिशान फ्लेट्स! फ़िर बोली "हमारे घोसले तो फ़िर भी तिनका तिनका जोड़ कर ख़ुद ही बनते हैं हम उसके लिए प्रकृति की किसी संपदा का नुकसान नही करते ,पर तुमने न जाने कितने वृक्ष कट डाले दुष्ट मानव ,अपने फायदे के लिए हमारा घर उजाड़ डाला ,फ़िर भी, वो उपर वाला बैठा हैं न सारा न्याय करता हैं ,हमें तो फ़िर भी कही कोई टहनी मिल जाती हैं आसरे के लिए, तुम तो एक छोटा सा घर खरीदने के लिए जिन्दगी भर पैसे कमा कमा कर थक जाते हो फ़िर भी पूरी कीमत नही निकाल पाते ,निकाल भी ली,तो धोखे से बिल्डर ने सीमेंट की जगह रेती से बिठाये मजबूत घरो की बुनियाद एक ही भूकंप में हिल जाती हैं और तुम्हारी मल्टी स्टोरी बिल्डिंगे धराशायी हो जाती हैं । तुम भी मरते हो और तुम्हारे सपने भी । मानव होने की बातें करते हो ,श्रेष्ठ्त्व की बातें करते हो ,इतना भी नही जानते की बड़ा वह होता हैं जो अपनों से ज्यादा दूसरो का सुख जाने ,उसके दुःख को दूर करना जाने ,प्रेम दया शान्ति, करुणा ,सादगी जैसे गुणों से विभूषित किया था ईश्वर ने तुम्हें और साथ ही दी थी बुद्धि कितने विश्वास के साथ,पतितो तुमने वह विश्वास तोड़ दिया .मानव कहते हो खुदको ,कहाँ हैं मानवता तुममे ?बोलो कहाँ हैं मनुष्यता ?किस बात का दंभ करते हो? इन इमारतो का ?इन वाहनों का ?इस पैसे का?इस रूप का ?इन कपड़ो का?इन डिग्रीयों का ?किस बात का?जिसमे नैतिक गुण ही नही ,जो मानवीय मूल्यों को ही भूल गया हैं वह कैसा मानव । वह री मानवता ! मैं निरुत्तर ,हतबल,हतप्रभ । मुझे इस अवस्था में देख वह हँसी और फुर्र से उड़ती हुई दूर अपने दल के साथ मिल गई । मैं आसमान में न जाने कितनी देर तक देखती विचारों में खोयी रही ,दुहराती रही उसका कहा एक एक शब्द ,वह री मानवता ....आज मैं हार गई ,जीवन में पहली बार ,वह भी एक चिड़िया से ।
वाह........बहुत सुंदर....
ReplyDeleteक्या बात कही है आपने.
सही कहा चिडिया ने ...अच्छा लगा आपका यह लेख
ReplyDeleteबहुत सुंदर....
ReplyDeleteसही कहा चिडिया ने ...
चिडिया ने मानवी को हरा ही दिया
ReplyDeleteआपकी लेखन शैली बहुत सुंदर लगी
बहुत अच्छा जी । सही बात । अच्छा लगा आपका यह आलेख ।बधाई
ReplyDeleteयही सच्चा लेखन है ..राधिका जी प्रकृति जब मुखरित हो
ReplyDeleteऔर मानव मन
जब सँदेस ग्रहण कर ले
तब पूरी व्यव्स्था
सम्पूर्ण हो जाती है ..
बहुत सुँदर भाव लिये
आलेख लिखा गया है ..
प्रात: काल का वर्णन
लुभा गया :)
स्नेह,
-लावण्या
हौसलों की कोई जात नही होती ,कोई उम्र नही यही सबक है ना !
ReplyDeletebahut sundar lekhan.....
ReplyDeleterochak
ReplyDeleteराधिका जी...बहुत अद्भुत लिखा है आपने...काश हम छोटी सी चिडिया से ही कुछ सीख कर अपनी सोच बदल लें...
ReplyDeleteनीरज
बेहतरीन!!!
ReplyDeleteprakiriti ka manmohak varnan-
ReplyDeleteउदित होते सूरज की सुनहली किरणों से आकाश स्वर्णिम आभा से शोभायमान हो रहा था ,रजनीगंधा के फूलो की महक अभी हवा से पुरी तरह विलुप्त नही हुई थी ,साथ ही पारिजात ,चम्पा ,चमेली ,गुलाब के फूलो की सुगंध मद्धिम हवा में आलिप्त हो वातावरण को सुरभित कर रही थी।
achcha likha hai aapney.
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