आजकल सब जगह नारी स्वतंत्रता की बात हो रही हैं । २१ वीं सदीं में जीवन के हर क्षेत्र में नारी ने स्वयं को सिद्ध कर दिखाया हैं । उसने यह साबित कर दिखाया हैं की वह भी उन्नति के रथ पर आरूढ़ होकर सफलता के शिखर पर अपनी गौरव ध्वजा फहरा सकती हैं । फ़िर भी नारी संघर्ष अभी जारी हैं और आने वाले कुछ वर्षो तक जारी रहेगा । परन्तु संप्रति हो रही नारी चर्चा सुनकर ऐसा लग रहा हैं की नारी शायद भूल रही हैं की उसका संघर्ष किससे हैं ?
पुरूष और नारी समाज के दो आवश्यक घटक हैं ,अगर कहे की नारी और पुरूष से मिलकर ही समाज का निर्माण हुआ हैं तो ग़लत न होगा । ऐसे में,जब कहा जाता हैं की नारी को पुरुषों से संघर्ष करना हैं या उनके विरुध्द खडें रह कर आगे बढ़ना हैं। ऐसे ही जब पुरुषों पर बात आती हैं तो वह स्त्री विरोधी अभियान के प्रमुख सेनानी बन जाते हैं . यह सब देखकर लगने लगता हैं की हम कहाँ जा रहे हैं ? मन सोचने पर मजबूर हो जाता हैं की क्या नारी ,पुरूष की प्रतियोगी हैं ? या पुरूष,नारी का प्रतियोगी हैं ?
नारी जहाँ पुरूष की माता हैं ,बहन हैं,सखी हैं ,पत्नी हैं , वही पुरूष भी स्त्री का भाई हैं ,सखा हैं ,पति हैं ,पिता हैं । नारी और पुरूष संसार रूपी नाटक के वह पात्र हैं जिनके बिना संसार नाट्य की प्रस्तुति असंभव हैं । अगर पुरुषों द्वारा नारी पर अत्याचार हुए हैं तो नारी भी नारी दुःख में कम सहभागी नही हैं ।
कुछ दिनों पहले कहीं सुना की नारी जब पुरुषों के विरुध्द खडी हो सकती हैं तो वह ईश्वर की सत्ता को चुनौती क्यों नही दे सकती ?संसार का हर धर्म और ईश्वर नारी की प्रगति के खिलाफ हैं । मन बहुत दुखी हो गया . सोचा, क्या नारी केवल विरोधी बनकर रह गई हैं ?आधुनिकता के मायने पुराने संस्कारो और विश्वास को छोड़ देना तो नही हैं । संस्कार इन्सान को इन्सान बनाते हैं ,वही धर्म शब्द की व्याख्या इस प्रकार की गई हैं "ध्रु धातु धारणायत धर्म इत्याहु :"एवं -धारयति स:धर्म:" अर्थात वह नियम जो संसार को सँभालते हैं ,जिनके आधार पर संसार टिका हुआ हैं वह धर्म हैं । इस प्रकार धर्म शब्द का अर्थ व्यापक हैं ,हमारे पवित्र धर्मग्रन्थ गीता में भी कही नारी की प्रगति को रोकने के फार्मूले नही दिए गए । नही कही किसी धर्म में नारी पर अत्याचार करने की बात कही गई हैं। हाँ मध्यकाल में कुछ बाते कुछ स्वार्थी लोगो द्वारा विशिष्ट उद्देश्यों से धर्म के साथ जोड़ दी गई ,नारी को सिर्फ़ उन बातो का विरोध करना हैं,साथ ही यह भी है की कुछ बाते जो वैज्ञानिक रूप से सही हैं उन्हें भी धर्म के माध्यम से नारी को बताया गया ताकि वो उनका पालन करे ,यह हमारे उपर हैं की हम किस बात को मानते हैं पर अधार्मिक हो जाने से नारी प्रगतिमान हो जायेगी यह बात मुझे नही रुचती । ईश्वर के मानने वालो के लिए वह प्रेम ,शान्ति और शक्ति का केन्द्र हैं और न जाने कितने देवी रूप हैं जो प्राचीन काल से हर नारी का आदर्श रहे है ।इसलिए ईश्वर और धर्म का विरोध करके नारी यह जंग जीत जायेगी ऐसा नही हैं ।
दरसल नारी का संघर्ष न पुरूष से हैं,न नारी से, नही ईश्वर और धर्म से। नारी का संघर्ष हैं तो सिर्फ़ उन बुराइयों से जो नारी को अपना श्रेष्ठत्व सिद्ध करने से रोकती हैं । उन रुढियों से हैं जो नारी को सदियों से छलती आई हैं । अपनी प्रगति के लिए नारी को आधुनिकता के नए अर्थ खोजने की या पुरुषों के विरुध्द खडे रहने की कोई आवश्यकता नही हैं । नारी स्वयं एक शक्ति हैं, प्रेरणा हैं,ज्योति हैं, जीवन हैं और जीत हैं । इसलिए अगर आवश्यकता हैं तो सिर्फ़ अपनी पुरी ताकत बटोरके अपने उचित उद्देश्य के पथ पर आगे बढ़ने की । आत्म शक्ति और दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर दुनिया की कठिनतम वस्तुए भी प्राप्त की जा सकती हैं । अपनी निर्णय क्षमता पर भरोसा हैं तो मुझ पर विश्वास कर सारे विरोध त्याग कर प्रेम से मन लगा कर ,अपनी मंजिल पाने की कोशिश करे ,दुनिया की कोई भी ताकत आपको नही रोक सकती । इसी प्रकार पुरूष भी नारी को उसके दुःख को दूर करने में सहायक बने ,उसके जीवन लक्ष्य को पाने में सहभागी बने । तभी एक सुखी,समृद्ध,स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकता हैं ।
इति ।
पुरूष और नारी समाज के दो आवश्यक घटक हैं ,अगर कहे की नारी और पुरूष से मिलकर ही समाज का निर्माण हुआ हैं तो ग़लत न होगा । ऐसे में,जब कहा जाता हैं की नारी को पुरुषों से संघर्ष करना हैं या उनके विरुध्द खडें रह कर आगे बढ़ना हैं। ऐसे ही जब पुरुषों पर बात आती हैं तो वह स्त्री विरोधी अभियान के प्रमुख सेनानी बन जाते हैं . यह सब देखकर लगने लगता हैं की हम कहाँ जा रहे हैं ? मन सोचने पर मजबूर हो जाता हैं की क्या नारी ,पुरूष की प्रतियोगी हैं ? या पुरूष,नारी का प्रतियोगी हैं ?
नारी जहाँ पुरूष की माता हैं ,बहन हैं,सखी हैं ,पत्नी हैं , वही पुरूष भी स्त्री का भाई हैं ,सखा हैं ,पति हैं ,पिता हैं । नारी और पुरूष संसार रूपी नाटक के वह पात्र हैं जिनके बिना संसार नाट्य की प्रस्तुति असंभव हैं । अगर पुरुषों द्वारा नारी पर अत्याचार हुए हैं तो नारी भी नारी दुःख में कम सहभागी नही हैं ।
कुछ दिनों पहले कहीं सुना की नारी जब पुरुषों के विरुध्द खडी हो सकती हैं तो वह ईश्वर की सत्ता को चुनौती क्यों नही दे सकती ?संसार का हर धर्म और ईश्वर नारी की प्रगति के खिलाफ हैं । मन बहुत दुखी हो गया . सोचा, क्या नारी केवल विरोधी बनकर रह गई हैं ?आधुनिकता के मायने पुराने संस्कारो और विश्वास को छोड़ देना तो नही हैं । संस्कार इन्सान को इन्सान बनाते हैं ,वही धर्म शब्द की व्याख्या इस प्रकार की गई हैं "ध्रु धातु धारणायत धर्म इत्याहु :"एवं -धारयति स:धर्म:" अर्थात वह नियम जो संसार को सँभालते हैं ,जिनके आधार पर संसार टिका हुआ हैं वह धर्म हैं । इस प्रकार धर्म शब्द का अर्थ व्यापक हैं ,हमारे पवित्र धर्मग्रन्थ गीता में भी कही नारी की प्रगति को रोकने के फार्मूले नही दिए गए । नही कही किसी धर्म में नारी पर अत्याचार करने की बात कही गई हैं। हाँ मध्यकाल में कुछ बाते कुछ स्वार्थी लोगो द्वारा विशिष्ट उद्देश्यों से धर्म के साथ जोड़ दी गई ,नारी को सिर्फ़ उन बातो का विरोध करना हैं,साथ ही यह भी है की कुछ बाते जो वैज्ञानिक रूप से सही हैं उन्हें भी धर्म के माध्यम से नारी को बताया गया ताकि वो उनका पालन करे ,यह हमारे उपर हैं की हम किस बात को मानते हैं पर अधार्मिक हो जाने से नारी प्रगतिमान हो जायेगी यह बात मुझे नही रुचती । ईश्वर के मानने वालो के लिए वह प्रेम ,शान्ति और शक्ति का केन्द्र हैं और न जाने कितने देवी रूप हैं जो प्राचीन काल से हर नारी का आदर्श रहे है ।इसलिए ईश्वर और धर्म का विरोध करके नारी यह जंग जीत जायेगी ऐसा नही हैं ।
दरसल नारी का संघर्ष न पुरूष से हैं,न नारी से, नही ईश्वर और धर्म से। नारी का संघर्ष हैं तो सिर्फ़ उन बुराइयों से जो नारी को अपना श्रेष्ठत्व सिद्ध करने से रोकती हैं । उन रुढियों से हैं जो नारी को सदियों से छलती आई हैं । अपनी प्रगति के लिए नारी को आधुनिकता के नए अर्थ खोजने की या पुरुषों के विरुध्द खडे रहने की कोई आवश्यकता नही हैं । नारी स्वयं एक शक्ति हैं, प्रेरणा हैं,ज्योति हैं, जीवन हैं और जीत हैं । इसलिए अगर आवश्यकता हैं तो सिर्फ़ अपनी पुरी ताकत बटोरके अपने उचित उद्देश्य के पथ पर आगे बढ़ने की । आत्म शक्ति और दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर दुनिया की कठिनतम वस्तुए भी प्राप्त की जा सकती हैं । अपनी निर्णय क्षमता पर भरोसा हैं तो मुझ पर विश्वास कर सारे विरोध त्याग कर प्रेम से मन लगा कर ,अपनी मंजिल पाने की कोशिश करे ,दुनिया की कोई भी ताकत आपको नही रोक सकती । इसी प्रकार पुरूष भी नारी को उसके दुःख को दूर करने में सहायक बने ,उसके जीवन लक्ष्य को पाने में सहभागी बने । तभी एक सुखी,समृद्ध,स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकता हैं ।
इति ।
दरसल नारी का संघर्ष न पुरूष से हैं,न नारी से, नही ईश्वर और धर्म से। नारी का संघर्ष हैं तो सिर्फ़ उन बुराइयों से जो नारी को अपना श्रेष्ठत्व सिद्ध करने से रोकती हैं । उन रुढियों से हैं जो नारी को सदियों से छलती आई हैं । अपनी प्रगति के लिए नारी को आधुनिकता के नए अर्थ खोजने की या पुरुषों के विरुध्द खडे रहने की कोई आवश्यकता नही हैं । बहुत सही कहा।
ReplyDeleteबिल्कुल सहमत हूं , आपके विचारों से। भारत में पुरूषों और स्त्रियों को जो संस्कार दिए गए थे , उसके अनुसार एक दो प्रतिशत मामलों को छोड़कर अन्य सभी जगहों पर स्त्रियों का स्थान पुरूषों के पैर से शुरू होकर माथे तक पहुंच जाता था। पर आज की वो नारियां , जो पुरूषों से संघर्ष करना चाहती हैं ,एक दो प्रतिशत मामलों को छोड़कर अन्य सभी जगहों पर उनका स्थान दिल से शुरू होकर लातों तक पहुंच जाता है। उम्र के अंतिम चरण में वे बिल्कल अकेली पड़ जाती हैं ,ऐसा ही हमने महसूस किया है।
ReplyDeleteअच्छाई और बुराई हर किसी में होती है. बुराई का विरोध करते समय हमें (किसी) का विरोध नहीं करना चाहिए, क्योंकि उस किसी के साथ ही अच्छाई भी जुड़ी हुई है.
ReplyDeleteराधिका जी आप का कहना बिलकुल सही हे, नर ओर नारी दोनो ही एक दुसरे के पुरक हे, लेकिन आज जो नारियां पुरुषो से संघर्ष चाहती हे, लेकिन किस बात मे वह संघर्ष करना चाहती हे, कुछ अपवादो को छोड कर नारी पुरुष से उपर हे, उसे ज्यादा इज्जत मिलती हे जब तक उस मे नारी के गुण मोजुद हे,ओर मुझे यही लगता हे वोही नारियां ऎसी बाते करती हे जो अपने घरो मे सुखी नही, या तलाक शुदा हे, या फ़िर शादी ही नही हुयी, एक घर को बनाने मे नर जितनी मेहनत करता हे नारी उस से ज्यादा मेहनत करती हे फ़िर केसे एक नारी अपने झुठे अंहाकार मे आ कर अपना घर बरबाद कर सकती हे,ओर घर संघर्ष से नही प्यार से बनता हे, आप के यहां आ कर बहुत कुछ मिलता हे, अच्छी बाते ग्यान ओर सब से बडी बात शांति यह सब बाते हमारी बीबी जी कह रही हे,
ReplyDeleteधन्यवाद
nari ka sangharsh nari man se hai jo
ReplyDeletevidhata ki den hai arthaat ..
'the xx chromosomes' jo use stree hone ka mukut pahanata hai .virodhabhaas nari ka janmsiddh adhikaar hai . ise parimarjit sanskaron se hi sudhara ja sakta hai! aaiye ham sab parayatn karen ek 'svarn madhya' sanskar ka .har achhi nai baat purani hote hote maanya ho jati hai!
".............दरसल नारी का संघर्ष न पुरूष से हैं,न नारी से, नही ईश्वर और धर्म से। नारी का संघर्ष हैं तो सिर्फ़ उन बुराइयों से जो नारी को अपना श्रेष्ठत्व सिद्ध करने से रोकती हैं । उन रुढियों से हैं जो नारी को सदियों से छलती आई हैं । अपनी प्रगति के लिए नारी को आधुनिकता के नए अर्थ खोजने की या पुरुषों के विरुध्द खडे रहने की कोई आवश्यकता नही हैं । नारी स्वयं एक शक्ति हैं, प्रेरणा हैं,ज्योति हैं, जीवन हैं और जीत हैं । इसलिए अगर आवश्यकता हैं तो सिर्फ़ अपनी पुरी ताकत बटोरके अपने उचित उद्देश्य के पथ पर आगे बढ़ने की । आत्म शक्ति और दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर दुनिया की कठिनतम वस्तुए भी प्राप्त की जा सकती हैं । अपनी निर्णय क्षमता पर भरोसा हैं तो मुझ पर विश्वास कर सारे विरोध त्याग कर प्रेम से मन लगा कर ,अपनी मंजिल पाने की कोशिश करे ,दुनिया की कोई भी ताकत आपको नही रोक सकती । इसी प्रकार पुरूष भी नारी को उसके दुःख को दूर करने में सहायक बने ,उसके जीवन लक्ष्य को पाने में सहभागी बने । तभी एक सुखी,समृद्ध,स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकता हैं । .............."
ReplyDeleteआपकी बातों विचारों से शत प्रतिशत सहमत हूँ.बिल्कुल ही सही सटीक कहा है आपने.इस सोच से इतर हो स्त्रियाँ स्वयं ही भ्रम में फंसती जा रही है और दिशाहीन हो रही हैं.बहुत विचारित्तेजक लेख लिखा है आपने.इसकी जितनी प्रशंशा की जाए कम है.
राज भाटिया जी के शब्द दोहराने का मन कर रहा है।
ReplyDeleteआपकी संतुलित पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteसही कहा,आपके विचारों से सहमत हूँ!
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