कहते हैं बेटी माँ की परछाई होती हैं ,वो मेरी परछाई नही ,एक दैवीय ज्योति हैं,जो जीवन को प्रकाशित करती हैं मेरा ही चेहरा,मेरी शक्ति,शांति,संगती ,गीति,आरोही ....
Friday, January 2, 2009
उसे देखा हैं पहले भी कहीं ..............
लगता हैं ,जैसे उसे देखा हैं पहले भी कहीं ।
कहाँ? ये याद नही ।
शायद मेरे सपनो में ,
मेरी कल्पनाओ में ,
मेरी भावनाओ में ।
शायद...नीले बादलो में,
टीमटिमाते तारो में,
वासंती बहारो में ,
शायद...
कभी कहीं किसी मोड़ पर ,
इस या उस जनम के छोर पर,
रात को दिन बनाती भोर पर ।
उसे देखा हैं कहीं ....
इसी तरह मुस्कुराते हुए ,
रुठते- मनाते हुए ,
हँसते खिलखिलाते हुए ,
गाते लजाते हुए ,
देखा हैं कहीं ....
शायद ...अपने ही चेहरे में ,
वास्तविकता से बहरे
अंतर्मन के सुंदर सेहरे में ,
उसे देखा हैं मैंने कहीं ...
कहाँ ये जानती नही ...
पर हर पल आती जाती साँस मुझे बताती हैं ,
वह युगों से मेरी हैं ,मेरी सखी सहेली हैं ।
मेरी 'बेटी' सात सुर हैं मेरे, साथी जन्मो के ,
औरो के लिए भले वो नये गीत सी नवेली हैं ।
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पर हर पल आती जाती साँस मुझे बताती हैं ,
ReplyDeleteवह युगों से मेरी हैं ,मेरी सखी सहेली हैं ।
मेरी 'बेटी' सात सुर हैं मेरे, साथी जन्मो के ,
औरो के लिए भले वो नये गीत सी नवेली हैं ।
रािधका जी,
बहुत संुदर भाव को शब्दबद्ध किया है । प्रेम के कोमल भाव की साथॆक अभिव्यक्ित । वात्सल्य रस क। जो संचार इन पंक्ितयों में है वह दिल को छू जाता है ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
पर हर पल आती जाती साँस मुझे बताती हैं ,
ReplyDeleteवह युगों से मेरी हैं ,मेरी सखी सहेली हैं ।
मेरी 'बेटी' सात सुर हैं मेरे, साथी जन्मो के ,
औरो के लिए भले वो नये गीत सी नवेली हैं ।
रािधका जी,
बहुत संुदर भाव को शब्दबद्ध किया है । प्रेम के कोमल भाव की साथॆक अभिव्यक्ित । वात्सल्य रस क। जो संचार इन पंक्ितयों में है वह दिल को छू जाता है ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
वाह ! बहुत खूब !
ReplyDeleteशायद...नीले बादलो में,
ReplyDeleteटीमटिमाते तारो में,
वासंती बहारो में ,
shubhkaamnaaon ke saath
kya baat hai
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और कोमल कविता है
ReplyDelete---मेरे पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम पर आपका सदैव स्वागत है|
"pr hr pl aati jaati saans mujhe btati hai, veh yugo se meri sakhi saheli hai..."
ReplyDeleteEk beti...jaise maaN ki hi aatma ka atoot hissa, maaN ke mun ki antrang pukaar, maaN ke hone ka poora arth...ek beti hi....
Aapki khoobsurat kavita se nanhi bitiya ki khil.khilaahat ubhar.ubhar kar sunaai deti hai.
Achhi abhivyakti par haardik shubh.kaamnaaeiN.
---MUFLIS---