कल यूनिवर्सिटी जाने के लिए ऑटो चालक ने हमेशा से अलग रास्ता चुना । पुराने शहर के इलाके में आने वाली इस सड़क के दोनों तरफ़ गरीब परिवारों के घर हैं ,घर क्या हैं! छप्पर हैं ,कुछ पुरानी त्रिपाल से बनी हुई झुग्गिया ,उसमे रहने वाले गरीब लोग ,कहीं बर्तन मांजती ,कपड़े धोती ,चूल्हे पर खाना पकाती स्त्रिया,कुछ चुना परचूनी की दुकाने ,किराने के सामान की दुकाने,जहाँ का आधा सामान शायद बरसो पहले अपनी एक्स्प्यारी डेट पार कर चुका होगा . मैले कुचेले कपड़े पहने कुछ बच्चे थे ,जो एक दुसरे के पीछे चूहे बिल्ली की तरह भाग रहे थे ,कुछ माँ के साथ बैठ कर बर्तनों को लगाने वाली राख को पावडर समझ कर सज सवर रहे थे . मेरे साथ बैठी आरोही उन बच्चो को देखकर जोर जोर से हँस रही थी । कुछ आगे जाने पार मैंने देखा ,काफी लोग एक वृत्त बनाकर खड़े हैं ,वृत्त के बीचो बीच एक ८-१० साल का बच्चा ढोल बजा रहा हैं ,और उसकी ढोल की ताल से ताल मिलाकर तक़रीबन २साल, हाँ इतनी ही उम्र का बच्चा नाच रहा हैं ,न जाने क्यो यह देखकर मेरा मन भर आया और आँखों से आंसुओ की दो बुँदे अनायास ही छलक गई । मैंने सोचा ऐसा क्यो ?जब मेरी पौने दो साल की आरोही ख़ुद ही टीवी, रेडियो या म्यूजिक प्लेयर ऑन करके फिल्मी , कई बार मुझे कर्कश लगने वाले गानों पर नाचती हैं तो मेरा मन झूम उठता हैं ,उसको इस तरह नाचते देखने पर मुझे असीम सुख मीलता हैं ,आँखे तब भी इसी तरह छलछला जाती हैं ,फ़िर अभी जो आँखे छलछला आई, तो अंतर क्या हैं ?अंतर ............................................
अंतर तो सिर्फ़ इतना ही हैं की जब आरोही नाचती हैं तो वह स्वांत सुखाय नाचती हैं ,अपनी खुशी से ,अपनी मन से ,अपनी मर्जी से और यह जो बच्चा नाच रहा हैं वह नाच रहा हैं अपनी गरीबी से ,अपनी मज़बूरी से ,अपनी रोजी रोटी के लिए । अंतर तो सिर्फ़ इतना ही हैं की आरोही जब नाचती हैं तब मैं और पतिदेव इतने खुश होते हैं की कह नही सकते ,और जब यह बच्चा नाच रहा हैं तब इसके माँ पिता अपनी गरीबी पर शायद दुखी हो रहे होंगे , नृत्य करते इसके पैरो की थिरकन पर उनके ह्रदय जलते होंगे । अंतरसिर्फ़ इतना ही हैं की जब आरोही नाचती हैं तो मेरी आँखे खुशी से छलछला जाती हैं और आज इस बच्चे की मज़बूरी देखकर दुःख से छलछला आई हैं ,अंतर सिर्फ़ इतना हैं की आरोही एक समृद्ध घर की बेटी हैं और वह बच्चा एक गरीब घर का बेटा हैं ,जिसे भारत जैसे विकासशील देश में भी लगभग दो साल की उम्र से ही अपना पेट पालने की जद्दोजहद से गुजरना पड़ता हैं,दो समय के भोजन के लिए दिन में कई कई बार नाचना पड़ता हैं । दोनों बच्चे हैं ,दोनों एक ही उम्र के हैं लेकिन एक इतना सा अंतर कितना बडा और दुखद हैं न !....................
bahut gambir chintan
ReplyDeletereally impressive
ReplyDelete---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
विवशता में कोई काम करना और प्राक्रतिक अवस्था में कोई काम करने में बहुत अच्छा अंतर स्पस्ट किया गया है
ReplyDeleteनिःसंदेह दुखद है और किसी भी समाज के लिए यह शर्मनाक होता है कि वह अपने कमजोर तबकों के लिए समान अवसर नही उपलब्ध करा पा रहा है
ReplyDeleteबहुत सही तस्वीर प्रस्तुत की है आपने, जब नन्हे मुन्नों की खुश होकर खेलने कूदने की नाचने गाने की उम्र होती है तब उनसे यह सब करवाना पड़े, कितने बेबस होंगे उनके माता पिता, और कितने बेबस हैं हम की देखकर कुछ कर भी नही सकते..
ReplyDeleteयही विडंबना है. दुखद तो खैर है ही.
ReplyDeleteइतना सा अंतर बहुत दुखद हैं .....
ReplyDeleteयही जीवन का सच है....जिसके मूल को समझ पाना कठिन है....व्यक्ति बेवजह अपने ऊपर इतराता है...जब कोई मनुष्य बेहतर हालात ओर बेहतर जगह पैदा होता है तभी उसे अवसर मिलते है......शायद इसलिए जीवन का मूल्य है ,जो मनुष्य को जीवन में एक बार मिलता है....ओर वो इसकी कीमत समझ नही पाता....एक ही समय में अम्बानी के यहाँ पैदा हुआ बालक ओर किसी झोपडे में पैदा हुआ बालक .दोनों की किस्मत अलग है....शायद कोई चमत्कार ही इसे परिवर्तित करे.....कभी कभी इसलिए इश्वर के इन फैसलों पर जिरह करने का मन होता है.....पर शायद हम मानव ही अपने दुखो के जिम्मेदार होते है
ReplyDeleteबहुत सही तस्वीर प्रस्तुत की है आपने !
ReplyDeleteजब इंसानियत मर जाती है तो फ़िर इतना फ़र्क आ जाता है, बहुत ही भावुक लेख लिखा आप ने धन्यवाद
ReplyDeleteसंवेदनशील पोस्ट!
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