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Sunday, March 8, 2009

स्त्रिय: समस्ता :सकला जगत्सु । त्व्यैक्या पूरितमम्ब्यैतत ॥



वह किसी की माँ हैं , किसी की पुत्री भी,किसी की अर्धांगिनी हैं , किसी की बहन भी ,किसी की सखी हैं तो किसी की गुरु भी और इन नातो -रिश्तो से हटकर कहे तो वह स्त्री हैं ,नारी हैं नारी जिसे हम अपने घर में माँ ,बहन ,बेटी, पत्नी की भूमिका में देखते हैं और बाहर एक कर्तव्य परायण ,,कार्य प्रवीन,धर्मनिष्ठ ,अधिकारी के रूप में






माँ ...वह शब्द जिसका परिचय हर व्यक्ति को जीवन में सबसे पहले होता हैं ,माँ क्या होती हैं इसका वर्ण करना केवल और केवल असंभव हैं, माया ममता ,उसका स्नेह शिशु को जीवन देता हैं ,चेतन देता हैं ,और संरक्षण देता हैं
देवी प्रप्न्नार्त्तीहरे प्रसिद
प्रसीद मातरजगतोsखिल्स्य
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं
तवामिश्वरी देवी चराचरस्य "

यह वंदना हैं आदि शक्ति देवी की और कितनी समता हैं देवी और नारी के रूप में वह जगत माता हैं जो जगत का संरक्षण करती हैं और माता शिशु का संरक्षण करती हैं


वह ज्ञान रूप हैं ,बुद्धि रूप हैं ,देवी रूप में वही बुद्धि सब मनुष्यों के ह्रदय में विराजमान रहती हैं
सर्वस्य बूद्धिरुपेण जनस्य हृदि संस्तिथे

जब जब भी नारी के गौरव को कम आंका जाता हैं ,उसकी श्रेष्टता पर पश्न उठाये जाते हैं ,उसके अस्तित्व पर संकट छटा हैं ,तो मन दुखी हो जाता हैं . वह गुणमयी ,ज्ञानमयी,स्वरमयी,कलामायी ,ममतामयी ,कल्याणी,शक्तिरूपा ,अन्नपूर्णा हैं ,यह जानते हुए भी वह बार बार स्वयं को कमजोर,लचर और अबला जानने लगती हैं तो यह दुःख और बढ़ जाता हैं

मैंने हमेशा महसूस किया हैं की नारी शक्ति स्वरूपा हैं ,और आज इस बात की पुष्टि के लिए प्रमाण भी हैं

स्त्रिय: समस्ता :सकला जगत्सु
त्व्यैक्या पूरितमम्ब्यैतत
(श्रीदुर्गा सप्तशती:एकादश अध्याय:श्लोक क्रमांक :)

अर्थात हे देवी जगदम्बे ,जगत में जितनी भी स्त्रिया हैं वह सब तुम्हारी ही मुर्तिया हैं
इसलिए अगर स्त्री चाहे तो वह ,वह सब कर सकती हैं जो वह करना चाहती हैं ,यह ताकत सिर्फ़ उसीमे हैं जो बडे बडे संकटों का नाश कर ,श्रेष्ट से श्रेष्ट और कठिनतम कार्य भी पूर्ण कर सकती हैंजरुरतहैं तो सर्वशक्तिमान नारी को स्वयं को पहचानने को

8 comments:

  1. जरुरतहैं तो सर्वशक्तिमान नारी को स्वयं को पहचानने को

    very nice

    most important is that woman understands that its iomportant to become human then a goddess

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  2. स्त्री अपने आपमें बहुत बड़ी शक्ति है, उसे तथाकथित देवियों-दुर्गाओं में परिवर्तित न करें।

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  3. आपने सही कहा स्त्री स्वयं में बहुत बडी शक्ति हैं ,इसलिए ही उसे दुर्गा कहा जाता हैं ,उसे किसी भी दैवीय रूप में परिवर्तित नहीं किया हैं मैंने,लेकिन उसकी यही सत शक्ति ही उसके देवी होने का प्रमाण हैं

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  4. राधिका जी ,
    आपके भाव अच्छे हैं पर यह तनिक अजीब सा हो जाता है जब हम जड़त्व को प्राप्त पितृसत्तात्मक अभिव्यक्तियों को अपना कर अपनी बात कहना चाहते हैं।हमारा मंतव्य कुछ और होता है लेकिन सम्प्रेषित वही होता है जो पितृसत्ता कहलवाना चाहती है।साफ कहूँ तो दुर्गा सप्तशती की रचना करने वाला कोई पैट्रियार्क नही रहा होगा मुझे इसमें सन्देह है।

    आपकी अंतिम पंक्ति से पूर्णतया सहमत हूँ !

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  5. Aapki is post ki kya kahun...aapke vichaar aur unke sampreshan/abhivyakti ka tareeka mujhe abhibhoot aur nihshabd kar jata hai...

    Bahut hi sundar dhang se aapne baat kahi hai,jise nakarne ka koi prashn hi nahi uthta...

    Kuchh log atiwadi hote hain aur unme sahi galat me bhed karna karne ki kshamta nahi hoti.unki baaton ko gambheerta se na len...

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  6. राधिका जी ,
    या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रुपेण सँस्थिता का सुँदर सँदेश दिया आपने
    और्,
    महिला दिवस व होली पर्व की शुभकामनाएँ
    स्नेह,
    - लावण्या

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  7. आपने हमेशा महसूस किया है कि नारी शक्ति स्वरूप है तो उसकी पुष्टि में प्रमाण एकत्रित करने की क्या आवश्यकता है /**जब नारी के गौरव को कम आँका जाता है "" माँ के गौरव को कम आंकने वाले बुद्धिहीन होते है /एक श्लोक है आदि शंकराचार्य जी का "" कुपुत्रो जयते क्वचिदपि कुमाता न भवति ""आपका लेख सटीक /

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