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Tuesday, October 14, 2008

नारी संरक्षण ,विकास . कैसे ?

जबसे ब्लॉग जगत में आई हूँ ,नारी के विकास के विषय में बहुत सारी चर्चा होते हुए देखी हैं ,पढ़कर बहुत अच्छा लगता हैं की,आज की नारियां नारी विकास के विषय में बहुत सगज और गंभीर साथ ही दॄढ प्रतिघ्य हैं ,यह जानकर और भी अच्छा लगता हैं की सिर्फ़ महिलाये ही नही कुछ पुरूष भी नारी विकास के विषय में सकारात्मक और अच्छा लिख रहे हैं ,हर कोई चाह रहा हैं नारी का विकास हो, उन्नति हो । हर कोई अपने नजरिये से इस प्रश्न का हल खोज रहा हैं की आज के युग में जहाँ नारी ,घर की जिम्मेदारी सँभालने के साथ , अध्ययन ,अध्यापन , अर्थ उपार्जन ,सब क्षेत्रो में काफी आगे बढ़ गई हैं , उसने जहाँ अपनी कार्यकुशलता को सिद्ध किया हैं ,उसे पुरा संरक्षण कैसे मिले और उसका विकास अधिकाधिक कैसे हो ?

मैंने भी अपने आसपास बहुत सी लड़कियों को कभी मनचाहा शिक्षण पाने के लिए ,अपने केरियर के लिए ,अपनी सुरक्षा के लिए ,अपने विवाह से संबंधित विषय पर परेशान होते ,लड़ते - झगड़ते देखा हैं । कई बार इस मुद्दे पर बहुत विचार किया हैं की ये सब क्या हो रहा हैं ?क्यों हो रहा हैं ?कब तक होता रहेगा?सिर्फ़ शारीरिक दृष्टि से दुर्बल होने का परिणाम नारी कब तक भोगती रहेगी ?

हर बार यही उत्तर मिला हैं की यह समस्या सिर्फ़ नारी की नही पुरे समाज की हैं ,क्योकि नारी और पुरूष ही समाज के घटक हैं ,इसलिए अगर समाज के किसी तत्त्व को कोई समस्या हैं तो वह सम्पूर्ण समाज की समस्या हैं ,और सम्पूर्ण समाज की मनोवृति ,या कहे सोच को बदल कर ,सामाजिक व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करकर ही इस समस्या का निराकरण सम्भव हैं । बात जब स्त्रियों के साथ हो रही छेड़खानी की आती हैं तो मैं बार बार कहती हूँ की इसके लिए स्त्री को ही सबसे पहले खुदको सबल और हिम्मती बनाना होगा ,जब जब स्त्रियाँ अपने साथ हुई इस छेड़खानी का सही -सही उत्तर इन ग़लत लोगो को देंगी तब तब उन्हें देखकर अन्य स्त्रियों की हिम्मत बढेगी और ऐसे मनचलों की हिम्मत घटेगी .हर लड़की को मेरे विचार से जुडो- कराटे जैसी विधाये स्वरक्षा के लिए सीखनी ही चाहिए ।साथ ही उसके संरक्ष्ण के लिए बने कानूनों का पूर्ण उपयोग करना चाहिए , अगर कोई किसी महिला से गलत व्ह्य्वार करता हैं तो इसके लिए स्त्री को ख़ुद ग्लानी महसूस करनी नही चाहिए यह उसकी नही बल्कि उस व्यक्ति की गलती हैं जिसने उसके साथ ऐसा किया हैं ,चरित्र नारी का नही उस व्यक्ति का खराब हुआ हैं ,बाकायदा हिम्मत करके उसके खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए ।

बात जब पुरुषों की मनोवृत्ति बदलने की आती हैं तो मैं पुनः कहूँगी सारे पुरूष गलत नही होते ,समाज में अगर बुरे लोग हैं तो अच्छे भी लोग हैं नारी का सम्मान करने वाले ,उसे माँ का दर्जा देने वाले भी कई पुरूष हैं , जो गलत हैं ,जिनकी विकृत मनोवृत्ति हैं ,उनको अगर कहें की भाई अपनी सोच बदलो तो वह नही बदलने वाले ,कुछ को दैवीय कृपा के चलते अच्छे बुरे की समझ आ जाए तो यह चमत्कार ही होगा।
नारी जननी हैं ,माँ हैं ,वह एक व्यक्ति को जन्म मात्र ही नही देती बल्कि एक व्यक्तित्व निर्माण करती हैं ,इसलिए सबसे पहले स्वयं के विकास के लिए नारी को ख़ुद की क्षमताओ और अपने गुणों को अपने दैवीय रूप को समझाना जरुरी हैं ,जब स्त्री ही स्त्री के दुःख का कारण बनती हैं तो दुःख सबसे ज्यादा होता हैं , क्यो एक माँ अपने पति का या अपने बेटे का विरोध तब ज्यादा नही कर पाती जब वह उसकी लाडली ,पढ़ी लिखी बेटी की शादी किसी वयोवृद्ध या अनपढ़ व्यक्ति के साथ सिर्फ़ इसलिए कर देता हैं की उम्र २८ की हो गई अभी तक कुँवारी बैठी हैं ? क्यो एक सास अपनी बहूँ का साथ सिर्फ़ इसलिए नही दे पाती की बेटे का साथ न देने पर समाज आलोचना करेगा ?क्यों दहेज़ की बात आने पर माँ ,सास न चाहते हुए भी अपने घर के बडो का विरोध नही कर पाती ?क्यों एक स्त्री होते हुए भी एक स्त्री के जन्म पर वही सबसे ज्यादा दुखी हो जाती हैं ?क्यों किसी लड़की के साथ गलत हो जाने पर ,कई नारियां भी उसे ही दोष देती हैं ,या उसे बिचारी कहती हैं ?क्योकि वर्षो से उसको सिर्फ़ यही सिखाया गया हैं की उसे पुरूष की अनुसरणी बनकर चलना हैं ,उसे उसकी माँ ने, माँ की माँ ने ,पिता ने ,दादा ने,नानी ने नाना ने ,यही सिखाया हैं की बेटी तू बेटी हैं तुझे सहन करना हैं ।यह सही हैं की नारी में धैर्य ,सहनशीलता ,आदि गुण ज्यादा होते हैं ,और उन्ही गुणों के होने के कारण वह अपने परिवार को संभाल पाती हैं, सहेज पाती हैं । किंतु उन गुणों का हवाला देकर अत्याचार सहन करना गलत था, गलत हैं और गलत ही होगा . हो यह रहा हैं की नारी पढने लिखने के बाद भी ख़ुद को उस सोच से बाहर नही निकाल पा रही ,वह जितना पुरूष के कारण दुखी हैं ,बंधन में हैं ,उससे कहीं ज्यादा खुदने स्वयं को उसी सोच में बाँध कर रखा हैं । आजकल सोच बदली हैं और कुछ जागरूक नारियां इस संबंध में जागृति भी फैला रही हैं .किंतु हर अच्छी चीज़ की शुरुआत घर से ही होती हैं ,जरुरत हैं की नारी स्वयं को कम न समझे,अपने बेटो को वही संस्कार दे ,नारी का सम्मान सच्चे अर्थो में करना सिखाये,अभी भी देर नही हुई हैं,कम से कम आगे आने वाली पीढी में तो ऐसे पुरूष नही होंगे जो नारी का निरादर करेंगे,और जो निरादर करके रहे हैं ,नारी के सबल होने से उसका भयपुर्वक या आदर पूर्वक सम्मान ही करेंगे ।
हाँ एक बात और ये हिन्दी सिनेमा ने नारी को अबला दिखाने में कोई कसर नही छोड़ी हैं ,अमूमन हिन्दी सिनेमा में एक लड़की को लड़के छेड़ते हैं और वह हीरो को आवाज़ देती रह जाती हैं या गुंडों से विनती करती रह जाती हैं यह दिखाया जाता रहा हैं, दिखाया जाता हैं । इसका विरोध होना ही चाहिए ,लड़की के साथ छेड़ छाड हो रही हैं ऐसे दृश्यों से पिक्चर तो चलती हैं किंतु नारी की गरिमा का अपमान होता हैं ऐसे दृश्यों पर रोक लगनी चाहिए ।

इति

8 comments:

  1. Anek samajik muddon ko aapne ek lekh men sameta hai. aapne achhe se apne man ki baat kahi hai. yah sahi hai ki mahilaon ki samsyayen poore samaj ki hain, akele mahilaon ki nahin. yah bhi theek hai ki jab kisi mahila se galat vyavhar hota hai to use glani karne ki bajay virodh karana chahiye, doshi ke khilaf himmat se aage aana chahiye. duniya men sab log ekjaise nahin hote fir bhi bure logon ki sankhya badh rahi hai, isliye yah asha karna ki jaldi koi sudhar hoga,vyarth hai.

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  2. यह चिंतन पसंद आया..आपने सिक्के के हर पहलू को परखा है वरना एक ही तरफ से देख सिक्का कथा सुनते अब तक परेशान हो लिए थे.

    बहुत बढ़िया सार्थक पोस्ट.

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  3. बहुत सही लिखा है आपने ..

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  4. बहुत ही सार्थक पोस्ट है. तर्कपूर्ण लेख है. हर अन्याय का विरोध करना ज़रूरी है. नारी को अपनी शक्ति पर विश्वास रखकर आगे बढ़ना है. आख़िर उसे किसी की दया की ज़रूरत नहीं है.

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  5. ये जरूरी है कि नारी अपने को अबला समझना छोड़े। अपनी ताकत को पहचाने। बहुत से पुरूष भी शारीरिक रूप से दुर्बल या अक्षम होते हैं लेकिन वह भी अपने को मर्द और नारी को हेय समझते हैं। ये इसलिए कि हम उन्‍हें समझने का मौका देते हैं।

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  6. सही सोच और यथार्थ को प्रकट करता है यह आलेख।

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  7. radhika ji,
    bahut prabhavshali dhang sey aapney es muddey ko uthaya hai. naari swablambi bankar, atmvisvas aur dradh sankalpshakti ko dharan karkey hi aur majboot ho sakti hai.

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  8. राधिका जी बहुत ही सुन्दर है आप का यह लेख.
    धन्यवाद

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