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Monday, October 20, 2008

ये फुर्सती प्राणी! (महिमा वंदन )

आज के समय में हम सब व्यस्त हैं किसी के पास समय नही हैं ,सब समय की कमी के कारण दुखी हैं,पर बिरले ही सही आज के युग में भी ऐसे कुछ प्राणी हैं जिनके पास समय ही समय हैं ,अपने लिए औरो के लिए समय ही समय,समय की कमी कभी इन्हे नही सताती ,ये कभी भी कहीं भी जा आ सकते हैं ,सो सकते हैं, जाग सकते हैं या तो इनका टाइम मेनेजमेंट बहुत अच्छा हैं या इन पर समय बड़ा मेहरबान हैं , मैं इन्हे प्राणी इसलिए कह रही हूँ क्योकी आज के युग के समय की कमी से ग्रस्त महिला पुरुषों की तरह दुखी और दिन हीन न होकर ये सुखी और आनंदी हैं ,ये इस लोक के नही किसी अन्य लोक के प्राणी हैं जो जीवन जीने की कला सिखाने हमें धरती पर आए हैं ,आए जाने इनकी महिमा ,और करे गुणगान ..............

सुबह के आठ बजे थे ,हमेशा की तरह मैं नाश्ता बनने मैं वयस्त थी ,की कुछ काम से बालकनी में जाना पड़ा । देखा मेरे घर के पीछे वाले बंगले में पडे झूले पर दो महिलायें बैठी आराम से झूल रही हैं ,मैंने खास ध्यान नही दिया ,सुबह ११ बजे फ़िर बालकनी में गई देखा वो महिलाये अभी भी झूले पर बैठी हैं , दुपहर २ बजे फ़िर किसी काम से बालकनी में गई देखा देखा वो अभी भी झूले पर बैठी हैं ,गपिया रही हैं . मुझे देख मुस्कुराई ,प्रत्युत्तर में मैं भी मुस्कुराई ,शाम छ:बजे गमलों में पानी डालने बालकनी में गई ,वह महिलाये अभी भी झूले पर बैठी इधर उधर की बतिया बना रही थी ,मैंने सोचा हद हो गई ,कैसे बैठी हैं आराम से ?मुझे पूछा कैसी हो ?जी ठीक हूँ आप कैसी हैं ?बस ठीक हैं ।
रात ९ बजे बालकनी में ईश्वर का नाम लेते हुए गई ,हे प्रभु अब तो कम से कम वो दोनों वहाँ न दिखे ,पर वही हुआ जिसका डर था वे अब भी आराम से बाते कर रही थी वही उसी झूले पर बैठी,मुझे फ़िर पूछा?केम छो बेन ? सारी छु । उस दिन से लेकर आज का दिन हैं मैं जब भी बालकनी में जाती हूँ वो वही मुझे बतियाते मिलती हैं ।

आज के भागम भाग के युग में इसी फुर्सत किस के पास हैं की घंटो बैठ के बातें बनाई जाए और बातें भी क्या ,वही इसकी लड़की की शादी उससे हुई,उसके लड़के ने यहाँ नौकरी की ,उसकी माँ की ताई की सास की नानी की दादीकी बेन की बेटी की चचियाँ सास की ,देवरानी की बेटी ने भाग के शादी की । बाप रे बाप !कमाल की स्मरण शक्ति और कमाल की स्नेहशीलता ,इतने दूर के नाते की बाते !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

एक और भाई साहब हैं ,उनके पास टाइम ही टाइम हैं ,ख़ुद नौकरी कर नही पाते क्योकि महाराज को नौकरी करना पसंद नही,बिजनेस चला नही पते, पत्नी दिन रात घर बाहर काम करके थकती रहती हैं ,वैसे इन महाशय की सुनी जाए तो इन्होने पत्नी को अवसर दिया हैं ,स्वयं को सिद्ध कर दिखाने का । अब महाशय करे तो क्या ?दिन भर घर में बैठे बैठे बोर हो जाते हैं, ऐसे में समाज सेवा करते हैं ,सुबह सुबह आठ बजे किसी रिश्तेदार के यहाँ पहुँच जाते हैं और कहते हैं बताइए भैया क्या काम हैं ,भाभी मैं चिंटू को स्कूल छोड़ आऊंगा ,भाभी समझ जाती हैं (यानि चिंटू के स्कूल के पास रहने वाले रिश्तेदारों के यहाँ जाने का किराया !!)भाईसाहब मैं मिठाई के चार डब्बे ले आऊंगा (यानि एक डब्बा इन्हे भी :-))शाम के के खाने के लिए तरकारी मैं खरीद लाऊंगा (यानि शाम का खाना यही पर ) बा की तबियत ठीक नही ?कोई बात नही मैं देखभाल कर लूँगा आज । (यानि आज दिन भर एसी और टीवी चालू कर बा की नींद बिल्कुल ख़राब!!!!!!!!!!!!!!)

एक काकी हैं इनके हाथ घर के काम करने से दुखते हैं , कहीं बाहर जाना हो काम से तो घुटनों का दर्द बढ़ जाता हैं ,
घर पर बहूँ ने बनाये हर खाने में कभी मिर्ची ज्यादा तो कभी नमक कम लगता हैं ,मीठा खाने से डाइबीटीज बढ जाता हैं ,तीखा खाने से बल्ड प्रेशर । इन सब के बावजूद कमाल की इच्छा शक्ति के चलते हर दुसरे दिन सुबह सुबह घर से पॉँच किलोमीटर दूर रहने वाले किसी न किसी रिश्तेदार ,पहचान वाले के घर आ जाया करती हैं,गृहणी की सुबह सुबह की खिटपिट के कठोर स्वरों में अपने यश की गाथा का और बहूँ की असफलता की गाथा की आरोही अवरोही तानो का समावेश कर वातावरण को और भी विचित्र बना देती हैं । गृहणी घर वालो के लिए जो कुछ भी बनाती हैं ,उसे बड़े प्रेम से खा तारीफों के पुल बाँधती हैं । क्या प्रेम हैं अपनी नातेवालियों से और क्या सरलता ।

जय हो इन फुरसती प्राणियो की और इनकी गप्पे मारने की क्षमता की। हम जैसे लोग जो स्वयं को प्रबुद्ध कहते हैं ,सुबह से शाम तक कभी ऑफिस और घर के काम में लगे रहते हैं ,कभी पढ़ते हैं कभी पढाते हैं ,थोड़ा समय मिला तो लिखने लिखाने लग जाते हैं । हम किसी से मिलने नही जा पाते,किसी के काम नही आ पाते ,किसी की हँसी नही उड़ा पाते । क्योकि हमारे पास समय नही हैं । पर ये प्राणी आज के युग में जीते हुए भी मानवीयता और सहृदयता को बनाये हुए हैं, इनके कारण ही भाईचारा टिका हुआ हैं ,आइये आज इन्हे नमन कर इनके प्रति कृत्घ्यता ज्ञापित की जाए प्रार्थना की जाए की हर घर में एक प्राणी ऐसा हो ताकि फुर्सती लोगो को बढ़ावा मिले और देश में पुनः अपनत्व और भातृत्व की भावना बढे । आजकल हर दिन कोई न कोई डे होता हैं ,तो क्यों न इनके सम्मान में आज के दिन को फुर्सती प्राणी डे घोषित किया जाए ?मैं इन्हे श्रद्धा ज्ञापित करते हुए बारम्बार कहूँगी ...................
जय फुर्सती प्राणी जय आरामी प्राणी ।

13 comments:

  1. एक काकी हैं इनके हाथ घर के काम करने से दुखते हैं , कहीं बाहर जाना हो काम से तो घुटनों का दर्द बढ़ जाता हैं__________________

    बहुत ही अच्‍छी पोस्‍ट, फुरसति‍यों के लि‍ए

    आराम ज़ि‍न्‍दगी की कुंजी है,
    आराम शब्‍द में राम छि‍पा है
    आराम करो आराम करो

    बधाई............

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  2. :) बढ़िया फुरसतिया पोस्ट है ..सही लिखा है कई लोगो की फुर्सत देख कर इस भागाम भाग ज़िन्दगी में हैरानी होती है

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  3. बहुत सुंदर लिखा है. वाह!

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  4. बड़े ही फुर्सत से बहुत ही अच्छा फुरसतिया लेखा लिखा है . आपने . सुंदर अभिव्यक्ति . बधाई.

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  5. बहुत अच्छा विषय लिया.
    मैने देखा है कि जिस दिन मैं छुट्टी पर होता हूँ, बिल्कुल भी समय अपने शौक को नहीं दे पाता और पूरी छुट्टी बेकार चली जाती है मगर व्यस्तताओं के बीच टाइम मैनेजमेन्ट कर सभी कार्य पूरे होते हैं..वैसे कुछ बचे भी रह जाते हैं, उनका भी एक अलग सुख है.

    बधाई इस विषय को लेने के लिए.

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  6. कुदरत की देन इंसान । अब उसे क्या बनना है यह खुद पर है । तरह-तरह की विभिन्नताएं है । नायाब तरीका पर बोरिंग नहीं है जिंदगी क्या इन सबको?

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  7. एक बार को तो लगा कि हमारे बारे में लिखा जा रहा है । पूरा पढा तो माजरा दूसरा निकला हम बच गये :-)

    हमारी फ़ुरसत केवल हमारी है और उसे हम "सोने" में इन्वेस्ट करते हैं :-)

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  8. फिर से एक अच्छा लेख।

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  9. अजी ऐसे कई प्राणीयोँ से हमारा भी पाला पडा है -आपने आज अच्छी याद दिलाई ! स स्नेह्, लावण्या

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  10. अरे वाह ! वेसे हम भी कुछ इसी प्रकार के जीवो को मिलेहै या जानते है,पता नही शर्म भी इन से शर्मा कर भाग जाती है,बहुत ही सुन्दर लेख लिखा है
    धन्यवाद

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  11. ... कमाल का लेख है, पढकर मन प्रफुल्लित हो गया।

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