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Wednesday, October 22, 2008

वो जो सच्चे इन्सान हैं !

कहते हैं न जीवन में कुछ भी अकारण नही होता !हर घटना के पीछे उस सृष्टि रचयिता का कोई न कोई छिपा उद्देश्य होता हैं ,कई बार निसर्ग हमें बहुत कुछ सिखा जाता हैं , अपने अन्तरमन की धूमिलता को आईने की तरह स्वच्छ करने में हमारी मदद करता हैं ,तो कभी औरो की पहचान करवा देता हैं ।

रोज़ की तरह पतिदेव आज दुपहर भोजन के लिए घर आए ,आते ही उन्होंने मुझे बताया की नीचे घुमने वाले कुछ कुत्तो ने एक छोटी सी चिड़िया को बुरी तरह जख्मी कर दिया हैं ,मुझसे ऐसी बातें देखी तो क्या सुनी तक नही जाती ,स्वाभाविक रूप से मैंने उन्हें कहा "क्यो मुझे बताया ?हे भगवान !"

पर कुछ क्षणों बाद रहा नही गया सोचा उस चिड़िया को एक बार देख ही लू शायद !!!!!!!!!!!!!!!!शायद कुछ मदद कर पाउ । देखने गई । दोनों कुत्ते यमराज के दूत की तरह उसके पास खडे थे ,वो बिचारी एक पाँव टूट जाने से उठ भी नही पा रही थी, तड़प रही थी और डर रही थी। मुझसे रहा नही गया ,सोचा पकड़ के घर ले चलू ,कम से कम इन कुत्तो से तो उसे सुरक्षित रख पाऊँगी । अब लग गई उसे पकड़ने की कोशिश में,कुत्तो को भगाया ,जीवन में इससे पहले कभी कोई चिड़िया पकड़ी ही नही थी, वो मुझसे डर कर एक पाँव पर किसी तरह उछल कर सरक रही थी ,जितना डर उसे लग रहा था उससे ज्यादा मैं डर रही थी ,किसी तरह एक महिला की सहायता से उसे पकड़ कर घर लायी ,बालकनी में एक गमले के पास बिठाया ,दाना पानी दिया । तबसे जा जाकर उसे देख रही हूँ ,सोचा था कुछ समय बाद शायद उसके दोस्त उसे ढूंढ़ कर ले जायेंगे ,तो वह ठीक हो जायेगी ,मुझे तो यह भी नही पता की उसको दवा कैसी लगायी जाए ?सोचा हल्दी लगा दू.फ़िर लगा की हल्दी से इन्सान के शरीर के घाव भरते हैं चिड़िया को कोई तकलीफ हो गई तो?

इस सबसे मेरे मन में एक विचार आया ,जो मुझे बहुत कुछ सिखा गया , उस चिड़िया के प्रति मन में उपजी दया से ये ख्याल आया की काश मुझे इसका इलाज करना आता . आज से पहले कोई मुझे कहता की उसे पशुपक्षियों का इलाज करने में रूचि हैं तो मुझे कोई विशेष बात नही लगती थी ,सच कहूँ तो मैं उसकी बात को सुन लेती थी पर कभी उन लोगो के बारे में विचार ही नही किया जो अपनी पुरी उम्र इन निरीह पशुपक्षियों,जानवरों की सेवा में बिता देते हैं । हम में से अधिकतर उनके इस काम पर या तो ध्यान ही नही देते या उसे कम आंकते हैं ,किंतु प्रेम सब कुछ सिखा जाता हैं ,मुझे आज पहली बार लगा की वह कितने श्रेष्ट हैं ,हम सब जो भी करते हैं वह या तो हमें खुशी देता हैं या हमारे जैसे अन्य इंसानों को।उसके बदले में हमें लोगो का प्यार ,तारीफ और धन भी मिलता हैं , लेकिन वे जो इन पशुपक्षियों ,मूक जानवरों का इलाज करते हैं ,उसके बदले में उन्हें क्या मिलता हैं ऐसा जो उनको आनंद विभोर कर दे? शायद!!!!!!!!!! आत्मिक शांति । मूक जानवर ,पक्षी इनसे धन्यवाद भी नही कह पाते तो तारीफ की क्या बात ?पैसा इन सब कामो में मायने नही रखता क्योकि कोई कितना भी चाहे जब तक ह्रदय में सच्चा प्रेम और करुणा नही हो यह काम किया ही नही जा सकता ,ये काम पैसे से उपर हैं ,और रही लोगो की बात तो हम सब उन्हें तो बहुत इज्जत देते हैं जो इन्सान का इलाज करते हैं ,पर उनका मजाक बनाने से भी नही चुकते जो जानवरों का इलाज करते हैं ।इन्सान का इलाज करने वाले डॉक्टर तो श्रद्धा और आदर के पात्र हैं ही ,पर आज यह भी महसूस हो रहा हैं की इन निर्दोष पशु पक्षियों का इलाज करने वाले , शायद इंसानियत को बनाये रखने वाले सच्चे इन्सान हैं । मेरा उन सभी को सादर नमन ।

6 comments:

  1. आलेख बहुत ही अच्छा लगा. अमरीका में तो वेट्रिनरी सर्जन्स को अधिक वेतन मिलता है जबकि हमारे यहाँ हम उनको "ढोर डॉक्टर" संबोधित करते हैं.

    http://mallar.wordpress.com

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  2. aapki nazar bahut badhiya hai.. shayad isliye itna sundar dekh pati hai..

    badhiya post rahi..

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  3. BAHUT GEHRAI HAIN AAPKI SOCH MAIN
    ACHA LAGA .

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  4. बहुत ही सुंदर अगर अभी यह चिडिया है तो इसे एक बार प्यार से नरमा हाथो से पकड कर इस की गर्दन पर हल्की हल्की उगली फ़िराये फ़िर देखे केसे य आप का धन्यवाद करती है, हमारे पास दो चिडिया है, हम सब उन से युही बात करते है, ओर यह आप की बातो का जबाब भी देगी लेकिन पहले आप उसे दोस्त बनाये, हां बोलेगी हमारी तरह से नही लेकिन आप इन की बात समझ जायेगी, जानवर आदमी से ज्यादा समझ दार होते है, सहन्शील होते है.बस बोल नही पाते, लेकिन अपनी आंखो से सब कुछ समझा देते है
    धन्यवाद सुन्दर लेख के लिये

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  5. ईश्वर करें सबका मन आप जैसा ही स्वच्छ कोमल और संवेदनशील हो.

    जानकारी तो मुझे भी नही कि पशु पक्षियों का प्राथमिक उपचार कैसे किया जाना चाहिए,पर इतना जानती हूँ कि मनुष्यों का जैसे इलाज होता है ,लगभग वैसे ही औषधियों के कमोबेश मात्रा से उनका भी इलाज होता है,तो चोट पर हल्दी उनके लिए भी कारगर होती ही होगी....

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