www.blogvarta.com

Friday, October 17, 2008

प्यार !!!!!

अनजान ईमारत में बैठा वो जोर से रो रहा था ।
जाने क्या गम था ? आसूओं में जग भिगो रहा था ।
मैंने जाकर पूछा भाई क्यो इस कदर रो रहे हो ?
जिंदगी हैं चार दिन की क्यों दुःख में खो रहे हो ?
उसने पलट कर देखा मुझे ,मैं देख घबराई ।
झुर्रीदार चेहरा उसका ,आवाज भी थी भर्राई ।
मैले कुचेले कपड़े पहने ,वो सदियों से बैठा था ।
कोई न था सगा उसका हर कोई यह कहता था ।
मैंने पूछा भाई मेरे, अपना दुःख मुझे बताओ ।
कोई नही गर तुम्हारा, बेटी समझ कह जाओ ।
वह बोला बेटी मेरी क्या तुम्हे मैं बतलाऊ ?
मतलबी दुनिया का चलन कैसे मैं समझाऊ ?
एक समय था जब हर कोई मेरे लिए जीता था।
मेरे लिए ही तरसता ,मेरे लिए मरता था ।
मुझे ही सब कुछ मान गृहणी अपना घर सजाती थी।
माँ मुझसे ही सीख बच्चों को लोरी सुनाती थी।
बच्चे बुढे के मन में बस मैं ही रहता था।
जिंदगी की खुशियाँ चुन चुन सबको देता था।
पर जबसे आया धन छोटे -बडो के हाथ में ।
दुनिया भूली मुझको मैं बैठा इस आघात में ।
आज चहुँ ओर बस पैसे की लडाई हैं।
पैसा हुआ तो भाई वरना सब कसाई हैं।
दुःख तो तुम्हारा मैंने कहा ....,भाई मेरे जायज हैं।
पर हो कौन तुम दुनिया तुमसे क्यों भरमाई हैं ?
बोला वह .....................शब्द थे या हथियार?
आँखों से मेरे भी लगे झरने आसूं जब कहा उसने ...........
मैं हूँ प्यार .................................................

11 comments:

  1. बहुत मार्मिक लेकिन सच्ची रचना...बधाई.
    नीरज

    ReplyDelete
  2. Sahi hai. Love has actually been the causalty of most of our modern endeavours.

    ReplyDelete
  3. दुःख तो तुम्हारा मैंने कहा ....,भाई मेरे जायज हैं।
    पर हो कौन तुम दुनिया तुमसे क्यों भरमाई हैं ?
    बोला वह .....................शब्द थे या हथियार?
    आँखों से मेरे भी लगे झरने आसूं जब कहा उसने ...........
    मैं हूँ प्यार .................................................

    उफ़ ! क्या बात कही है आपने.बहुत बड़ा सत्य.भौतिकता की अंधी गलियों में भटकने वालों ने प्यार की रौशनी को बुझाने का बीडा उठा लिया है.

    ReplyDelete
  4. दुनिया भूली मुझको मैं बैठा इस आघात में ।
    आज चहुँ ओर बस पैसे की लडाई हैं।
    पैसा हुआ तो भाई वरना सब कसाई हैं।
    दुःख तो तुम्हारा मैंने कहा ....,भाई मेरे जायज हैं।
    पर हो कौन तुम दुनिया तुमसे क्यों भरमाई हैं ?
    क्या बात कही है

    ReplyDelete
  5. बिल्कुल सही बात है -कोई किसी को कब पूछेगा कब नही पता नहीं / एक सज्जन कह रहे थे की जब में बहुत गरीब था तब मुझे कोई रिश्तेदार नहीं पहचानता था /मैंने कहा अब तो सब जानने लगे होंगे =बोले= लेकिन मैं अब किसी को नहीं पहिचानता

    ReplyDelete
  6. दुःख तो तुम्हारा मैंने कहा ....,भाई मेरे जायज हैं।
    पर हो कौन तुम दुनिया तुमसे क्यों भरमाई हैं ?


    -ओह!!बहुत जबरदस्त प्रस्तुति!! वाह!!

    ReplyDelete
  7. कमाल की रचना है आपकी बधाई हो

    ReplyDelete
  8. बहुत अच्छी कविता लिखी है ! परन्तु पैसा कितना भी आ जाए वह कभी प्यार का स्थान नहीं ले सकता, यह ही सच है।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  9. वाह राधिका जी कमाल की रचना । आज का सच सामने रख दिया ।

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणिया मेरे लिए अनमोल हैं

"आरोही" की नयी पोस्ट पाए अपने ईमेल पर please Enter your email address

Delivered by FeedBurner