शाम का वही ७ बजे का समय,वही गीत के बोल और वही मैं ...लेकिन तब और अब में कितना अंतर आ गया हैं न!तब ये गीत सिर्फ़ एक गीत था और गीतों की तरह और आज सबसे बडा सच ,जीवन का सबसे बडा सच,हर भारतीय के जीवन का ही नही हर इंसान के जीवन का सच । तुझसे नाराज़ नही जिंदगी हैरान हूँ मैं ..तेरे मासूम सवालो से परेशान हूँ मैं ,नाराज़गी आख़िर किस बात की?हमने वह सब तो पा लिया जिसकी चाह थी ,कितने आगे बढ़ गए हम । बैलगाडी,रथ,से ऑटो ,कार ,ट्रेन,प्लेन तक ,झोपडी,कुटिया से ,बंगला ,फ्लेट ,अपार्टमेन्ट और 1bhk तक,सोने से हीरे,मोतियों, प्लेटिनम और आर्टिफिशियल ज्वेलरी तक, दाल, रोटी से पिज्जा, बर्गर, सेंडविच तक, हाट ,बाज़ार से बड़े बड़े शोपिंग मॉल्स तक, दीपों की रोशनी से बड़े बड़े बल्ब , ट्यूबलाइट और सी ऍफ़ एल की रोशनी तक,पृथ्वी से चाँद मंगल तक ,आयुर्वेदिक उपचारों से बड़ी बड़ी महंगी दवाइयों तक,घर में माँ के हाथ से सिले,दरजी के बनाये कपड़ो से डिजाइनर और कीमती कपड़ो तक ,खस के ठंडे पर्दों से ,पंखे से, कूलर से वातानुकूल यंत्र (एसी )तक ,छोटे से विद्यालयो से विश्वविद्यालयो तक , सरकारी कार्यालयों से मल्टीनेशनल कंपनी के चमकदार भव्य ऑफिस तक ,और संयुक्त परिवारों से एकाकी परिवारों और एकाकी जीवन तक,१०० sal की औसत उम्र 70 ,50 और २०-10 sal की अति औसत उम्र तक ,चोर डाकू से दंगाइयों के खौफ और आतंकवादियों के आतंक तक .....
जो कुछ भी मुंबई में हुआ उसने जीवन का अर्थ और उसके बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया,आतंक वादी कहाँ से आए?दंगे किसने करवाए ?परिवार क्यो टूटे?क्यो जिंदगी से नाराज़ नही होकर भी हर कोई हैरान हो गया ?इन सबके बारे में बहुत सोचा ।सुरक्षा कर्मी अपना कर्तव्य करते हुए शहीद हो गए,जिनके लोग गए वो दुःख में खो गए ,फ़िर सुरक्षा का वादा किया गया ,मुवावजा देने का आश्वासन दिया गया ,कुछ चीखे कुछ चिल्लाये,कुछ ने एक दुसरे को ताने मारे ,कुछ देश में रहने से ही घबराए ,कुछ देवस्थानों में घूम आए,कुछ छानबीन में लग गए,कुछ ने आशंकाए ,चिंताए जताई,और सब और एक डर फ़ैल गया ,हर कोई सवाल करने लगा उनसे ,औरो से अपने आप से और करने लगा आतंकवादी हमलो के शिकार की लिस्ट में अपने नाम का इंतजार ....
समय सच में मनन का हैं ,अपने अंतर मन के सच्चे इंसान को जगाने का ,जीवन कितना छोटा हैं ,एक दुसरे से प्रेम कर ,शांति से जीने का तरीका सीखने का ,ग़लत के विरोध में डट कर खड़े रहने का ,बुरे का अस्तित्व खत्म करने के प्रण लेने का,दिलो में पनपती नफ़रत को ख़त्म करने का,बदलाव का .....एक बहुत बड़े परिवर्तन का,राष्ट्र गीत गाने का नही ,राष्ट्र बनाने का,एक दुसरे का नही अमानवीयता का विरोध करने का ,स्त्री, पुरूष ,भाई बहन ,सास बहूँ ,हिंदू ,मुस्लिम के छोटे छोटे संघर्षो से उपर उठकर ,मानवता के लिए मानवता के संघर्ष का....... आने वाली पिढीयाँ यह न कहे,तुझसे नाराज़ नही जिंदगी हैरान हूँ मैं ....
पिछले कुछ दिनों से शहर से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर लिख नही पाई हूँ ,अत:पाठको से क्षमा चाहती हूँ ,पिछली कुछ पोस्ट्स पर श्री अर्श जी,श्री अनिल पुसदकर जी,श्री राज भाटिया जी ,श्री मीत जी,श्री ब्रिजभुषण श्रीवास्तव,श्री अशोक प्रियरंजन जी ,श्री अभिषेक जी,श्री शिव कुमार मिश्रा जी,सुश्री लावण्या जी ,श्री नीरज गोस्वामी जी ,श्री दिनेश राय द्विवेदी जी ,श्री कुश जी ,श्री सागर नाहर जी ,सुश्री अल्पना वर्मा जी ,डॉ .अनुराग जी ,
श्री समीर लाल जी । आदि सभी पाठको की टिप्पणिया मिली आप सभी का धन्यवाद और मेरी पोस्ट पढने के लिए आभार
radhika jee
ReplyDeletenamaskaar
aapka aalekh padhkar laga ki sahitykaar yadi likhna chaahe to wah apni kalam kabhi bhi uthakar aur kahise bhi(hairaan hoon main} shurukar apne gantavy tak pahunch sakta hai.
hairaan hoon main ke bahane behtareen samyil aalekh ke liye meri badhaai sweekaren.
aapka
vijay
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ReplyDeleteसार्थक लिखे का मज़ा यही है राधिकाजी कि वह देश,काल,व्यक्ति,परिस्थिति,हालात,परिवेश और स्वभाव से परे होता है. ख़ास कर हमारे कई चित्रपट गीत कालजयी कहे जा सकते हैं.दु:ख की बात है कि आज भी ऐसा एक तबक़ा है जो चित्रपट संगीत को हेय दृष्टि से देखता है.
ReplyDeleteसही लिखा आपने।सहमत हूं आपसे।दरअसल शांति और प्रेम से जीने की भावना हममे तो है मगर पड़ोसी इस बात को नही मान रहा है।
ReplyDeleteरािधका जी,
ReplyDeleteआपने अपने लेख कई सवाल उठाकर काफी कुछ सोचने के िलए मजबूर कर िदया । वास्तव में ये एेसे प्रश्न हैं िजनके हल तलाशने होंगे । अच्छा िलखा है आपने ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
आप के लेख के हर शव्द से सहमत है... सच मै तुझ से नाराज नही .. हेरान हूं मै जिन्दगी...
ReplyDeleteधन्यवाद
तुझसे नाराज़ नही जिंदगी हैरान हूँ मैं ....
ReplyDeleteवाकई हालात तो ऐसे ही है.
बहुत सार्थक आलेख.
एकदम सही कहा आपने.ईशवर करें लोग चेतें ,सबको सद्बुद्धि मिले. विध्वंश और विनाश का स्थान निर्माण और सौहाद्र ले ले.
ReplyDeleteराधिका जी बहुत सही और सामयिक लिखा है आपने । हमें सचमुच आज छोटी छोटी और बेमानी बातों से ऊपर उठ कर सोचना होगा ,एक जुट होकर चौकन्ना रहना होगा तभी हम ऐसे संटों का सामना समय रहते कर पायेंगे ।
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