वह रास्ते पर चलती जा रही थी ,राह में मिलते हर इंसान से बोलती बतियाती ,हँसती हसाती ,इठलाती बलखाती चली जा रही थी । हमारे आपके लिए वह सड़क होगी ,जहाँ शांति से चलना ,धीरे बोलना ही सभ्यता में आता हैं ,पर उसके लिए वह खुली हवा में साँस लेने का मौका था ,शाम के सुंदर मौसम में आनंदित होने का अवसर था,जीवन को भरपूर जीने का तरीका था ।
मिलने वाला हर इंसान उससे मिलकर खुश था ,अपनी सारी परेशानिया ,दुःख ,मुसीबते ,भूल चुका था , कोई उसे टॉफी देता ,कोई खिलौना । रंग बिरंगे गुब्बारे लेकर जब गुब्बारे वाला आया तो दो रुपये में चार गुब्बारे देकर, धुप में चल कर ;पेट भरने की जद्दोजहद का गम भूल कर,चेहरे पर असीम मुस्कराहट भर कर गया ।
आलू चिप्स का एक छोटा सा पेकेट पाकर वह अत्याधिक संतोष से मुझे देखकर मुस्कुराती जा रही थी ,मानों सारे जहाँ की खुशिया मैंने उसके कदमो में बिछा दी हो ।सदा खी खी खी खी करते हुए बिन बात हसँते रहना,कुछ बोलना न आते हुए भी अपनी तोतली जुबान से ज़माने भर की कहानियाँ बताना ,और अंत में वही मीठी सी हँसी ...................
मैंने पूछा "अरु क्यो इतनी खुश हो ?ऐसा क्या पा लिया" ?
यही होता हैं अक्सर ...हम खुशी का कारण पूछते हैं । खुशी के लिए कारण ढूंढ़ते हैं । हमें हँसने, गाने, गुनगुनाने के लिए कोई वजह चाहिए होती हैं । इसलिए शायद हम खुश नही हो पाते,ज़माने भर की खुशिया पाकर भी वह खुशी नही पाते जो हमारे अंतरमन को और संसार को खुशियों से भरदे ।
हम मंदिर जाते हैं ,मस्जिद जाते हैं ,चर्च भी जाते हैं ,हर देवस्थान पूज डालते हैं ,लेकिन शांति कहीं नही मिलती,क्योकि हम वहां भी अपनी मुसीबतों का पिटारा साथ ले जाते हैं ,देवता की मूर्ति देखकर और भावुक हो जाते हैं । लेकिन जब हम किसी बच्चे का चेहरा देखते हैं तो शायद किसी देवी देवता के दर्शन कर लेने पर नही मिलती ,इतनी शांति हमें मिल जाती हैं ,क्योकि वह इच्छा ,अनिच्छा ,आशा ,अपेक्षा ,सुख ,दुःख ,स्वार्थ ,आकांक्षा सबसे परे होते हैं । कुछ भी नही पता होता सिवाय इसके की वह जी रहे हैं ,उन्हें हर क्षण का आनंद उठाना हैं ,उन्हें हँसाना हैं और बस हसँते जाना हैं ।
कुछ दिनों पहले अनुराग जी ने एक पोस्ट में पूछा था ,वैसे खुदा की उम्र क्या होगी तक़रीबन ?
http://anuragarya.blogspot.com/2009/01/blog-post.html
आज मेरे पास उनके प्रश्न का उत्तर हैं, खुदा की उम्र होगी तक़रीबन .................यही कोई दो - चार -पॉँच साल या कुछ महीने .................................
bahut sahi kaha aapne mere hisaab se khuda ki umar utni hai jitna ham jeevan ko hans kar jee lete hain uske baad to lagta hai khuda naam ki koi cheej nahin hai
ReplyDeleteनम्बर एक ब्लॉग बनाने की दवा ईजाद देश,विदेशों में बच्ची धूम!!
ReplyDeletehttp://yaadonkaaaina.blogspot.com/2009/02/blog-post_7934.html
बहुत सही और सुंदर बात कही आपने........
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़कर, अभिव्यक्ति और प्रस्तुति दोनों सुंदर है !
ReplyDeleteवाह! अच्छी बात है. भला ख़ुश होने के लिए भी कोई कारण चाहिए! यह तो कोई बच्चों से ही सीखे.
ReplyDeleteसच कहा राधिका जी .अभी अभी एक ७ महीने के फ़रिश्ते को देखा है मैंने .मुस्कुराते हुए ...
ReplyDeleteमैं आप से सहमत नहीं हूँ ?
ReplyDeleteक्यूंकि हर एक का अपना एक अलग खुदा होता है ,जो उसकी पीठ पर अदृश्य रूप से विक्रम - वेताल वाल वाले वेताल की लकता रह कर , बैल-गाड़ी वान की तरह हमेशा हट, हट , हुर्र ,हुर्र कर अपनी सवारी को हांक कर चलता रहता है , इसलिए हर एक के खुदा की उम्र उतनी ही होती है ,जितनी उसकी खुद की उम्र | आरोही के एडमिशन प्रकरण में आप खुद इसका अनुभव् कर चुकी हैं , हाँ कभी कभी वो रूप बदल कर प्रिसिपल बनजाता है !!!!!!!!