कहते हैं बेटी माँ की परछाई होती हैं ,वो मेरी परछाई नही ,एक दैवीय ज्योति हैं,जो जीवन को प्रकाशित करती हैं मेरा ही चेहरा,मेरी शक्ति,शांति,संगती ,गीति,आरोही ....
Wednesday, September 3, 2008
ये कैसी औरते ?
एक महिला जिसकी उम्र 30 -35 साल के करीब हैं,एक दूसरी महिला विद्या से और उसके पति से किसी अकेली पहाडी पर मिलती हैं , पुरूष की आवाज: "सिंदुरा दीदी मैं आपको माँ से भी बढकर मानता था,आप ऐसा नही कर सकती", सिंदुरा की भयावह हँसी ....और एक साथ ६ बार गोलियों की आवाज़ ,विद्या और उसका पति गोलियों से जख्मी होकर निढाल.दीदी के चेहरे पर खतरनाक, अभिमानास्पद मुस्कान.धारावाहिक की कड़ी यही ख़तम .........धारावाहिक का टाइटल गीत: बनू मैं तेरी दुल्हन ।
ग ग सारे सा,ग म प म ग ग सा रे सा । कयोकी सास भी कभी बहु थी ..........इस गीत के बोलो से शायद ही कोई अपरिचित होगा ....इस धारावाहिक ने प्रसिद्धि के सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए,कुछ समय पहले तक महिलाओ पर इस धारावाहिक ने ऐसा जादू किया था कि हर महिला इसकी दीवानी हुए जा रही थी .कहानी क्या ??एक महिला तुलसी जो अत्यन्त पवित्र महिला हैं,घर की सारी महिलाये उसके दुःख का कारण बनती हैं ,पहले वह सास के अत्याचार सहती हैं ,फ़िर पति कि मृत्यु हो जाती हैं ,पति जिन्दा निकलते हैं तो एक दूसरी महिला उस पर अत्याचार करती हैं ,पिढीयाँ पर पिढीयाँ बदल जाती हैं पर ये अकेली अत्याचार से लड़ती हैं ,बाकि सारी महिलाये जो कि महिलाओ के नाम पर राक्षसी होती हैं,एक दूसरे का प्यार छीनती हैं ,चालें चलती हैं ,"तुलसी वीरानी "एक नारी सब कुछ सहती,सुलझाती रहती हैं ।
"कसौटी जिन्दगी की"की प्रेरणा एक ही जीवन में न जाने कितनी शादियाँ करती हैं,फ़िर भी महासती कहलाती हैं ।
ये बात इन्ही दो धारावाहिकों की नही हैं ..इन जैसे न जाने कितने धारावाहिक हमारे हिन्दी- प्रादेशिक चेनलों पर चल रहे हैं .
मजे की बात तो यह हैं की ये सारी महिलाये जन्मत: ही पिस्तोल चलाना,खून करना बखूबी जानती हैं ।
डायरेक्शन की तो बात ही क्या करे ,इतनी इतनी त्रुटियाँ की कोई बच्चा भी पकड़ ले ।
एक धारावाहिक में किसी की मौत हो जाती हैं और उस समय स्वस्तिवाचन मंत्र सुनाते हैं,पखावज बेकग्राउंड म्यूजिक में चल रहा होता हैं ,पर वह कही नही दीखता ,सामने लोग ढोल बजाते हैं ।
हमारी संस्कृति में मंत्रो को बहुत पवित्र स्थान प्राप्त हैं,इन धारावाहिकों में मौके-बेमौके मंत्रो का वाचन होता हैं ,कभी कभी तो मंत्रो का तोड़ मरोड़ कर ,गलत- सलत वाचन होता हैं । मुख्यापात्र नारी जब भी कुछ करती हैं ,उदाहरण के लिए वह नज़रे उठा कर किसीको देखती हैं तो "या देवी सर्व भूतेशु विद्या रूपेण संस्तिथा ....."का पाठ शुरू हो जाता हैं ।
मर मर के जिन्दा होना तो कोई इन धारावाहिकों से सीखे,शुक्राचार्य की संजीवनी विद्या भी इनके सामने शरमा जाए .
हर दूसरे दिन पात्र बदल जाते हैं ,आज माँ, कल बेटी ,परसों नाना ,तरसों ताई ।
एक मराठी धारावाहिक में एक सास अपनी बहू को मारने के हर सम्भव प्रयत्न करती हैं ,और जब थक जाती हैं , तो उसे जला के मारती हैं,और अपने बचाव के लिए पागलपन का नाटक भी करती हैं ।अन्य एक धारावाहिक में एक नारी पात्र "आसावरी" अपने पति के जुल्म सहती हैं फ़िर भी उसको महान कहती हैं ,अन्दर रोती हैं ,परोक्ष में हँसती हैं,जी अवार्ड में इस पात्र को सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति रेखा का सन्मान मिला हैं। अब क्या कहियेगा?
"अब सुनिए कहानी महाभारत की ".."एकता कपूर" की इस महाभारत में सारे पात्र एकदम बचकाना अभिनय करते हैं ,उनकी वेशभूषा कही से हमारी संस्कृति से तालमेल नही बिठा पाती,भीष्म की भाभियाँ आधुनिक हेयरकट में नज़र आती हैं .द्रौपदी जैसी संन्नारी के चेहरे पर न तो वह सात्विक भावः दिखता हैं ,न वह तेज ।गौरवशाली महाभारत के इस तरह के प्रदर्शन से स्वयं गणेश जी और महर्षि व्यास भी दुखी हो रहे होंगे ।
मुझे समझ नही आता की ये धारावाहिक आख़िर बताना क्या चाहते हैं ?ये कौनसी मानसिकता के परिचायक हैं ?समाज में अच्छे -बुरे सब तरह के लोग होते हैं,पर" एक ही देवी बाकि दानव "ऐसा नही होता,हर मनुष्य के ह्रदय में प्रेम होता हैं ,सास बहू में कितनी ही लडाई क्यों न हो ,अन्दर एक दुसरे के प्रति श्रध्दा होती हैं ,सारी की सारी बहूएँ भी क्रूर नही होती ।
कुछ घरो में सास -बहू के अत्याचारों वाली घटनाये हो रही हैं ,पर यह समाज का एकतरफा दर्शन हैं ,कई घरो में उनमे भी स्नेहिल सम्बन्ध हैं । कितनी ही लड़कियाँ आज भी भारतीय समाज का आदर्श कहलाने के काबिल हैं ।पर इन धारावाहिकों में जो दिखाया जा रहा हैं ,वह बहुत ही ग़लत ,विकृत मानसिकता का परिचायक हैं ,इन धारावाहिकों का भरपूर विरोध करने के बजाय कई नारिया बडे प्रेम से इन्हे देख रही हैं .यह जानते हुए भी की इन धारावाहिकों के माध्यम से स्त्री पुरुषों के ह्रदय में बसते विश्वास ,प्रेम ,आदर,दया जैसे भावो को धीमे- धीमे मारा जा रहा हैं ।
यह सब धारावाहिक हमारे समाज के लिए धीमा जहर ही हैं । जरुरत हैं बदलाव की ,इन धारावाहिकों के स्थान पर, ऐसे धारावाहिक दिखाए जाए जो वाकई शिक्षाप्रद हो,जो हमारे समाज को प्रेम और नैतिकता का रास्ता दिखा सके। ऐसे धारावाहिकों का प्रसारण बंद होना ही चाहिए जो मानवीय मूल्यों और भावनाओ से खेलकर अपनी रोटी कमा रहे हैं ,इन धारावाहिक निर्माताओ से मेरा एक ही अनुरोध हैं की कृपया अपनी शक्ति का सदुपयोग कर हमारे समाज को सबल, सक्षम और गौरवान्वित बनाये ,नही दुर्बल,विकृत और लज्जाजनक ।
इति ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
मुझे तो ये कभी समझ नहीं आये
ReplyDeleteआपने कारपोरेट लड़ाईयों की बात नहीं की. ये औरतें (और मर्द भी) इनकम टैक्स एक्ट, कंपनीज एक्ट, फेरा, फेमा, इनडायरेक्ट टैक्स लाज वगैरह का बैंड तो ऐसे बजाते हैं कि केन्द्र सरकार, राज्य सरकार भौचक्की खड़ी देखती रहती हैं. जब-तब किसी कंपनी का मैनेजमेंट चेंज कर लेती हैं. शेयर ट्रान्सफर करने में तो इन्हें दो मिनट भी ज्यादा पड़ते हैं. इनका नुक्सान भी बड़ा-बड़ा होता है. पचीस-पचास करोड़ रूपये से कम का नुक्सान नहीं होता. एक्सपोर्ट आर्डर कैसे पैक हो रहा है, चेयरमैन बेचारा ख़ुद देखता है.....हे भगवान..कहाँ तक लिखें.
ReplyDeleteमुझे तो कभी-कभी लगता है कि एक-दो साल में इन सीरियल में होने वाले कारपोरेट मुकदमों का बाकायदा कोर्ट में रेफेरेंस लिया जायेगा....
je kab khatam honge....isse bhi vichaiye
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने ,दरसल इनका जिक्र करना मैं भूल गई ,आपने इनके बारे में लिखकर कमी पुरी कर दी .
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने...लेकिन मजा तो ये है कि सब तर्क लगाते हैं, सब बुराई करते हैं और सब देखते हैं वरना ऐसे धारावाहिक बनना ही बंद हो जायें
ReplyDeleteजब तक इसको सब देखते रहेंगे यह यूँ चलते रहेंगे ..सर दर्द करते हैं यह :)
ReplyDeleteइन सीरियल्स के बारे में बात करना भी महापाप है।
ReplyDeleteकंचन जी सही कहा आपने,पर देखने देखने में फर्क होता हैं ,कुछ लोग यह धारावाहिक देखते हैं इनका आनंद उठाने के लिए ,और कुछ देखते हैं इनका विश्लेषण कर इनके गुण दोष सबके सामने रखने के लिए .अगर दूसरी तरह के देखने वालो की संख्या बढ़ जाए तो यह धारावाहिक जल्द ही बंद हो जायेगे,कयोकी ये इन धारावाहिकों के परमनेंट दर्शक नही होते .
ReplyDeleteआपने सही लिखा है,वैसे अब सास बहू दोनो ही पक गई है देख-देख कर...और सच यही है एकता कपूर ने जो सीरियल बनाएं हमारी पुरानी संस्कृति को देख कर बना डाले,एक होता तो ठीक होता मगर उसने एक ही जैसे कई बना दिये,यहीं गड़बड़ हो गई,...खैर अब उसे ही भुगतना तो होगा ही...
ReplyDeleteहम लोग
ReplyDeleteबुनियाद
ये जो है जिंदगी
साराभाई
लाइफ लाइन
कब तक पुकारू
एक कहानी
ओर एक ओर सीरियल आता है सन्डे सुबह ....कोई प्रेम कहानी जिसमे लड़का डॉ होता है गरीब .लड़की की सहेली मुस्लिम परिवार से होती है......जिसकी भूमिका शाहिद कपूर की माँ ने निभाई थी.......
इन्हे सीरियल कहते है...ये कहना की दर्शक देखते है ,फजूल बात है..
sahi kaha aapne....pata nahi kya samjhanachaahte hain ye serial..
ReplyDeleteइन सब से बचने का एक मात्र तरीका इन्हे देखो ही मत, जेसा मे करता हु, क्यो कि अगर हम सिर्फ़ मनोरंजन के लिये भी देख रहे हे, तो भी हमारे साथ बेठा हमारा बच्चा या कोई अन्य शायद इसे सही समझ रहा हो, ओर वो क्या शिक्षा पायेगा, इस लिये बुराई से दुर ही रहो
ReplyDeleteआप ने अपने लेख मे बहुत ही सुन्दर चित्र खीचां हे. धन्यवाद
ये धारावाहिक कुछ बताना नही चाहते ,बस भुनाना चाहते हैं।मुनाफा चाहते हैं।इनसे बचने के लिए सुशिक्षित समाज बनाना होगा।
ReplyDeleteये धारावाहिक कुछ बताना नही चाहते ,बस भुनाना चाहते हैं. मुनाफा चाहते हैं. सुशिक्षित समाज बनाने के लिए इनसे बचना होगा.
ReplyDeletesab t. r. p. ka chakkar hai ye sab janatein hai. hum chatpata khaana bhi chahtein hai aut mirche ki alochana bhi karatein hai kyo nahin iskaa virodh samuhik tarike se hota hai yahii maansikata to in serialon ko badhawa hii de raha hai
ReplyDelete