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Friday, September 5, 2008

चलो भिखारी बने



गरीबो की सुनो, वो तुम्हारी सुनेगा,तुम १ पैसा दोगे वो दस लाख देगा। कितनी दुआ हैं इस गीत में और कितना फायदा 1 पैसे के बदले दस लाख !!!!!!!!!!!!!!!!इतने तो २००० हर माह की किस्त देकर बीमा करवाने पर भी नही मिलते ,शेयर खरीदो 50000 के ,तब भी इतना फायदा होना तो मुश्किल ही हैं . यहाँ तो एक पैसे में काम हो रहा हैं . और कोई झंझट भी नही सिर्फ़ जेब से एक पैसा (अब पैसा होता ही कहाँ हैं?तो 1 रुपया ) निकाला और मांगने वाले की खाली कटोरी में डाला ।और हो गया काम।

वैसे देखा जाए तो बहुत अच्छा धंधा हैं भिखारी का ,यहाँ पढ़ पढ़ के मर जाओ,डिग्री -डिप्लोमा
के पहाड़ बना लो,फ़िर भी नौकरी तो मिलती ही नही .,अजी मील भी गई तो ये क्या 10-15000 की ? क्या होता हैं इसमे ?8-9 हज़ार तो घर भाड़े में ही निकल जाते हैं,उस पर दाल -रोटी- चावल महंगे !ये भी छोडे अब भाग्य से किसी मल्टी नेशनल कंपनी में नौकरी लग गई ,पैसा भी बरसने लगा तो भी आपकी जिन्दगी खत्म,24 में से 20 घंटे नौकरों की तरह नौकरी करो,उपर से बात -बेबात बॉस की गालियाँ खाओ . नौकरी छोड़ कोई व्यवसाय धंधा किया तो भी कभी मार्केट के गिरने का डर ,कभी लॉस का टेंशन ,और दिमाग को सदा की झंझट ।

ये धंधा बढ़िया हैं ,बस सुबह सुबह उठो दस -१२ बजे तक आराम फरमा कर बैठ जाओ किसी मन्दिर ,मस्जिद ,गुरुद्वारे के बाहार .नही तो किसी मेले में ,किसी सार्वजानिक स्थान के बाहर. वैसे आजकल भिखारी भी स्मार्ट हो गए हैं ,बड़े बड़े होटल के बाहर ,कभी पिज्जा हट के बाहर ,कभी कैफे कॉफी डे के बाहर भी बैठने लगे हैं। ये तो आपकी चॉईस हैं की आप कहाँ बैठना चाहते हैं । बस बैठे रहे आराम से अपने मित्रो के पास गपशप करते हुए,और जैसे ही कोई साधा सरल इन्सान दिखे उठ के चलदे साथ उसके और कहने लगे दे दे बाबा ,भगवान भला करेगा,और हाँ आजकल इमोशनली ब्लैकमेल कर इस धंधे में बहुत ज्यादा कमाई हो रही हैं ,सबसे ज्यादा दुखती रग पर चोंट करे , कोई उदास परेशान .पर पढ़ा लिखा युवक- युवती दिखे ,तो कहे , बेटा देदे,20-25 रुपया भाई, नौकरी मिलेगी। कोई नईनवेली दुल्हन और पति साथ जा रहे हो तो कहे ,तुम्हारा साथ बना रहे बेटा । कोई माँ दिखे तो कहे तेरे बच्चे 99% से पास हो जाए .बस सिंपल .और हाँ मांगे जरुर ऊँची रखे कोई एक रुपया दे तो ले नही.10-20 रूपये से कम में कोई दुआ न दे।
वैसे भी हम भारतीय कुछ ज्यादा वात्सल्य और करुण रस से ओतप्रोत हैं ,कोई भिखारी दिखा नही,जरा आँखों में आंसू भर के बोला नही कि दे दिए 40-50 रूपये ,चाहे जितना सरकार चिल्लाये,जागरूकता संस्थान बताये कि भीख मत दो ,भिक्षा वृती को बढ़ावा मत दो,चाहे जितना समझ जाए कि ये भीख मांग कर अपना घर और पेट ही नही तिजौरिया भी भरते हैं,दारू पीते हैं,जुआ खेलते हैं .हम तो ॐ भवति :भिक्षाम देही कि परम्परा में विश्वास करने वाले भोले भाले संस्कारी मानव हैं ,हम तो भीख देंगे ही । तो क्यों न ख़ुद ही मांग ले,कम से कम हमारी ही तिजौरिया भरेंगी. और घर में जितने भी बच्चे हैं सबको सिखा पढ़ा कर काम पर लगा दे,थोड़े मैले कुचेले कपड़े पहना दे,और थोडी सीख दे दे ।क्योकि आजकल न जाने कितने बच्चे लगे हैं भीख माँगने में,अब भाई कोई कहे कि यह बच्चो का शोषण हैं ,उन पर अत्याचार हैं ,हम तो नही मानने वाले,हम करुणामूर्ति ,दयाघन, बच्चो को कैसे खाली हाथ रहने दे. और क्या जाता हैं 20-25 रूपये देने में?उनका भविष्य बिघडे तो बिघडे,हम पर पाप तो नही चढ़ेगा . और दुआएँ भी मिल जाएँगी बच्चो के मुँह से निकली,बच्चे जो कि भगवान का रूप होते हैं.
इसलिए अच्छा हैं कि अपने बच्चो को ही काम पर लगाये ढ़ेर सारे पैसे बनाये,आख़िर खाली पिली दुआएँ तो बाँट ही सकते हैं न ।
हैं न आसान ?वैसे भी हम सब भिखारी ही हैं ,दिन में कितनी बार ही भीख मांगते हैं हम।
कभी पैसे के लिए ,कभी प्यार के लिए ,कभी नाम के लिए .कभी रिश्तो के लिए ,बस अन्तर यह हैं की ये हमसे भीख मांगते हैं और हम ईश्वर से । अब देखिये अदनान सामी जी को, किस चीज़ की कमी हैं इनके पास? नाम,पैसा ,शोहरत सब कुछ तो हैं . फ़िर भी गा गा कर माँगते हैं,"ऐसे ऐसो को दिया हैं,कैसे कैसो को दिया हैं ,गाड़ी, बंगला, कार दिला दे ,एक नही दो चार दिला दे ।"

अभी भिखारियों की चांदी ही चांदी हैं, उनकी एक यूनियन हैं ,सत्ता हैं ,उनके पास काम हैं नाम हैं और ढ़ेर सारा पैसा हैं.तो लग जाए इस धंधे में । चलो भिखारी बने ।

और लीजिये ये गीत भी कंठस्थ कर डालिए :->
चाहे लाख करो तुम पूजा तीरथ करो हज़ार
दीन -दुखी को ठुकराया तो सब -कुछ है बेकार

गरीबों कि सुनो वो तुम्हारी सुनेगा -2
तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा
गरीबों कि सुनो ...

भूख लगे तो ये बच्चे आंसू पी कर रह जाते हैं
हाय गरीबों कि मजबूरी क्या -क्या ये सह जाते हैं
ये बचपन के दिन हैं घड़ी खेलने की
उमर ये नही ऐसे दुःख झेलने की
तरस खाओ इनपे ऐ औलाद वालों
उठा लो इन्हें भी गले से लगा लो
लो इन्हें भी गले से लगा लो
न फूल कहीं ये आंधी और बरसात में
गरीबो की सुनो ...

बीमार ये बूढा क़दम -क़दम पर गिरता है
फिर भी इन बच्चों की कातिर हाथ पसारे फिरता है
कहीं इनका ये साथ न छूट जाए
आंखरी न ये आस भी टूट जाए
कहाँ जायेंगे ये मुक़द्दर के मारे
ये बुझाते दिए टिमटिमाते सितारे

इन बेघर बेचारों की किस्मत है तुम्हारे हाथ में
गरीबों की सुनो ...

3 comments:

  1. वैसे आईडिया बुरा नहीं है :-)

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  2. अरे वाह क्या धासू आईडिया हे, पहले बताना था
    धन्यवाद

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  3. एक और कैरियर ऑप्शन!! देखा उस दिन टीवी पर... :)

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