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Sunday, September 21, 2008

क्या बारात निकालना सही हैं ?



भारतीय विवाह परम्परा में बारात का अपना महत्व हैं ,बारात का आगमन विवाह के कार्यक्रम की पहली सीढ़ी होता हैं,जैसे ही बारात आती हैं,विवाह स्थल पर खुशी की एक लहर दौड़ जाती हैं ,दुल्हन पक्ष के बड़े,बुजुर्ग ,बच्चे ,युवक युवतियाँ सब के सब बारात देखने को उमड़ पड़ते हैं। एक अलग ही उल्लास बारात से जुडा होता हैं ।बाराती बनके जाना यानि ठाठ ही ठाठ । फ़िर उस दिन के लिए हर कोई राजा ,हर कोई रानी ,हर बच्चा राजकुमार ,राजकुमारी । दुल्हन पक्ष के लोग बारात की आवभगत में कोई कसर नही छोड़ते,बारातियों की हर इच्छा को सर आँखों पर लिया जाता हैं । बारात का महत्व इस कदर हैं की वह विज्ञापन"बारातियों का स्वागत पान पराग से " बहुत लोकप्रिय हुआ था ,शायद बच्चे बच्चे को पता चल गया था पान पराग, पान मसाला होता हैं । न जाने कितने हिन्दी फिल्मी गीत बारात को लेकर हैं ।

आज भी बारात जाती हैं कही बस से कही ट्रेन से ,कही विमान से ,हमेशा खुशियों की बारात लेके । पर कहीं- कहीं ये बारात मुसीबत की बारात भी बन जाती हैं । बारात विवाह स्थल तक पहुँचे सभी चाहते हैं ,और इसलिए ईश्वर से दुआ भी करते हैं । लेकिन शादी की रस्मो के पहले बेंड बाजे के साथ बारात जो गली -गली, सड़क -सड़क घुमाई जाती हैं , वह सब लोगो के लिए मुश्किल का कारण बन जाती हैं । अब कुछ ही दिनों में फ़िर से विवाह शुरू होने वाले हैं ,फ़िर देखियेगा शहर की सारी सड़के बारातो से भरी- भरी नज़र आएँगी । सड़के ,सड़के नही बारात मेला लगेंगी ।

बारात की परम्परा इतनी पुरानी हैं की शिव जी भी पार्वती माँ के घर बारात लेकर गए थे,उनकी
गणों ,कंकालो ,आदि से भरी पुरी बारात देखकर पार्वती माँ की माँ को चक्कर आया था और वे बेहताशा डर गई थी। लेकिन सब पुरानी बातें सभी युगों में उसी तरह ग्राह्य होती हैं ऐसा नही हैं न। जो पुराने समय में होता था.उस समय ,उस बात के लिए अनुकूल एक समाज व्यवस्था,लोगो की सोच,उनका समय,गाँवो का रूप आदि बातें थी .उस समय छोटे छोटे गाँवो से बारात निकलती थी तो सारे गाँव के बच्चे बूढे, बारात में शामिल होकर बारातियों और घरातियों की खुशी में शामिल हो जाते थे । उस समय लोगो का आपस में उतना अधिक मेलजोल भी था और उनके पास समय भी होता था। आज के समय की तरह बाइक ,स्कूटर ,कार आदि की भीड़ नही हुआ करती थी रास्ते पर ।

पर आज हम कितने ही आगे आगए हैं ,एक तरफ़ समय की कमी हैं ,दूसरी तरफ़ सड़क पर वाहनों की लम्बी श्रृंखला हैं ,कहीं सड़के सही नही हैं ,तो कहीं मौसम की खराबी हैं ,किसीको ऑफिस जाना हैं ,किसीको स्कूल भागने की जल्दी हैं ,किसीको मीटिंग अटेंड करनी हैं ,तो किसीको किसी प्रोग्राम का लाइव कवरेज देना हैं। जिन्दगी की इस रफ्तार में किसीकी बारात देखने का उसके साथ नाचने का समय किसी के पास नही हैं । उस बारात में किसीको दिलचस्पी नही हैं । बल्की सडको पर जब बारात निकलती हैं तो लोगो की चिड चिड और परेशानी बढ़ जाती हैं । सबसे बुरा आलम तो तब होता हैं जब बारातो के कारण ट्रेफिक जाम हो जाता हैं ,जहाँ लोगो को गंतव्य तक पहुँचने की जल्दी होती हैं ,एक एक क्षण कीमती होता हैं ,वहाँ बिना वजह से हो रही यह देर, लोगो के मुंह से इस शादी के लिए आशीष नही निकलवाती , बल्की उनकी नाराज़गी का कारण बनती हैं । सोचिये किसी युवक को उसके इंटरव्यू के लिए पहुँचना हैं ,सब कुछ सही होते हुए भी अगर वह समय से सिर्फ़ इस बारात के कारण नही पहुँच पाता तो उसका कितना बड़ा नुकसान होता हैं ।

आजकल बेंड वालो के संगीत का वाकई बुरा हाल हैं ,इतना बेसुरा बजाते हैं की सुनकर लगता हैं ,अपने कान फोड़ लिए जाए ,आत्महत्या कर ली जाए। चलिए बेसुरा तो बजाते ही हैं , उस पर लोग नाचते हैं अब बताये बारात आ रही हैं ,उस दूल्हा दुल्हन की जिन्दगी में खुशियाँ आ रही हैं,और गाना चल रहा हैं "शिर्डी वाले साईं बाबा आया है तेरे दर पे सवाली लब पे दुआएं आखों मैं आँसू, दिल मैं उमीदें पर झोली खाली "बाराती नाच भी रह रहे हैं इस पर ,फ़िर दूसरा गाना चलता हैं ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आंख में भर लो पानी जो शहीद हुए हैं इनकी जरा याद करो कुर्बानी ।फ़िर गाना बजता हैं ,दिल के अरमान आसुओं में बह गए ।
किसी पास वाले घर में कोई नन्हा मुन्ना बच्चा सो रहा हैं,वह इस शोर गुल से जाग जाता हैं और जोर जोर से रोना शुरू कर देता हैं,यह बात दूसरी हैं की उसका रोना इनके गाने से ज्यादा सुर में लगता हैं ।
कहीं बूढे दादाजी बीमार हैं डॉक्टर ने शान्ति से आराम करने को कहा हैं पर वो सिर्फ़ इसलिए नही सो पा रहे क्योकी बारात का शोर उन्हें असहनीय हो रहा हैं। कल से 12th की परीक्षाएं शुरू हैं। बच्चे पढ़ना चाहते हैं पर पढ़ नही पा रहे क्योकी उनको लगातार यह गाने सुने दे रहे हैं ।
मुझे समझ नही आता सड़कों पर इस तरह नाचने का औचित्य । हम जीवन में कोई भी काम क्यों कर रहे हैं ?इसके करने से क्या फायदा हैं ?क्या नुकसान हैं?क्या हमारा ये काम वाकई दूसरो को खुशी दे रहा हैं,क्या ये वाकई हमें खुश कर रहा हैं ?ये खुशी हैं या सिर्फ़ खुशी का दिखावा?इन सब प्रश्नों का उत्तर हमारे पास होना चाहिए जब हम कोई काम कर रहे हैं.कोई भी कम हमें खुशी दे पर कम से कम वो दूसरो दुःख न पहुचाये इसका ख्याल रखा जाना चाहिए ।
बारात निकलने का औचित्य क्या हैं ,क्या इसे निकलना जरुरी हैं ,या पीढियों से चली आरही रूढ़ी का सिर्फ़ पालन । इस बात पर विचार किया जाना जरुरी हैं । विवाह खुशी का अवसर जरुर हैं,नृत्य खुशी के इजहार का सशक्त साधन , वह होना चाहिए ,पर उसके लिए विवाह स्थल दूल्हा दुल्हन का घर काफी हैं ,इस तरह सड़कों पर नृत्य करना न तो हमारी संस्कृति का अंग हैं न ही संस्कारो का दर्पण ।
इति ।


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12 comments:

  1. बारात नहीं निकालेगें तो फिर. ये कॊन गायेगा "आशिक है बारात, जरा धूम से निकले..." :)

    वाकई सोचने वाली बात है.. सभी परेशान होते है.. बस दिखाने के लिये... इस पर तो टेक्स लगाना चाहिये..

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  2. बहुत गलत है। नहीं निकालना चाहिये। नगरों के व्यस्त मार्गों से तो कदापि नहीं। इसके बावजूद भी जो करना चाहें उन्हें लाखों में टैक्स भरकर अनुमति लेनी चाहिये। इतना ही नहीं हल्ला-गुल्ला करने के लिये भी डण्ड (कठोर आर्थिक डण्ड) का प्राविधान होना चाहिये।

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  4. Kuch kam faayde aur nuksaan se upar hote hai... keval har kaam fayde aur nuksaan ke liye nahi karne chhaiye.. kuch point se bilkul sahmat hu par kuch se bilkul asahmat

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    I don’t want to love you… but I do....

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  5. यह सही है की आज के हिसाब से कुछ पुरानी परम्पराएं प्रासंगिक नही रह गई है . अतः जरूरी है की इन परम्पराओं मैं वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन होना चाहिए .

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  6. बारात निकलना सही या गलत है ? यदि परम्परा में विश्वास है तो यह पूर्ण रूप से सही है। वैसे परंपरायें समय के अनुसार बदलती भी है , यदि रूढिवादी सोच से कहीं कुछ गलत है तो जरूर परिवर्तन होना चाहिए। वैसे आप ही इसकी शुरूआत क्यों नहीं करती ?

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  7. यदि बात समय के साथ पुरानी परम्पराओ के बदलाव की है तो सिर्फ बारात ही क्या कई परम्पराऐं हैं जो बदलनी चाहिए।

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  8. बारात निकालना वास्तव में गुजरे जमाने की वास्तविकता का नाटक है। जिसे अब स्टेटस सिंबल बना लिया है। वैसे तो हिन्दू विवाह में सप्तपदी पर्याप्त है,मुस्लिम मे निकाह। लेकिन हम पुराने जमाने की स्मृति में बारात और अन्य रिवाजों को ढोए जा रहे हैं। वैसे बहुत से लोगों ने बरात निकालना छोड़ दिया है। विवाह की परंपराओं में बहुत कुछ कटौती हुई है। समाज को इस से कोई लेना देना नहीं रहा कि विवाह कैसे होता है। हाँ यदि सामाजिक स्तर पर इस मामले में अभियान चले तो बहुत सुधार लाए जा सकते हैं।

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  9. u r right their must be a law how ad where the procession should carry
    regards

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  10. सही कह रही हैं..दिनेश जी से सहमत हूँ.

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  11. हम सुधरेँ तो दूसरोँ से भी सुधार की आशा की जा सकती है ~~

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