गोवा से अहमदाबाद आने वाली फ़्लाइट अपने नियत समय से १ घंटा :३० मिनिट की देरी से हैं,सारे यात्री परेशान हैं ,जैसे तैसे फ़्लाइट आती हैं ,सब विमान यात्री विमान में सवार होते हैं,विमान रन वे पर भागना शुरू होता हैं की अचानक एक बच्चा जोर जोर से रोने लगता हैं ,उसकी माँ उसे चुप करवाने की कोशिश करती हैं लेकिन व्यर्थ ,उसे देखकर फ़्लाइट में बैठे सभी नन्हे बच्चे जोर जोर से रोना चीखना चालू कर देते हैं ,पुरे विमान और पुरी यात्रा में बच्चे रोते रहते हैं,विमान यात्री उन्हें चुप करवाते रहते हैं ,और अपने कान बंद करते रहते हैं ,अहमदाबाद आते ही सब यात्री बच्चो की तरह तालिया बजाते हैं और खुशी से चिल्लाते हैं पहुँच गए अब उतर सकेंगे ...................
यह एक छोटा सा उदाहरण था बच्चो की आत्मीयता का ,इस कथा क्रम को शुरू करने वाली मेरी आरोही ही थी। इसी तरह एक दिन एक मॉल में एक बच्चा किसी बात पर जोर से हँसता हैं बात का तारतम्य न जानते हुए भी वहा खडे सब बच्चे जोर जोर से हँसने लगते हैं ।
यह हैं बचपन . यह हैं बच्चे ,बच्चे ,जीनमे अपना पराया का द्वेष नही,जो मित्रता शत्रुता से परे हैं ,जिन्हें सच झूठ,विश्वास ,अविश्वास ,रुपया ,पैसा,स्वार्थ ,परार्थ कुछ भी नही मालूम । उन्हें मालूम हैं तो बस प्यार। जिनका जीवन आनंद ,उत्साह से हर पल सजा रहता हैं । वे हर एक को चाहते हैं हर कोई उनका अपना हैं।
दो तीन दिन पहले मैं किसी बात पर सोच रही थी, की कैसी दुनिया हो गई हैं,सुबह ८ से रात १० ऑफिस,किसी को किसीके लिए फुरसत नही ,कोई किसी की भावनाओ को समझे,साथ हँसे बोले इतना समय नही,सुबह से इंसान रूपी मशीन बस काम पर लग जाती हैं ,कहीं वो प्यार नही वो आत्मीयता नही,बाजारों में जिंदगी को सजाने सवारने की सारी चीजे मौजूद हैं ,जिनकी चमक दमक जिंदगी को उपरी रूप से इतना सजाती हैं की जिंदगी में कोई कमी नज़र नही आती लेकिन सच्चे अर्थो में जो एक दुसरे के सुख दुःख में हँसे रोये,एक निर्मल मुस्कान से सबका मन अपनी और खींचे ,जो मीठे स्वर में प्यार के दो बोल कह सारा दुःख दर्द दूर कर दे ,ऐसी सच्ची जिंदगी कहा हैं ?यह सब सोचते सोचते ही पुरा दिन कट tगया ,शाम को हम लोग कैफे कॉफी डे गए ,बड़ा अजीब सा बनावटी वातावरण था ,सब लोग धीमे धीमे बात कर रहे थे,वेटर बड़े सलीके से पेश आ रहे थे , प्लेयर पर बड़े बुरे लेकिन नए गाने चल रहे थे,सामने कॉलेज के लड़के लड़कियों का ग्रुप हंस बोल रहा था,पीछे की टेबल पर एक महाशय किताब मुंह पर चिपकाये बैठे थे, कांच के दरवाजे के बाहर खडा एक १०-१२ साल का बच्चा मुझसे इशारे से भीख मांग रहा था . हम सब भी बातों की औपचारिकता निभा रहे थे ,कॉफी आई ,आरोही जो अभी तक इधर उधर खले रही थी,मेरे पास आई और अपने हाथ से कॉफी पिने की जिद करने लगी मैंने समझाया फ़िर भी नही मानी ,मेरे कप से स्ट्रा खींच के कुछ इस तरह से निकाली की सारी कॉफी उसके पापा के कपड़ो पर ,आरोही ने अपने पापा के कपड़ो पर कॉफी से स्प्रे पेंटिंग कर दी थी , पतिदेव को काटों तो खून नही ,सासु माँ मुंह छुपा कर हस रही थी ,ससुर जी इधर उधर देखकर अपनी हँसी छुपाने की असफल कोशिश कर रहे थे ,और मैं जोर जोर से हंस रही थी,आरोही मेरे स्वर में स्वर मिलाती हुई ,तालियाँ बजा बजाकर हंस रही थी । उसके साथ हँसतें हुए सब कुछ भूल गई ,कॉफी डे के बाहर निकले तो बच्चो का एक समूह हमारे पीछे चला आ रहा था और हम पर हंस रहा था ,उस समूह में वह भीख मांगने वाला बच्चा भी था,सारा माजरा समझ आया,और मन ने कहा................................ यहाँ हैं जिंदगी,यहाँ बच्चो में ,यहाँ जिंदगी अपने पुरे उत्साह ,उल्लास प्रेम और आनंद के साथ हँसती गाती झिलमिलाती हैं .जिंदगी यहाँ अब भी मुस्कुराती हैं ।
आपसे पूरी तरह से सहमत। जिंदगी को हमने ठेके पर दे दिया है। न अपने लिए समय है न अपने बच्चों के लिए।
ReplyDeleteआपने बहुत ठीक लिखा है.. हालाँकि मैं केफे कॉफी डे में भी खुशी ढूँढ लेता हू.. और सड़क पर खड़े होकर गोल गप्पे खाते हुए भी... जगह.. वक़्त.. हालत अलग हो पर आपने वो खुशनुमा ज़ज्बात हर पल होने चाहिए..
ReplyDeleteएक और उम्दा लेख के लिए बधाई..
हमेशा की तरह बढ़िया.
ReplyDeleteखुशी ढूढने की ज़रूरत सी पड़ने लगी है लोगों को. ऐसे में बच्चे हमारी खुशी ढूढ़ कर ला सकते हैं.
बचपन मे
ReplyDeleteसुख हों
या दुख
सब बस
घड़ी भर के।
बच्चोँ की दुनिया चिँता रहित समय होता है
ReplyDeleteबडे होने के साथ जिम्मेदारियाँ बढती हैँ
अच्छा आलेख लिखा है राधिका जी
- स स्नेह,
--लावण्या
hamara dukh jhuth aur majak hai.
ReplyDeleteunaka dukh duniya ka santap hai.
badhai achchha likha.
रािधका जी,
ReplyDeleteबच्चों की दुिनया में जो भोलापन, मासूिमयत और िनश्छलता होती है, उसे अगर हर आदमी अपने में उतार ले तो शायद दुिनया की तस्वीर ही बदल जाएगी । बहुत अच्छा िलखा है आपने । बडे साधारण शब्दों में बडा गंभीर संदेश दे िदया है ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
राधिका जी आप ने बहुत सुंदर लिखा,क्या हम नही बन सकते बच्चो की तरह से साफ़ दिल, बिन लालच के दुसरो के काम आये, खुशिया तो हम सब के आसपास बिखरी पडी है, हम ही अंधे बने हुये है..... बस हम आंखो से इस वडप्पन का, इस घमण्ड का परदा हटा दे तो खुशिया ही खुशिया
ReplyDeleteधन्यवाद
achha laga..bhawnao ko aapne jis tarah net ke panno par ukera hai ..wakai ye kabiletarif hain...likhte rahiye...
ReplyDeletemere blog par apaka swagat hai.
ReplyDeleteराधिका जी।
ReplyDelete"यह हैं बचपन . यह हैं बच्चे ,बच्चे ,जीनमे अपना पराया का द्वेष नही,जो मित्रता शत्रुता से परे हैं ,जिन्हें सच झूठ,विश्वास ,अविश्वास ,रुपया ,पैसा,स्वार्थ ,परार्थ कुछ भी नही मालूम । उन्हें मालूम हैं तो बस प्यार। जिनका जीवन आनंद ,उत्साह से हर पल सजा रहता हैं । वे हर एक को चाहते हैं हर कोई उनका अपना हैं।"
आपके पुरे विचारो का मुल जो मैने समझा सिखा वो यह है कि आपने जो लिखा बेहद ही अच्छा एवम आम जिवन पर उसका रोज का
छाया है। जरुरत है तो "बस एक प्यार कि झपी कि।" बच्चो कि एक मुस्कराहट जो दिन भर कि थकावट को भी भगा दे। आप आगे भी इसी तरह के मुद्दो को उठाईऐ जो रोजर्मरा के जिवन मे आम लोगो से झुडे हुऐ है॥
कृपया मेरे ब्लोग पर आमन्त्रण है आपको।
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