वे संसार के सबसे बड़े मायावी हैं ,हम आप और ईश्वर भी उनकी माया के अधीन हैं ,वे सर्वशक्तिमान हैं , उनके सामने न धन की ताकत टिकती हैं ,न बल की ,न शस्त्र उन्हें पराजित कर सकते हैं ,नही अस्त्र उनके सामने टिकते हैं,वे ब्रह्मास्त्र भी हैं और शास्त्रार्थ भी. कवि कलाकार,विद्वान उनके गुण गाते नही थकते ,उनकी माया जिनके साथ हो वो शिखर पर और जिन्होंने उन्हें नही पूजा ,उन्हें भूतल पर कहीं पाव ज़माने की जमीन भी नसीब नही होती । वे ही गीति हैं और वे ही दुर्गति ,उनसे ही संसार की मनोमय सुंदरतम लय हैं और उनसे ही अवनति । वे पल भर में आसमान गिरा सकते हैं ,वे ही जमीन पिघला सकते हैं,कभी छत्रछाया बनकर रक्षण कर सकते हैं ,कभी सर का छप्पर उड़ा कर भक्षण भी कर सकते हैं ,हर रिश्ते की बुनियाद इन पर ही टिकी होती हैं ,इनसे ही रिश्ते बनते हैं और इनसे ही टूट जाते हैं .ये जमीन हैं आसमान हैं ,वे सूर्य हैं चंद्र हैं और कल्याण भी हैं ,वे ईश है देव हैं और दैव भी हैं ,एक वही हैं जिनकी पूजा जिन्होंने कर ली वो तर गए बाकी जीते जी मर गए।
आप सोच रहे होंगे मैं क्यों पहेली बुझा रही हूँ?यह क्याहैं?मैं कबसे किसी मायावी के बारे में लिखने लगी?आदि आदि । पर जब मैं उनका नाम बताउंगी तो आप भी मुझसे सौ टका सहमत होंगे। सभी के मित्र और शत्रु ,कल्याणकारी और विनाशकारी, आनंददायी और दुखदायी वे मायावी हैं.................................. शब्द ।
शब्द जिनका राज्य पुरे संसार पर चलता हैं ,मनुष्य ने जबसे भावो की अभिवयक्ति के लिए शब्दों का सहारा लेना प्रारंभ किया तबसे आज तक वे मनुष्य जीवन को भाग्यनिर्धाता के रूप में चलाते आए हैं ,मनुष्य की किस्मत बनाते बिघाडते आए हैं।
इंसान पढ़ लिया , विद्वान हो लिया ,ज्ञानवान हो लिया ,न जाने कितनी भाषाओ का सृजक और पोषक हो लिया ,लेकिन शब्दों का सही प्रयोग और अभिवयक्ति की सही दिशा आज तक निर्धारित करना पुरी तरह से नही सिखा ,उसके पास शब्दों का भण्डार हैं लेकिन उनको किस तरह से प्रयोग करना हैं उसके दैनंदिन जीवन में ,वह आज भी यह नही जानता ,भषा विज्ञानी हैं ,लेकिन शब्दों का प्रयोग एक कला हैं ,कला आत्मा की अभिवयक्ति हैं ,और जहाँ यह अभिवयक्ति चुकी ,सारा काम बिघाड जाता हैं।
आज के पढ़े लिखे लोग जिस तरह की भाषा का प्रयोग करते हैं ,समझ नही आता भाषा की अधोगति पर रोया जाए या वाणी की अवनति और दुखदायी स्थिति पर । कहते हैं न एक बार ब्रह्मास्त्र की मार चुक जाए या उससे दुखे हुए इन्सान का इलाज हो वह ठीक हो जाए ,लेकिन शब्दास्त्र की मार युगों युगों तक आत्मा पर घाव बन कर मनुष्य ह्रदय को सलाती रहती हैं,जलाती रहती हैं ।
शब्द विज्ञानं हैं और बोलना कला , इसलिए वीणापाणी को वाणी भी कहा जाता हैं ,देवी के अन्य रूपों के साथ शब्दमयी देवी भी हैं , शब्दों को मधुरता से प्रेम से आनंद से बोला जाता हैं तो सुनने वाला आपका प्रेमी और मित्र हो जाता हैं ,और जब इन्ही शब्दों को तोड़ मरोड़ कर अपने निम्नतम स्तर पर बुरे स्वर के साथ प्रयोग किया जाता हैं ,तो सुनने वाले के लिए जीवन खत्म हो जाता हैं ,धरती और आकाश सब शून्य हो जाते हैं ,ह्रदय भावना शून्य ,करुणा शून्य ,प्रेम शून्य हो जाता हैं ,इसीसे उपजता हैं प्रतिकार ..विरोध... नफ़रत ...और शब्दास्त्र पर शब्दास्त्र का तीक्ष्ण प्रयोग। इन सबसे आहत हो जीवन कहीं छुप जाता हैं जैसे अमावास की रात्रि में चंद्र तारे कही छुप जाते हैं और बचता हैं केवल अँधेरा ।
शब्द धरोहर हैं ,मानवीय संस्कृति और संस्कार का अहम् भाग । उनका प्रयोग प्रेम से ,मधुर स्वर के साथ और शांति से किया जाए तो ही हम जीवन संघर्ष को जीत सकते हैं .और इन मायावी शब्दों को अपना मित्र बना कर सदैव आदर के पात्र और प्रिय बन सकते हैं ..मुझे लगता हैं हम बच्चो को पोथी पुस्तके पढाते हैं इन सबके साथ वाणी का सही प्रयोग ,आवाज़ को कम अधिक कर किस तरह से अपनी बात को औरो तक पहुचाया जाए ,स्वर का शब्द से सम्बन्ध और उसका यथोउचित प्रयोग यह विषय भी बच्चो को विद्यालय में रखा जाना चाहिए और साथ ही साथ माता पिता द्वारा भी बच्चो को पढाया जाना चाहिए। ताकि शब्द सके मित्र बन सके .
मेरा इन मायावी शब्दों को नमन ...
shabdshah satya.shabd shakti awarnnayeey mahaan hai.
ReplyDeleteअरे वाह मै तो सच मै चक्करा गया था, कि भाई आज कया हो रहा है, आप ने बिलकुल सही कहा, हम शत प्रतिशत आप से सहमत है.
ReplyDeleteधन्यवाद
बिल्कुल सही कहा!!
ReplyDeleteआभार!
रािधका जी,
ReplyDeleteशब्दों की मिहमा पर आपने बडा साथॆक िलखा है । शब्द शिक्त का सदुपयोग करना सीखना चािहए ।
शब्द ब्रह्म हैँ और सबसे शक्तिशाली भी ..सही कहा आपने ~
ReplyDeleteशब्द धरोहर हैं ,मानवीय संस्कृति और संस्कार का अहम् भाग । उनका प्रयोग प्रेम से ,मधुर स्वर के साथ और शांति से किया जाए तो ही हम जीवन संघर्ष को जीत सकते हैं .
ReplyDeleteअक्षरशः सही.
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शुभकामनाएँ
डॉ.चन्द्रकुमार जैन